क्या सरकार अब सोशल मीडिया और न्यूज पोर्टलों का मुँह बंद करना चाहती है ? – जीवेश चौबे

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन न्यूज़ चैनल की मंशा व नीयत पर सवाल उठाते हुए पर ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम के प्रसारण पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है, ‘आप एक धर्म विशेष को टारगेट नहीं कर सकते किसी एक विशेष तरीक़े से।’ सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के चलते मीडिया की आजादी,सरोकर और सरकार की भूमिका को लेकर नई बहस छिड़ गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मीडिया को किसी भी तरह का कार्यक्रम चलाने के लिए बेलगाम नहीं छोड़ा जा सकता। कोर्ट ने सुर्दशन टीवी के कार्यक्रम को विषैला और समाज को बाँटने वाला क़रार दिया था। जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा था, ‘मीडिया की आज़ादी बेलगाम नहीं हो सकती, मीडिया को भी उतनी ही आज़ादी हासिल है जितनी देश के किसी दूसरे नागरिक को।’ 

विदित हो कि विगत दिनों सुदर्शन न्यूज़ चैनल पर ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के चलते मीडिया की आजादी,सरोकर और सरकार की भूमिका को लेकर नई बहस छिड़ गई है। इस बहस ने समाचार माध्यमों के सामजिक सरोकार और दायित्वों को लेकर सरकार और मीडिया की जिम्मेदारियों पर कोर्ट ने स्पष्टीकरम मागते हुए दोनों की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से भी जानना चाहा है कि मीडिया ख़ासकर टीवी मीडिया में चल रहे कार्यक्रमों के दौरान धर्म और किसी ख़ास संप्रदाय को लेकर होने वाली बातचीत का दायरा मर्यादित क्यों नहीं होना चाहिए। आश्चर्य की बात ये है कि  सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने स्वयं कहा था कि टीवी चैनलों पर प्रसारित किसी भी कार्यक्रम पर प्रसारण से पूर्व रोक की व्यवस्था नहीं है, हालांकि इस बाबत मंत्रालय ने सुदर्शन चैनल से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि उसका शो कार्यक्रमों के लिए निर्धारित संहिता का उल्लंघन नहीं करे। 

अब भी सरकार सुदर्शन चैनल पर कुछ नहीं कह रही है। इसके विपरीत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बचाने की कोशिश कर रही है, और चिंताजनक बात यह है कि इसकी आड़ में डिजिटल मीडिया को निशाने पर ले रही है। गौरतलब है कि सरकार कार्यवाही करने की बजाय सुदर्शन चैनल सहित अन्य सभी टेलीविज़न चैनलों को बचाने की कोशिश करते हुए आम जनता में तेजी से विश्वास जमाते सोशल मीडिया एवं डिजिटल मीडिया को अपने नियंत्रण में लेने के प्रयास में लग गई है।

अपनी इन्हीं कोशिशों को अमली जामा पहनाने के इरादे से ही सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देते हुए सरकार ने कहा है, कि वेब-आधारित डिजिटल मीडिया पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। सरकार का कहना है कि यह वेब आधारित मीडिया हिंसा , नफरत और यहां तक कि आतंकवाद के लिए और लोगों को उकसाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से कहीं ज्यादा ज्यादा जिम्मेदार है । सरकार के हलफनामे के अनुसार डिजिटल मीडिया लोगों और संस्थानों की छवि खराब करने की क्षमता रखता है। यह सब कुछ दरअसल नियंत्रण न होने की वजह से धड़ल्ले से हो रहा है। उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का यह दूसरा हलफ़नामा है। इसके पहले दिए गए हलफनामे में भी सरकार ने कहा था कि यदि उसे मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी करना ही है तो प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं बल्कि पहले डिजिटल मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी करे।

यहबात अब किसी से छुपी नहीं रही कि देश के अधिकांश मीडिया संस्थान आम जन में तेजी से अपनी विस्वसनीयता खोते जा रहे हैं । प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही माध्यम सरकारपरस्ती और विज्ञापनों के दबाव के चलते जन सरोकार की पत्रकारिता से कोसों दूर हो चुके हैं। जो मीडिया वॉच डॉग माना जाता रहा आज वो सरकारी भोंपू की तरह जाना जाने लगा है, लोग पूरे मीडिया जगत को गोदी मीडिया से पुकारने लगे हैं। ऐसे में गैरपारंपरिक मीडिया के रूप में डिजिटल माध्यम में तेजी से जन भावनाओं और जनसरोकार को प्राथमिकता दी जाने लगी है जिसके कारण ही सूचना संचार का यह माध्म तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। इसी कारण डिजिटल मीडिया सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती और चिंता का विषय बनकर उभर रहा है।

आज देश का युवा वर्ग सूचना संचार के पारंपरिक माध्यमों से दूरी बना चुका है और वह तेजी से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध खबरों, सूचनाओं और विचारों का रुख कर चुका है।  प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को विज्ञापन और अन्य लाभ के जरिए नियंत्रित कर अपना भोंपू बना लेने वाली लरकार अब तक सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के संचार प्लेटफॉर्म पर कोई नियंत्रण नहीं कर पा रही है। समाजिक सरोकार , जनपक्षधर मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी डिजिटल प्लेटफॉर्म काफी मददगार साबित हो रहा है। डिजिटल माध्यम की न सिर्फ लोकप्रियता बल्कि विश्वसनीयता भी बहुत तेज से बढ़ रही है । यही सरकर व सत्ता पक्ष के लिए चिंता का सबब होती जा रही है।

अब तक सरकार जनभावनाओं और जनमत को लुभाने, बहकाने या बरगलाने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विज्ञापन एवं अन्य प्रलोभनों के जरिए नियंत्रण को सशक्त औजार मानती रही । अब नए परिदृश्य और बदलते दौर में तकनीकी विकास और जनमानस में आते बदलाव के चलते डिजिटल मीडिया के प्रति लोगों का रुझान जिस तेजी से बढ़ रहा है उससे सरकार के माथे पर चिंता की रेखाएं साफ महसूस की जा रही हैं। सुदर्शन चैनल पर दायर केस के बहाने सरकार डिजिटल मीडिया पर कंट्रोल करने की अपनी मंशा को पूरी करने का मौका बनाना चाह रही है।

निश्चित रूप से जनसंचार के किसी भी माध्यम में अच्छे बुरे हर तरह की धारणाओं और धाराओं का समावेश होता है। डिजिटल मीडिया भी इससे मुक्त नहीं है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि डिजिटल व सोशल मीडिया भी घृणा, नफरत के साथ साथ अफवाहों और गैरजिम्मेदाराना समाचारों , अभिव्यक्तियों की भरमार से अछूता नहीं है। कई मौंकों पर डिजिटल मीडिया की पोस्ट से सांप्रदायिक दंगों,भीड़ दवारा हिंसा, मारपीट व बलवे के दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं जिसके प्रमाण भी सोशल मीडिया पर ही मौजूद हैं।

यह भी मानना होगा कि डिजिटल मीडिया में सुधार की गुंजाइश से इंकार नहीं किया जा सकता मगर सुधार की आड़ लेकर या सुधार के नाम पर डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाना पूरी तरह असंवैधानिक व अनैतिक ही कहा जाएगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया किसी भी लोकतंत्र की पहचान होता है। हमेशा तानशाही व फासीवादी ताकतें ही मीडिया पर अंकुश लगाने और नियंत्रित करने के सभी हथकंडे अपनाती है। जनभावनाओं और विचारों को दबाने के लिए सरकार तमाम तरह के अनैतिक व असंवैधानिक तरीके अपनाने से भी नपीं हिचक रही है। इसके मूल में सरकार का भय ,असफलता और खीज ही है।

सुदर्शन चैनल के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जारी मुकदमे का सहारा लेकर सरकार आम जन की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन चुके डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने और अपना नियंत्रण स्थापित करने का दुष्प्रयास कर रही है। अभिव्यक्ति के सशक्त व जनसुलभ माध्यम पर अपनी क्षूद्र राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं और निज हितों को साधने के नाम पर अंकुश लगाने या सत्ता द्वारा नियंत्रित करने के हर प्रयास की भरपूर भत्सर्ना व सामूहिक विरोध किया जाना आवश्यक है।

jeeveshprabhakar@gmail.com

One thought on “क्या सरकार अब सोशल मीडिया और न्यूज पोर्टलों का मुँह बंद करना चाहती है ? – जीवेश चौबे”

Leave a Reply to लतिका Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *