अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटीः सर सैयद के इंतहाई जुनून के 100 साल

दुनियाभर में अपनी तालीम के लिए मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आज 100 साल की हो गई। यूनिवर्सिटी बनाने वाले सर सैयद में एक अलग ही जुनून था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास बड़ा रोचक है । 1920 में जब कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया, तब पहली चांसलर बेगम सुल्ताना को बनाया गया। वाइस चांसलर राजा महमूदाबाद को बनाया गया। यह उस समय बड़ी बात थी कि किसी महिला को यूनिवर्सिटी की कमान सौंपी गई थी।

1964 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आए थे।

आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे होने पर हो रहे समारोह में प्रधान मंत्री मोदी ने ऑनलाइन शिरकत की . सन 1964 में लाल बहादुर शास्त्री के शामिल होने के 56 साल बाद कोई प्रधानमंत्री अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के समारोह में शामिल हुआ. हालांकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का एक तबका मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर खफा भी है। साथ ही कट्टरपंथी हिन्दूओं के एक तबके में भी नाराजी है।

पिछले दिनों सीएए के खिलाफ आंदोलन के दौरान एएमयू छात्रों पर पुलिस कार्रवाई से एएमयू से जुड़े लोग काफ़ी नाराज़ रहे हैं. एएमयू के माइनॉरिटी स्टेटस पर बीजेपी के रुख़ से भी वे खुश नहीं हैं. साथ ही संघ के इतिहास पुनर्लेखन अभियान को भी वे देश की बहु सांस्कृतिक परंपराओं के खिलाफ मानते हैं. इसलिए वे इससे बहुत खुश नहीं हैं.

इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं कि ”ज़ाहिर है कि स्कॉलर्स आते हैं, यूनिवर्सिटी है. उसमें प्राइम मिनिस्टर आए या ना आएं उससे क्या फ़र्क़ दुनिया को पड़ता है. और खासकर ऐसे प्राइम मिनिस्टर आएं जो हिन्दुस्तान के पुराने कल्चर को मिसरीड कर रहे हैं. यह भी तो यूनिवर्सिटी के लिए इज़्ज़त की बात नहीं मालूम होती हमें.”

इतिहास पर नजर डालें तो अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी सर सैयद का सपना था ।  सर सैयद बनारस में सिविल जज के तौर पर पोस्टेड थे। उस दौरान उनका लंदन आना-जाना लगा रहता था। वहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी देखी हुई थीं। तब उनके जेहन में आया कि एक यूनिवर्सिटी बनाई जाए जो ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहलाए। यह सपना उनका जुनून बन गया ।

9 फरवरी 1873 को उन्होंने एक कमेटी बनाई, जिसने तमाम रिसर्च कर 24 मई 1975 को एक मदरसा बनाने का ऐलान किया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि उस समय प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने की परमिशन नहीं मिलती थी। 2 साल बाद, 8 जनवरी 1877 को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज शुरू हो गया। 1920 में जब कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया, तब पहली चांसलर बेगम सुल्ताना को बनाया गया। वाइस चांसलर राजा महमूदाबाद को बनाया गया। यह उस समय बड़ी बात थी कि किसी महिला को यूनिवर्सिटी की कमान सौंपी गई थी।

प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज पहले कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड था। बाद में वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ा। 1881 में यहां 4 लड़कों ने पोस्ट ग्रेजुएशन का इम्तिहान दिया था। उनमें से तीन फेल हो गए थे। ईश्वरी प्रसाद पहले स्टूडेंट के तौर पर पासआउट हुए थे। बाद में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। आगे चलकर वे मशहूर इतिहासकार भी हुए।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री डिपार्टमेंट के पूर्व चेयरमैन और कोआर्डिनेटर प्रो. नदीम रिजवी बताते हैं कि सर सैयद ने यूनिवर्सिटी बनाने के लिए खूब संघर्ष किया। उन्होंने पैसे इकट्ठा करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद किए। उन्होंने यूनिवर्सिटी के लिए भीख मांगी। लोगों के पास जा-जाकर चंदा इकट्ठा किया और नाटक में भी काम किया। उस समय हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सभी ने बढ़-चढ़कर चंदा दिया ।

प्रोफेसर नदीम रिजवी 1888 का एक किस्सा बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने चंदा इकट्ठा करने के लिए अलीगढ़ में एक नुमाइश में अपने कॉलेज के बच्चों का लैला-मजनूं नाटक रखवाया। उस समय लड़कियों का रोल भी लड़के किया करते थे। ऐन वक्त पर लैला बनने वाले लड़के की तबीयत खराब हो गयी, तो सर सैयद खुद पैरों में घुंघरू बांधकर स्टेज पर आ गए। दर्शकों से बोले- मैं अपनी दाढ़ी और उम्र नहीं छुपा सकता, लेकिन आप मुझे लैला ही समझें और चंदा दें। इसके बाद वे नाचने लगे। तब उन्हें वहां के कलेक्टर शेक्सपियर और मौलाना शिबली ने नाचने से रोका था। यहां तक कि यूनिवर्सिटी के लिए चंदा लेने के लिए सर सैयद तवायफों के कोठों पर भी पहुंच गए थे। जब इसकी जानकारी कट्टरपंथियों को मिली, तो उन्होंने ऐतराज जताया कि किसी शैक्षणिक संस्थान में कैसे तवायफों का पैसा लगाया जा सकता है। इसका हल निकालते हुए सर सैयद ने कहा कि इस पैसे से टॉयलेट बनाए जाएंगे। फिर मामला शांत हो गया।

प्रो. नदीम रिजवी कहते हैं कि सरकार और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा सरकार में यहां की स्टूडेंट यूनियन सरकार की नीतियों की आलोचना करती हैं। इंदिरा गांधी के समय मे भी सरकार से खूब टकराव हुआ। इंदिरा गांधी एक बार अलीगढ़ में एक शादी में शामिल होने पहुंची थीं। वे यूनिवर्सिटी में जाने वाली सड़क पर घूमना चाहती थीं, लेकिन स्टूडेंट यूनियन ने उन्हें गेट के अंदर नहीं जाने दिया। आखिरकार उन्हें वापस लौटना पड़ा। हालांकि, वे उस समय प्रधानमंत्री नहीं थीं, लेकिन केंद्र सरकार का उस समय माइनॉरिटी को लेकर कोई इश्यू चल रहा था, जिस पर स्टूडेंट यूनियन अपना विरोध कर रही थीं।

प्रो. नदीम रिजवी कहते है कि जिन भाजपा सांसद सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर पर बवाल मचाया था, वे इसी यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। उस दौरान उन्होंने उसी तस्वीर के नीचे सैकड़ों भाषण दिए हैं। यह शुरू से ही तय था कि सियासत और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कभी साथ नहीं चले।

प्रो. नदीम रिजवी कहते हैं कि 1920 में जब कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) का दर्जा मिला, तो उस समय 300 ही छात्र थे। आज यहां 30,000 छात्र हैं।

15 विभागों से शुरू हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में आज 108 विभाग हैं। करीब 1200 एकड़ में फैली यूनिवर्सिटी में 300 से ज्यादा कोर्स हैं। यहां आप नर्सरी में एडमिशन लेकर पूरी पढ़ाई कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड 7 कॉलेज, 2 स्कूल, 2 पॉलिटेक्निक कॉलेज के साथ 80 हॉस्टल हैं। यहां 1400 का टीचिंग स्टाफ है और 6000 के करीब नॉन टीचिंग स्टाफ है।

विभिन्न फीचर स्त्रोतों से जानकारी के आधार पर

One thought on “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटीः सर सैयद के इंतहाई जुनून के 100 साल”

  1. 24 मई 1975 की जगह मेरे ख़याल से 1875 होना चाहिये । दो साल बाद 8 जनवरी 1877 में कालेज शुरू हुआ तो 1975 नही 1875 होना चाहिये

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