कौन संग खेलू होली….? – प्रभाकर चौबे

व्यंग्य में प्रभाकर चौबे एक सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम रहा है। देश के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार, सुप्रसिद्ध साहित्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । लगभग 25 वर्षों तक देशबंधु समाचार पत्र में उनका नियमित व्यंग्य कॉलम “हंसते हैं रोते हैं ”प्रकाशित होता रहा।आज होली के अवसर पर पढ़ें उनका व्यंग्य- कौन संग खेलूं होली-

माफ करना, होली में राजनीति नहीं चलेगी। होली में केवल प्रेमी, प्रेमिका और रंग ही चलेगा। हमने भी सोचा कि कौन संग खेलूं होली पत्नी के साथ खेलें या प्रेमिका के साथ । दोनों का तुलनात्मक अध्ययन किया। हमने जाना कि प्रेमिका पूरक लेखा अनुदान है और पत्नी तो घाटे का बजट है। पत्नी संसद का शून्य काल है जब सदस्य को कुछ भी पूछने की छूट रहती है। प्रेमिका ध्यान आकर्षण के प्रश्न है। उसका बाप ध्यान आकर्षण प्रश्न अमान्य कर सकता है।

होली आई और वे सोचने लगती है – कौन संग खेलू होरी। उनका होलीवाला विदेश चला गया है। उस जमाने का विदेश यानिकि राजस्थान से गुजरात चले जाना। वही उनके लिए हजारों मील की दूरी था। अब की नायिका ऐसा सोचती नहीं हूं कि कौन संग खेलूं होरी। अगर सोच ले तो होली के दिन हवाई जहाज से अहमदाबाद पहुंच जाए। उनके साथ होली खेल और दूसरी प्लाइट से वापस राजस्थान । उस जमाने में विरहणी नायिका के साथ समस्या थी कि कौन संग खेलूं होली। मुझे लगता है कि विरहणीयों के दुख दूर करने के लिए ही राईट बंधुओं ने हवाई जहाज का आविष्कार किया। ले, आंसू बंद कर। हवाई जहाज में बैठकर हर होली में उनके पास पहुंच जाया कर। हवाई जहाज आया है तभी से विरहणी नायिकाएं गायब हुई है। अब हिन्दी काव्य में चिड़िया होती है, विरहणियां नहीं ।

एक तरफ वे आंसू ढरकाती हुई नायिकाएं थी जिन्हें होली खेलने वाला नहीं मिल रहा था और वे रोती हुई अपनी सखी से कहती थी – कौन संग खेलू होली। और दूसरी ओर हमारे सदाबहार कृष्ण लला थे। कृष्ण की भी यही समस्या थी कि – कौन संग खेलूं होली। यानिकी कई हैं, किसके साथ खेलूं। वैसे कृष्ण के साथ परमानेन्टली राधा होली खेलती ही थी। होली आई और राधा को कृष्ण के साथ देख लो। जैसे हमारे क्षेत्र के किशुन भइया – चुनाव आया और फार्म भरा।

राधा कृष्ण की प्रमेकिा थीं। दोनों होली खेलते थे। इसी से यह सिध्द हो जाता है कि पत्नी की अपेक्षा प्रेमिका के साथ होली खेलना अच्छा होलिहार होना है। हमारे हिन्दी के सुप्रसिध्द कथाकार और चिंतक जैनेन्द्र कुमार ने भी कहा है कि प्रेमिका रखनी चाहिए। जब आदमी चिंतक हो जाता है तब कुछ न कुछ तो चिंतन करता ही है। अब इसी बात का चिंतन करने लगे कि ये तारे क्या हैं और ये आसमान में किस तरह लटके हैं। युगों से यह चिंतन हो रहा है और तारे वहीं लटके हुए हैं। इनके चिंतन का इन तारों पर कोई असर नहीं हुआ। असर हुआ होता तो एकाध तारा आकर बता देता कि वह तारा ही है। और आसमान में इसलिए लटके हैं कि उन्हें देखरक ही प्रेमी अपनी प्रेमिका से कह सके कि आसमान से तारे तोड़कर लाऊंगा। तारे भी इस आशा में लटके हैं कि कोई तोड़कर धरती पर ले जाए। तो तारों के आसमान पर लटके रहने से तारों को और प्रेमियों को दोनों को लाभ हो रहा है। तारा तो तोड़ लिए जाने की आशा में लटका है और प्रेमी उन्हें दिखादिखाकर तोड़कर लाने का वायदा अपनी प्रियतमा से कर लेता है। वैसे आजादी के बाद आसमान के तारे हमारे नेताओं के अधिक काम आ रहे हैं। वे चुनाव से पहले अपने करदाताओं को आसमान के तारे दिखाते हैं औ चुनाव के बाद उनके आसवासन आसमान में लटक जाते है।

माफ करना, होली में राजनीति नहीं चलेगी। होली में केवल प्रेमी, प्रेमिका और रंग ही चलेगा। हमने भी सोचा कि कौन संग खेलूं होली पत्नी के साथ खेलें या प्रेमिका के साथ । दोनों का तुलनात्मक अध्ययन किया। हमने जाना कि प्रेमिका पूरक लेखा अनुदान है और पत्नी तो घाटे का बजट है। पत्नी संसद का शून्य काल है जब सदस्य को कुछ भी पूछने की छूट रहती है। प्रेमिका ध्यान आकर्षण के प्रश्न है। उसका बाप ध्यान आकर्षण प्रश्न अमान्य कर सकता है। पत्नी स्पिन लेती हुई पिच है । बाल किधर करें यह पता नहीं चलता । जरा भी ध्यान हटा और आऊ ट । प्रेमिका उछाल हुई पिच है। हिट लगाओं और दोनों चांदलोक की सैर करने लगो। प्रेमिका प्रेम की पहली पाठशाला है और पत्नी फेल होने का सर्टीफिकेट है। प्रेमिका केवल गेैस पेपर है और पत्नी पुनर्मूल्यांकन के बाद का नंबर है। प्रेमिका बिहारी की कविता है तो पत्नी विनय पत्रिका बला देने वालू लेथ मशीन है।

हम यही सोचते रहे कि कौन संग खेलूं होली। क्योंकि प्रेमिका रूकावाट के लिए खेद है तो पत्नी तीन घंटे की लगातार रील है। प्रेमिका तो भाषाशास्त्र से शुरू होकर समाजशास्त्र के संबंध में समाप्त होती है। और पत्नी समाजशास्त्र से ही शुरू होती है और अर्थशास्त्र में रूकती है। प्रेमिका उपभोक्ता की बचत नियम है तो पत्नी क्रमागत उपयोगिता हास नियम है। प्रेमिका मित्र का उधार की तरह है और पत्नी विश्व बैंक का कर्जा है जो अपनी शर्त मनवा लेता है। प्रेमिका अजहरूद्दीन की बैटिंग है – कलात्मक खेल और सम्भावनाएं । पत्नी तो एकदम से मार्शल की बालिंग है- बाल सीधे बाऊंस होकर सिर पर पड़ता है। प्रेमिका टैक्स फ्री फिल्म है- जो अधिक खिंचती नहीं और पत्नी एक ही टाकीज में चलने वाली बाक्स आफिस हिट फिल्म है। प्रेमिका चुनाव के  पूर्व नेता की तरह है और पत्नी चुनाव के बाद बन गए मंत्री है। प्रेमिका फुल वातानुकुलित कम्पार्टमेन्ट है और पत्न बैशाख जेठ में नदी की रेत पर चलना है। प्रेमिका सुपर फास्ट है तो पत्नी शादी के दूसरे दिन 1856 का माडल हो जाती है जिसकी रोज रिपेयरिंग करनी पड़ती है। प्रेमिका तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है और पत्नी कभी पंजाब है तो कभी असम । कभी नागालैंड है तो कभी मिजोरम । सत्ता इन्हें ही सौंपो और समझौता करते रहो।

प्रेमिका तो केवल वनमेन शो है लेकिन पत्नी पूर बटालियन का आक्रमण है। साला, साली, सास, ससुर एक साथ राकेट, मिसाइल मोरर्टार से हमला। प्रेमिका पत्रिका में पहली बार छपी कविता है जिसे बगल में दबाए घूमते हैं और यार दोस्तों पर रूतबा जमाते हैं। पत्नी कंधे पर लटका खाली थैला है कंधे झूका देता है। प्रेमिका ऐसा सवाल है जिसका कोई जवाब नहीं।

सिर पर बैठे बेताल की तरह सवाल पूछने वाली होती है और तुम्हें विक्रम की तरह केवल जवाब देना होता है- लेकिन याद रहे, तुमने सही जवाब दिया और वह गायब । प्रेमिका तो साल का बोनस है और पत्नी वार्षिक वेतन वृध्दि है। प्रेमिका समझती है कि वह बसंत में खिली पहली कली है। पत्नी समझती है वह ऐसी फूलों की माला है जो निखट्टू के गले में पड़ी है। प्रेमिका प्रेम का शिलान्यास और पत्नी शिलान्यास पर उद्धाटन भाषण है जिंदगी भर सुनना पड़ता है।

प्रेमिका  ”बहत मलय समीरा”- है तो पत्नी  ”वह शक्ति हमें दो कृपा निधे,र् कत्तव्य मार्ग पर डटे रहें हैं। पत्नी तो- इस ओर प्रिय तुम हो जग है, उस पार न जाने क्या होगा- है तो पत्नी उस पर भूल गए राग रंग भूल गए तिकड़ी है। प्रेमिका सौ मीटर की दौड़ है – एक बार दौड़ लो। पत्नी मैराथान रेस है- जिंदगी भर दौड़ते रहो हाफ्ते हुए। प्रेमिका श्रृंगर सदन है तो पत्नी किराना दुकान है। प्रेमिका नोट्रेस पासिंग का साईन बोर्ड है और पत्नी है सड़क बंद, काम चालू का साईन बोर्ड । प्रेमिका प्रेम की सांकरी गली है तो पत्नी ट्रेफिक कांट्रोल करती हुई पुलिस जरा भी साईड बदला और चालान हुए। प्रेमिका हिसाब की पुरानी खाताबही है तो पत्नी एकदम कम्प्यूटर है – दस रुपए किसे दिए पूछने वाली। प्रेमिका कोट के कालर होल में फूल खांसती है और पत्नी कमीज का काज-बटन सीती है। प्रेमिका अपने प्रेमी में सम्भावना टटोलने वाली आंख है तो पत्नी इन्हें कुछ नहीं आता का घोषणा पत्र जारी कर देनो वाला यथार्थ है। प्रेमिका एक अशासकीय विधेयक है। और पत्नी राष्ट्रपति की अधिसूचना है। प्रेमिका और पत्नी दो महाशक्तियों सामने पड़ जावे तो विकासशील तटस्थ राष्ट्र की मुद्रा अख्तियार करके ही अपने प्रभुता सम्पन्न गणराज्य की सुरक्षा कर सकते हो।

यह तुलनात्मक अध्ययन की प्रति आपको सौपता हूं – आप तय कीजिए कि कौन संग खेलूं होरी …।

(पूर्व प्रकाशित व्यंग्य)

One thought on “कौन संग खेलू होली….? – प्रभाकर चौबे”

Leave a Reply to लतिका Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *