लोगों की आवाज़ कुचलने राजद्रोह लगाकर दमन की कोशिश की जा रही है : जस्टिस लोकुर

कई लोग अपनी आवाज़ उठा रहे हैं लेकिन सरकारें सोचती हैं कि वे ऐसा करके अपनी हदों को पार कर रहे हैं। तो लोग क्या कर सकते हैं। वे सड़कों पर नहीं जा सकते और हिंसा नहीं कर सकते। वे केवल अपनी बात को कहना जारी रख सकते हैं । आवाज़ उठाने पर राज्य सरकारें उन पर राजद्रोह का मुक़दमा लगा देती हैं। उन्होंने कहा, ‘राजद्रोह का इस्तेमाल लोगों की आवाज़ को सख़्ती से कुचलने के लिए किया जा रहा है।

कई अहम मसलों पर न्यायपालिका को भी कटघरे में खड़े करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा है कि लोगों की आवाज़ को दबाया जा रहा है। पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के कारण हज़ारों लोगों को जेल में डाल दिया गया है। जस्टिस लोकुर ने जेएनयू के छात्र उमर ख़ालिद को गिरफ़्तार किए जाने की निंदा की। ख़ालिद पर दिल्ली दंगों की साज़िश रचने का आरोप है।

जस्टिस लोकुर ‘फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच एंड ज्युडिशरी’ विषय पर सोमवार को हुए सेमिनार में बोल रहे थे। इस वेबिनार का आयोजन कैम्पेन फ़ॉर ज्यूडिशल अकाउंटिबिलिटी और स्वराज अभियान एनजीओ की ओर से किया गया था।

विदित हो कि आम आदमी के मसलों को लगातार उठाने वाले पूर्व जस्टिस लोकुर ने दिल्ली में इस साल फ़रवरी में हुए दंगों को लेकर 4 हफ़्ते बाद एफ़आईआर दर्ज होने को लेकर नाराजगी जताई थी। जस्टिस लोकुर ने कहा था कि क्या यह न्याय है। उन्होंने कहा था कि दिल्ली में ताक़तवर लोगों द्वारा भड़काऊ भाषण और नारे लगाए गए और ऐसे मामलों में पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। जबकि दूसरी तरफ़ कमज़ोर लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उनको सलाखों के पीछे धकेल दिया गया। 

जस्टिस लोकुर ने कहा कि लोगों द्वारा अपनी आवाज़ उठाने पर राज्य सरकारें उन पर राजद्रोह का मुक़दमा लगा देती हैं। उन्होंने कहा, ‘राजद्रोह का इस्तेमाल लोगों की आवाज़ को सख़्ती से कुचलने के लिए किया जा रहा है। राजद्रोह देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों पर लगाया जाता था।’ 

पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा भाषण जो देश की एकता और अखंडता की बात करता हो, उसे देश तोड़ने वाला करार दिया जा रहा है और ऐसी बातें कहने वालों को नज़रबंदी या हिरासत में रखा जा रहा है। 

जस्टिस लोकुर ने कहा, ‘कुछ युवा, छात्र जिससे देश के लिए कुछ बेहतर हो सके, उस बात को उठा रहे हैं लेकिन आप कहते हैं कि हम आपको गैर-कानूनी गतिविधियों और राजद्रोह के लिए गिरफ़्तार कर रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हिंसा की बात करते हैं और आप उनके ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं करते।’ हालांकि जस्टिस लोकुर ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा डॉ. कफ़ील की ओर था, जिन्हें 8 महीने तक नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जेल में बंद रखा गया था। 

योगी सरकार ने डॉ. कफ़ील की रिहाई रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार से तुरंत उन्हें रिहा करने के लिए कहा। जस्टिस लोकुर ने सवाल उठाया कि किसी को अवैध रूप से क़ैद में रखने जाने से उस शख़्स को हुए नुक़सान की भरपाई कौन करेगा। 

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ हाल ही में चले अवमानना के मामले को लेकर जस्टिस लोकुर ने कहा कि भूषण की कोई भी मंशा न्यायपालिका के ख़िलाफ़ जाने की नहीं थी। 

पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा का सदस्य नियुक्त होने के बाद भी लोकुर ने इसे लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि क्या आख़िरी क़िला भी ढह गया है? उनका यह बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता के संदर्भ में आया था क्योंकि गोगोई ने चीफ़ जस्टिस रहते हुए ही कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों की नियुक्ति न्यायपालिका की आज़ादी पर ‘धब्बा’ है। 

एजेंसियां

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