
समीरात्मज मिश्र
कुछ जानकार आगरा के मुगल म्यूजियम का नाम शिवाजी के नाम पर रखे जाने पर हैरान हैं. आखिर मराठों का और छत्रपति शिवाजी का आगरा से क्या लेना-देना है? कुछ कहते हैं, “इस नाम बदलाव का कोई बौद्धिक आधार तो है नहीं. राजनीतिक आधार है और उसे मुख्यमंत्री ने भी स्पष्ट कर दिया है. रही बात नाम बदलकर शिवाजी के नाम पर करने की, तो शिवाजी आदर्श हो सकते हैं, पूज्य हो सकते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और आगरा से उनका जबरन रिश्ता तो नहीं जोड़ा जा सकता.”
आगरा में ऐतिहासिक ताजमहल के पूर्वी गेट से करीब डेढ़ किमी दूर बन रहे इस संग्रहालय परियोजना को अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार ने साल 2015 में मंजूरी दी थी. इसके लिए ताजमहल के पास छह एकड़ जमीन दी गई थी और इस संग्रहालय में मुगल संस्कृति, कलाकृतियों, चित्रों, भोजन, वेशभूषा, उस युग के हथियार जैसी चीजों को प्रदर्शित किया जाना था. पांच साल बीत जाने के बावजूद इस परियोजना में कुछ खास प्रगति नहीं हो पाई है.
निर्माण कार्य में तेजी लाने के निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि अब ना सिर्फ मुगल साम्राज्य के इतिहास से संबंधित चीजें इस संग्रहालय में रहेंगी बल्कि शिवाजी का इतिहास भी संग्रहालय में संरक्षित किया जाएगा. भारत में मुगल वंश ने 1526 से लेकर 1857 तक (बीच में कुछ समय छोड़कर) शासन किया था. मुगलों ने आगरा में ताजमहल और दिल्ली में लाल किला समेत तमाम ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया था.
आगरा और शिवाजी?
मराठा शासक छत्रपति शिवाजी अपने जीवन के ज्यादातर समय में मुगलों से युद्ध करते रहे. शिवाजी ने साल 1674 में पश्चिमी भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी. साल 1674 में रायगढ़ को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया और एक मजबूत सेना का गठन किया. उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की एक नई शैली भी विकसित की और जीवन भर मुगल शासक औरंगजेब से लोहा लेते रहे.
लेकिन कुछ जानकार आगरा के मुगल म्यूजियम का नाम शिवाजी के नाम पर रखे जाने पर हैरान हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर सवाल करते हैं कि आखिर मराठों का और छत्रपति शिवाजी का आगरा से क्या लेना-देना है? वह कहते हैं, “इस नाम बदलाव का कोई बौद्धिक आधार तो है नहीं. राजनीतिक आधार है और उसे मुख्यमंत्री ने भी स्पष्ट कर दिया है. रही बात नाम बदलकर शिवाजी के नाम पर करने की, तो शिवाजी आदर्श हो सकते हैं, पूज्य हो सकते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और आगरा से उनका जबरन रिश्ता तो नहीं जोड़ा जा सकता.”
वहीं विपक्ष का आरोप है कि योगी सरकार शहरों और ऐतिहासिक इमारतों के नाम बदल कर अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है. समाजवादी पार्टी की नेता जूही सिंह कहती हैं कि सरकार के पास उपलब्धियों के नाम पर कुछ है नहीं, इसलिए वह नाम बदलकर ही कुछ श्रेय पाने की कोशिश करती है. जूही सिंह कहती हैं, “सरकार इसके जरिए कुछ खास वर्ग को संदेश भले ही देना चाहती है लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि देश और प्रदेश की बहुसंख्यक जनता इस तरह की धार्मिक कट्टरता को बर्दाश्त नहीं करती है और संविधान के बताए सेक्युलर मार्ग का ही पालन करती है.”
नाम में क्या रखा है
यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने करीब साढ़े तीन साल के शासनकाल में कई शहरों के भी नाम बदल दिए जिनमें ऐतिहासिक शहर इलाहाबाद और फैजाबाद का नाम भी शामिल है.
साल 2018 में योगी आदित्यनाथ ने दीपावली के मौके पर फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या करने की घोषणा की थी. घोषणा के चंद दिनों बाद ही कैबिनेट में प्रस्ताव रखा गया और इस पर आधिकारिक मुहर लगा दी गई. अब फैजाबाद जिला अयोध्या हो गया है.
सीएम योगी ने साल 2018 के अंत में इलाहाबाद शहर का भी नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया था जबकि उससे पहले मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर कर दिया था. इलाहाबाद में जिले का नाम बदलने के अलावा मंडल का नाम भी बदल दिया गया. कोशिश तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय और हाईकोर्ट का नाम बदलने की भी हुई लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है. हां, रेलवे स्टेशन का नाम भले ही बदलकर प्रयागराज कर दिया गया है.
बीजेपी के कुछ नेता कई अन्य ऐसे शहरों के नाम बदलने की भी मांग करते रहे हैं जिनके नाम इस्लामी नामों पर आधारित हैं. इनमें लखनऊ का नाम लक्ष्मणपुर करने, आजमगढ़ का नाम आर्यमगढ़ करने और सुल्तानपुर का नाम कुशभवनपुर करने की मांग समय-समय पर उठती रहती है. यहां तक कि आगरा का नाम बदलकर अग्रवन करने की मांग भी आए दिन होती रहती है.
आगरा शहर की स्थापना साल 1504 लोदी साम्राज्य के शासक सिकंदर लोदी ने की थी और इसे अपनी राजधानी बनाया था. बाद में कई मुगल शासकों ने भी आगरा को ही अपनी राजधानी बनाए रखा. बाद में मुगल शासक शाहजहां ने राजधानी को फिर से आगरा से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया. आगरा में ताजमहल के अलावा फतेहपुर सीकरी, एतमादुद्दौला का मकबरा, आगरा किला जैसी कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्हें देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं.
साभार dw news