दिल बेचारा जॉन ग्रीन की किताब द फॉल्ट इन आवर स्टार्स का आधिकारिक रीमेक है। इस पर हॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है। बतौर निर्देशक यह मुकेश छाबरा की पहली फिल्म है। उन्होंने पटकथा के सभी किरदारों को स्क्रीन पर अच्छा मौका दिया है। जब मुकेश छाबरा ने फिल्म की घोषणा की थी, तभी से इससे काफी उम्मीदें बंध गई थी। बॉलीवुड में हालांकि इससे पहले भी कैंसर को लेकर आनंद,सफर, अंखियों के झरोखों से, कल हो ना हो जैसी कई फिल्में बन चुकी हैं।
फिल्म को देखकर भावुक ना होना, शायद सुशांत सिंह के किसी भी फैन के लिए संभव न होगा। फिल्म में मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) होंठो पर मुस्कान और आंखों में जिंदगी लिये कहता है- ‘जन्म कब लेना है और मरना कब है, ये हम डिसाइड नहीं कर सकते.. लेकिन कैसे जीना है वो तो हम डिसाइड कर सकते हैं..’ यह सुनते ही दिमाग में सुशांत की याद सामने आ जाती है, जब इस सितारे ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। फिल्म देखते हुए आंखें नम होती है।
फिल्म की कहानी कहानी में काफी कम किरदार हैं, जहां हीरो और हीरोइन हैं किज्जी बासु (संजना सांघी) और इम्मानुअल राजकुमार जूनियर उर्फ़ मैनी। दोनों एक दूसरे से बिल्कुल जुदा हैं और इनकी मुलाकात कॉलेज फेस्ट के दौरान होती है। किज्ज़ी थाइरॉयड कैंसर से पीड़ित है। वह मजबूत है लेकिन खुद में सिमटी रहना पसंद करती है, उसे मालूम है कि उसकी ज़िंदगी औरों से अलग है। वहीं रजनीकांत फैन मैनी एक जिंदादिल और मसखरी पसंद लड़का है। दोनों के बीच लगातार मुलाकातें होती हैं और इस दौरान किज्ज़ी को मालूम पड़ता है कि मैनी कैंसर सरवाइवर रह चुका है। चंद मुलाकातों के बाद ही दोनों में प्यार हो जाता है। लेकिन यह प्यार एक दूसरे के लिए जान देने वाला प्यार नहीं, बल्कि एक दूसरे की मजबूत कड़ी बनकर साथ जिंदगी जीने वाला है। दोनों के कुछ ख्वाब हैं, जिन्हें वो एक दूसरे के लिए पूरा करते हैं। मैनी किज्ज़ी की ज़िंदगी में प्यार लेकर आता है, उसे खुलकर जिंदगी जीने का सलीका सिखाता है। जो शायद हर इंसान के लिए किसी सबक की तरह है।
मुकेश छाबरा ने फिल्म में सुशांत का एक अलग अंदाज लोगों के सामने पेश किया है, जहां वो कॉमेडी, रोमांस, इमोशनल हर तरह की भावनाओं को निभाते दिखे हैं। ‘दिल बेचारा’ का मैनी कुछ कुछ सुशांत सिंह राजपूत जैसा ही लगता है। उसकी दिल जीतने वाली हंसी, तेज दिमाग, स्मार्ट और बेहद इमोशनल।
हालांकि पठकथा कमजोर है जिसे ए आर रहमान का संगीत और बेहतरीन स्टारकास्ट बचाती है। कमजोर पटकथा के बीच भी उन्होंने किज्जी- मैनी और परिवार के बीच कुछ यादगार लम्हे बुने हैं। सत्यजीत पांडे की सिनेमेटोग्राफी बढ़िया है। जमशेदपुर और पेरिस की खूबसूरती के बीच लीड किरदारों को बेहतरीन दिखाया गया है।
संगीत फिल्म का संगीत एआर रहमान ने दिया है, जो सीधे दिल से कनेक्ट करता है। गीतकार हैं अमिताभ भट्टाचार्य। रहमान की संगीत में एक खास बात है कि वह धीरे धीरे खुमार की तरह चढ़ती है, इस फिल्म के गाने भी लंबे समय तक आपके दिमाग में चलते रहेंगे। फिल्म का टाइटल ट्रैक ‘दिल बेचारा’, मसखरी, तारे गिन कानों को सुकून देता है। फिल्म के एल्बम में कुल 8 गाने हैं।
‘दिल बेचारा’ देखना सुशांत सिंह राजपूत के लिए एक श्रद्धांजली की तरह है। मैनी की तरह ज़िंदादिल सुशांत को आप दिल में रखना चाहते हैं। फिल्म की बेहतरीन स्टारकास्ट के लिए ‘दिल बेचारा’ देखी जा सकती है। ना सिर्फ सुशांत की आखिरी फिल्म, बल्कि सुशांत की बेहतरीन अदाकारी के लिए भी दर्शक हमेशा इस फिल्म को याद रखेंगे।
निर्देशक- मुकेश छाबरा कलाकार- सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, स्वास्तिका मुखर्जी, साश्वता चटर्जी प्लेटफॉर्म- डिज़्नी+हॉटस्टार