स्मृतिशेष सौमित्र चटर्जी: वैचारिक भिन्नताओं से परे एक अभिनेता जिसके जाने का दुख सबको है

नित्यानंद गायेन

सिंगुर-नंदीग्राम घटना के बाद से जब पश्चिम बंगाल में वाम दलों का ख़राब समय शुरू हुआ और तमाम बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता दल बदल करने लगे उस कठिन समय में भी सौमित्र चटर्जी वाम दलों के पक्ष में खड़े रहें अविचल होकर. मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी भी एक समय तृणमूल के समर्थन में आ गयी थीं पर सौमित्र ने अपनी वाम वैचारिक दृष्टि‍ और सोच के साथ कोई समझौता नहीं किया.

माणिक दा यानी सत्यजित राय के चहेते अभिनेता सौमित्र चटर्जी 15 नवंबर को दोपहर 12 बज कर 15 मिनट पर विदा हो लिए. सौमित्र चटर्जी उर्फ फेलुदायानी सत्यजित राय के शेरलॉक होम्सके निधन से न केवल बांग्ला सिनेमा में रिक्त स्थान पैदा हुआ है बल्कि पूरे भारतीय सिनेमा ने एक लेजेंड को हमेशा के लिए खो दिया है.

सौमित्र चटर्जी आखिरी सांस तक एक कम्‍युनिस्ट रहे, हालांकि आधिकारिक रूप से वे किसी पार्टी के कार्ड होल्डर अथवा सदस्य नहीं थे, किंतु वे अक्सर सीपीआइ के मुखपत्र ‘गणशक्ति’ में लिखा करते थे.

दादा साहब फाल्के अवार्ड विजेता अभिनेता सौमित्र चटर्जी ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर का विरोध करते हुए मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान में हिस्सा लिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौमित्र चटर्जी की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट कर लिखा है: श्री सौमित्र चटर्जी का निधन विश्व सिनेमा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और पूरे देश के सांस्कृतिक जीवन के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उनके निधन से अत्यंत दुख हुआ है. परिजनों और प्रशंसकों के लिए मेरी संवेदनाएं. ओम शांति!

गृहमंत्री अमित शाह ने भी लेजेंड अभिनेता की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है. याद रखें कि बंगाल में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं.

सिर्फ बांग्ला फिल्मों में काम करने के बाद भी वे कितने बड़े और व्यापक थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तमाम वैचारिक सीमाओं के बाहर पूरा भारत उनकी मौत से आहत है. हिंदी फिल्म उद्योग के तमाम कलाकारों से सौमित्र चटर्जी की मौत पर शोक व्यक्त किया है.

सिंगुर-नंदीग्राम घटना के बाद से जब पश्चिम बंगाल में वाम दलों का ख़राब समय शुरू हुआ और तमाम बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता दल बदल करने लगे उस कठिन समय में भी सौमित्र चटर्जी वाम दलों के पक्ष में खड़े रहें अविचल होकर. मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी भी एक समय तृणमूल के समर्थन में आ गयी थीं पर सौमित्र ने अपनी वाम वैचारिक दृष्टि‍ और सोच के साथ कोई समझौता नहीं किया.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस बात से वाकिफ़ थीं, किन्तु सौमित्र का विरोध या अपमान वे नहीं कर सकती थीं. ममता बनर्जी सौमित्र चटर्जी का बहुत सम्मान करती थीं. उनकी मृत्यु से वे आज बहुत आहत हैं और जब तक सौमित्र अस्पताल में भर्ती थे, वे लगातार उनका हालचाल लेती थीं और फिक्रमंद थीं.

सौमित्र चटर्जी शायद अपने पीढ़ी के आखिरी और एकमात्र कलाकार थे जिनकी मृत्यु पर विचारधारा से परे तमाम राजनीतिक दलों और फिल्म जगत के हस्तियों ने शोक प्रकट किया है.

सौमित्र चटर्जी का जन्म 1935 में कृष्ण नगर में हुआ था. उनके पिता मोहित कुमार चटर्जी कोलकाता हाई कोर्ट में वकील थे और वे नाटकों में अभिनय भी किया करते थे. यहीं से बालक सौमित्र पर अभिनय का प्रभाव पड़ा था. कोलकाता (तब कलकत्ता) के सिटी कॉलेज से आइएससी और बांग्ला साहित्य में ऑनर्स करने के बाद दो साल पीजी की पढाई के बाद वे सिनेमा में आ गये.

सौमित्र चटर्जी का फ़िल्मी सफ़र शुरू हुआ था 1959 में सत्यजित राय द्वारा निर्देशित ‘आपुर संसार’ से. सत्यजित राय की 34 फिल्मों में से 14 फिल्मों में सौमित्र चटर्जी ने काम किया है. यह बांग्ला चलचित्र इतिहास में एक रिकार्ड है.

सौमित्र ने 6 दशक यानी 61 साल तक सक्रि‍य अभिनेता के तौर पर 300 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया. सत्यजित राय के अलावा उन्होंने मृणाल सेन, तपन सिन्हा, अजय कर, तरुण मजूमदार के अलावा सुजित घोष जैसे नये और युवा निर्देशक के साथ भी काम किया है.

उत्तम कुमार को बांग्ला सिनेमा का ‘महानायक’ कहा जाता है और उनके समय में सौमित्र ने अपनी अलग छवि बनाई थी. इसका श्रेय सत्यजित राय को जाता है. सौमित्र सत्यजित राय के प्रिय अभिनेता थे, हालांकि सौमित्र से उत्तम कुमार उम्र में बड़े थे और बांग्ला कमर्शियल सिनेमा पर उनका लगभग एकाधिकार था. बावजूद इसके सौमित्र चटर्जी अपने दम पर टालीगंज में बने रहे. दोनों ने कुछ एक फिल्मों में साथ काम भी किया जिनमें से एक उल्लेखनीय फिल्म है ‘स्त्री’.

सौमित्र हिंदी सिनेमा में क्यों नहीं आये? यह सवाल कई लोगों के हो सकते हैं. इसका जवाब यह हो सकता है कि बांग्ला फिल्म उद्योग में उनका अधिकार हो चुका था और शायद उन्हें पता था कि वे हिंदी सिनेमा के लिए फिट नहीं थे

सत्यजित राय के साथ फेलूदासीरिज में काम करते हुए उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता मिली और उनकी छवि फेलूदा की बन गयी. पर्दे पर अभिनय के साथ-साथ वे समान रूप से नाटक और थियेटर में लगातार सक्रि‍य रहे, इतना ही नहीं कई नाटक लिखे और निर्देशन भी किया.

सौमित्र चटर्जी न केवल अच्छे अभिनेता थे बल्कि वे एक कवि और लेखक भी थे. उनकी एक दर्जन से अधिक किताबें प्रकाशित हैं जिनमें कई कविता और नाटक संग्रह शामिल हैं.

साल 2004 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और 2012 में उन्हें दादा साहेब फाल्के सम्मान मिला. इसी साल उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. 

सौज- जनपथः लिंक नीचे दी गई है-

https://junputh.com/voices/octogenarian-bangla-actor-saumitra-chatterjee-demise-obituary/

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