सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास ‘हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’ को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि ‘भिलाई इप्टा’ द्वारा इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतर का काफी मंचन किया गया है । (जीवेश चौबे-संपादक)
प्रस्तुत है इस उपन्यास की पहली किश्तः- बनाया राजा ने ज्ञानमंडल
1- बनाया राजा ने ज्ञानमंडल
राजप्रसाद के बाहर मंत्री, सेनापति, दीवान, खजांची चिंता में खड़े थे।
सेनापति ने कहा-मंत्री महोदय, क्या बात है, महाराज आज अभी तक सोकर नहीं उठे, रोज प्रात:काल उठ जाते थे।
दीवान ने कहा-मंत्री महोदय, आप अंदर जाकर पता लगाकर आइए।
मंत्री महल के अंदर गए। महाराजा अपने कक्ष में कुर्सी में बैठे दीवार की ओर एकटक देख रहे थे, मानों शून्य में देख रहे हों, या शरीर में जान न हो।
मंत्री ने अभिवादन कर कहा-महाराज, दिन के ग्यारह बजने को आए, आप अभी तक कक्ष में बैठे हैं। बाहर सेनापति, दीवान, खजांची और दीगर प्रशासनिक अधिकारी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
महाराजा ने कहा-मंत्री जी, हम परेशान हैं। मन चंचल है। कुछ अच्छा नहीं लग रहा। किसी काम में मन नहीं लगता।
मंत्री ने पूछा-ऐसा क्यों महाराज, राजवैद्य को बुलाते हैं।
महाराज ने कहा-राजवैध नहीं, मंत्रीजी यह बताइए कि राजविदूषक कहाँ है। पंद्रह दिन हो गए, हमारा मन वही बहलाता है। विदूषक ही हमें नई ऊर्जा देता है।
मंत्री ने कहा-महाराज, विदूषक जी तो कवि सम्मेलन में दुबई गए हैं, वहाँ से अमेरिका जाने का प्रोग्राम था उनका।
महाराज बोले-विदूषक कहीं भी हों, उन्हें तुरंत बुलाइए-ई-मेल भेजिए, मोबाइल लगाइए। कहिए कि वे पहली फ्लाइट से रवाना हों।
मंत्री जी ने जी महाराज कहा और बाहर आए। सेनापति, दीवान, खजांची उन्हें घेर कर खड़े हो गए।
मंत्री ने कहा-महाराजा विदूषक विछोह पीत्रिडत हैं। दीवानजी आप विदुषक को मोबाइल कर महाराजा का संदेश दीजिए। कल यहाँ आ जाएँ, ऐसा निर्देश दीजिए।
दूसरे दिन विदूषक राजधानी पहुँच गए। हवाई अड्डे से सीधे राजप्रासाद पहुँचे और महाराजा के सामने हाजिर हो गए।
महाराजा ने कहा-कहाँ चले जाते हो विदूषकजी। पंद्रह-पंद्रह दिन नहीं मिलोगे तो राजकाज कैसे चलेगा। इस राज को तुम विदूषक ही चला रहे हो।
विदूषक ने कहा-सर, आप ठीक कह रहे हैं। कवि सम्मेलन का ऑफर दुबई और अमेरिका से मिल गया था। वहाँ भी कुछ विदूषक हैं, वे अपने को बुला लेते हैं। और अपने बायोडॉटा में विदेशों में कविताएँ पत्रढीं, ऐसा जुत्रड जाएगा, इसलिए कवि सम्मेलन में विदेश चला गया।
महाराजा ने कहा-तुम विदेश न भी जाओ विदूषक जी, तो भी हम प्रजा व प्रबुध्दजनों से कहेंगे कि हमारे राजविदूषक विदेश हो आए हैं, तो कौन हमारे कथन को काट सकता है। राजा का प्रमाणपत्र अकाट्य व सर्वमान्य होता है।
विदूषक के कहा-गलती हुई महाराज। अब बताइए, आप चिंतित क्यों हैं। आपका मुखकमल क्यों कुम्हला गया है। क्या सोच रहे हैं।
महाराज ने कहा-विदूषकजी, हम बहुत परेशानी में पड़ गए हैं। राज्य में राशन की कमी हो गई है। प्रजा चिल्ला रही है। राज्य के हर छिद्र में भ्रष्टाचार घुस गया है। शिक्षा को जूत्रडीताप हो गया है। बीमारियों का इलाज करने वाले खुद बीमार है। अपराधी छुट्टा घूम रहे हैं। सर्वत्र जा हमारा मुर्दाबाद कर रही है। किसी दिन विद्रोह न कर दे प्रजा।
विदूषक ने पूछा-आपके सभासद क्या कर रहे हैं?
महाराजा ने कहा-पिछले साल तीन बार उनका वेतन और भत्ता बढ़ा दिया मैंने। लेकिन वे फिर भी असंतुष्ट हैं। षडयंत्र में लगे हैं। वे प्रजा के पास नहीं जाते, रथ में बैठे सैर करते हैं और सुरक्षा के लिए बीस-बीस अस्त्रधारियों को साथ ले चलते हैं। अब तुम ही कुछ करो विदूषक जी। हमें अपने प्यारे विदूषक पर ही भरोसा है।
विदूषक ने कहा-महाराज, अब आप चिंता छोत्रिडए। इस विदूषक के रहते राजप्रमुख परेशानी में पत्रडे। यह नहीं हो सकता।
महाराज ने कहा-तुम पर हमें भरोसा है।
विदूषक ने कहा-महाराज महोदय, अपने देश में राजाओं द्वारा विदूषक रखने की लम्बी परम्परा है। हर राज्य में एक राज-विदूषक होता रहा है।
महाराज ने कहा-प्रजा के आक्रोश को शांत करने का उपाय बताओ विदूषक जी।
विदूषक ने कहा-महाराज, उपाय एकदम आसान है। राज्य के लिए आप ज्ञानमण्डल का गठन कर दीजिए।
महाराज ने कहा-क्या कहते हो विदूषक जी, जनता अनाज माँग रही है और तुम ज्ञानमण्डल के गठन का सुझाव दे रहे हो। ज्ञान मण्डल के गठन से क्या होगा?
विदूषक ने कहा-महाराज, ज्ञानमण्डल सब बीमारियों का इलाज कर देगा।
महाराज ने पूछा-कैसे?
विदूषक ने कहा-महाराज, आप ज्ञान मण्डल के गठन की घोषणा कीजिए। आज दूरदर्शन पर राज्य की प्यारी प्रजा के नाम संदेश दीजिए।
महाराज ने कहा-ठीक से समझाओ विदूषक जी।
विदूषक ने कहा-तो समझिए-आप प्रजा से कहिए कि आपने राज्य की समस्याओं के हल के लिए राज्य ज्ञानमण्डल का गठन कर दिया है। और जब प्रजा अनाज माँगे तो अधिकारी प्रजा से कहेंगे कि राज्यज्ञान मंडल सब देख रहा है। भ्रष्टाचार पर रोए तो अधिकारी कहेंगे कि राज्यज्ञान मंडल सब देख रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सत्रडकें, पुल-पुलिया सब के बारे में कहें कि मामला ज्ञान मंडल देख रहा है। और प्रजा से अधिकारी कहेंगे कि ज्ञान मंडल की अनुशंसा आने दीजिए, सब समस्याएँ हल हो जाएंगी।
महाराज ने कहा-आइडिया तो ठीक है। लेकिन ज्ञान मंडल का स्वरूप कैसा होगा?
विदूषक ने कहा-राज्य के ज्ञानियों की एक टीम बना दीजिए, बस। वे अपना काम करेंगे।
महाराज ने कहा-विद्वान तो ढूँत्रढने पत्रडेंगे। विद्वानों से मेरा सम्पर्क नहीं है। हे विदूषक तुम ही हमें विद्वानों की भी जानकारी दो।
विदूषक ने कहा-एक लिस्ट मैं दे दूँगा।
महाराज ने कहा-और ज्ञान मंडल के कार्यकारी संयोजक तुम ही बनना। विद्वानों को तुम ही संभाल सकते हो।
विदूषक ने कहा-महाराज, राज्य के काफी विद्वान मेरे समर्थक हैं।
महाराज ने कहा-हे विदूषक, तुम मेरे प्रिय हो इसलिए विद्वान तुम्हारे आगे-पीछे घूमेंगे ही। अब बताओ, एक ज्ञान मंडल राज्य के हर विभाग का काम कैसे देख लेगा।
विदूषक ने कहा-महाराज, हर विभाग के लिए एक-एक ज्ञान मंडल बनाना है। जैसे शिक्षा ज्ञान मंडल, अनाज ज्ञान मंडल, कृषि ज्ञान मंडल, उद्योग ज्ञान मंडल, सत्रडक ज्ञान मंडल, स्वास्थ्य ज्ञान मंडल आदि-आदि। और हर ज्ञान मंडल के साथ एक विदूषक रखना है।
महाराजा ने कहा-विदूषक जी, राज्य में इतने विदूषक हैं?
विदूषक-हाँ महाराज, हर डिपार्टमेंट में विदूषक हैं।
महाराज ने कहा-हमें तो यह पता ही नहीं था। तुम सब जानते हो। लेकिन यह बताओ तुम इतने ज्ञानी कैसे हो गए।
विदूषक ने कहा-महाराज, आप जैसे राजा के साथ रहकर यह सीख लिया। आगे और समझाऊँगा ।
अगले अंक में – किश्त 2 – विदूषक ने सिखाया राज करने का गुर ( संपादक)