हे विदूषक तुम मेरे प्रिय 2- प्रभाकर चौबे

सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें ।  हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास  हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’ को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि ‘भिलाई इप्टा’द्वारा इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतर का काफी मंचन किया गया है । (जीवेश चौबे-संपादक)

2- विदूषक ने सिखाया राज करने का गुर

   नाक पर रुमाल रखे महाराज दरबार में इधर से उधर जल्दी-जल्दी चक्कर लगा रहे हैं। मंत्री, दीवान, सेनापति, खजांची, कोषालय अध्यक्ष, स्वास्थ्य अध्यक्ष, गुरुकुल अध्यक्ष हाथ बाँधे खड़े हैं।

मंत्री ने कहा-महाराज, आपको जुकाम हो गया है क्या? राजवैद्य को बुलाया जाए।

महाराज ने कहा-मुझे जुकाम नहीं हुआ है।

दीवान ने कहा-राज्य की शिक्षा की समीक्षा के लिए आज का दिन आरक्षित है।

महाराज ने कहा-कैसी शिक्षा, कहाँ की शिक्षा, किसकी शिक्षा-पूरा राज्य दुर्गंध से भर गया है। लगता है हमारे राज्य के हर विभाग में गंदगी भरी है, सब तरफ बास, शिक्षा भी बस्सा रही है।

मंत्री ने कहा-इसीलिए आपने नाक पर रुमाल रखा है।

महाराज ने कहा-हाँ, बास के मारे हालत खराब हुई जा रही है। आप लोगों को बास नहीं आ रही।

दीवान ने कहा-नहीं महाराज, हमें बास नहीं आ रही।

महाराज ने कहा-आप लोग खुद दुर्गंध मार रहे हो, आपको कहाँ से बास आएगी।

खजांची ने कहा-हाँ महाराज, अब बास आई।

महाराज ने कहा-पूरा राज्य गंदगी से भरा है। चारों ओर गंदगी। नालियाँ बदबदा रही हैं। चौराहों पर कचरा सत्रड रहा है। सत्रडकों पर गंदगी पसरी है। तालाबों का पानी सत्रड गया है। जिधर से निकलो उधर गंदी हवा का भभका आता है। क्या हो गया है राज्य की सफाई को। सफाई क्यों नहीं हो रही। क्या कर रहा है नगर परिषद्। हमारी सरकार का स्वास्थ्य अध्यक्ष कहाँ है।

स्वास्थ्य अध्यक्ष ने कहा-यहाँ हूँ महराज।

महाराज ने कहा-आप तो एकदम साफ-सुथरे दिख रहे हैं, इतर-फुलेल लगाकर सुगंध फैला रहे हैं। राज्य में क्यों गंदगी है। सफाई की क्या व्यवस्था है।

स्वास्थ्य अध्यक्ष ने कहा-महाराज पूरी सफाई व्यवस्था ठेके में दे दी गई है। ठेकादार ही कुछ प्रकाश डाल सकता है।

महाराज ने कहा-सफाई व्यवस्था ठेके में।

मंत्री ने कहा-हाँ, महाराज पूरा राज्य ठेके पर चल रहा है। शिक्षा ठेके पर, सफाई व्यवस्था ठेके पर, स्वास्थ्य सेवा ठेके पर, बाजार, सत्रडक निर्माण, विध्वंस, सब ठेके पर दे दिए गए।

महाराज ने कहा-सब ठेके पर दे दिए गए और हमें पता नहीं।

मंत्री ने कहा-महाराज जरूरी नहीं कि आपको सब पता हो। राज्य चल रहा है, बस।

महाराज ने कहा-लेकिन ये ठेकेदारी प्रथा लागू किसने की? हमारे नियमित राज्य सेवक कहाँ गए?

दीवान ने कहा-महाराज ठेकेदारी प्रथा का उद्देश्य ऊपर से आता है।

महाराज ने कहा-ऊपर से! हमसे ऊपर कौन है?

मंत्री ने कहा-महाराज आसमानी आदेश से अब राज्य चल रहे हैं।

महाराज ने कहा-आसमानी आदेश, अरे आसमान में बैठा कौन हमारा देश चला रहा है, स्पष्ट बखान करो?

दीवने ने कहा-महाराज कहते हैं सात समुद्र पार एक भयानक राक्षस बैठा है, वह आज पूरे विश्व का संचालन कर रहा है। आप भी उसके गियर में हैं। जब तक वह खुश तभी तक आप राजा। इसलिए उसका आदेश माना जा रहा है।

महाराज ने कहा-उसी ने आदेश दिया है कि सब काम ठेकेदारी प्रथा से हो।

मंत्री ने कहा-हाँ महाराज, उसी ने कहा है। उसी ने आदेश दिया है कि नियमित सेवकों को भगाओ, ठेकेदार भर्ती करो, काम न करें तो गर्दन काट दो।

महाराज ने पूछा-तो क्या आप सब भी अब ठेके पर काम कर रहे हैं।

मंत्री ने कहा-महाराज, उच्च पदों पर ही नियमित भर्ती करने का रिवाज चला है, नीचे के पदों पर ठेका प्रथा है।

महाराज ने कहा-कहीं हम, हम महाराज ठेके पर तो नहीं हैं।

सेनापति ने कहा-यह व्यवस्था लागू करने पर विचार चल रहा है।

खजांची ने कहा-लेकिन महाराज आपके सारे सेवक ठेके पर हैं। यहाँ तक कि आपकी इच्छाएँ भी ठेक पर हैं।

महाराज ने कहा-क्या कह रहे हो खजांची।

खजांची ने कहा-ठीक कह रहा हूँ, महाराज। आपकी इच्छाएँ, आपके विचार, आपके सपने सब ठेके पर हैं। राज्य में लोक कल्याण के लिए क्या कार्यक्रम करना है यह ठेके पर है, इसे वही सात समंदर पार वाला तय करता है।

महाराज ने कहा-जब हमारा कुछ अधिकार ही नहीं तो हम वानप्रस्थ पर चल दें। जंगल में रहें।

दीवान ने कहा-महाराज, राज्य में जंगल रहे कहाँ। क्या करेंगे जंगल में। जंगल भी ठेके पर उठ गए। पशु-पक्षी, पेत्रड-पौधे सब गायब हो गए। उस वीरान में आप क्या करेंगे।

महाराज ने कहा-डूब मरने की इच्छा हो रही है।

मंत्री ने कहा-पानी बचा कहाँ, किसमें डूबेंगे।

महाराज ने कहा-ओह! ये क्या हो रहा है। हम अधिकार विहीन राजा हैं। हमारी डोर किसी और के हाथ में है। यहाँ का राज्य दूसरे के इशारों पर चल रहा है। उसे पकत्रडकर हाजिर करो। विदूषक कहाँ  हैं उन्हें बुलाया जाए। वे ही इस संकट से उबरने का उपाय सुझा सकते हैं।

विदूषक ने कहा-मैं तो यहीं हूँ महाराज। आज्ञा दीजिए।

महाराज ने कहा-ये क्या सुन रहा हूँ विदूषक। ये क्या हो रहा है। उस दुष्ट को कैसे ठीक किया जाए।

विदूषक ने कहा-महाराज चीखना-चिल्लाना बंद कीजिए। धीरे बोलिए। उसने सुन लिया को आप राजपाट से अपदस्थ कर दिए जाएंगे। वह दूसरे को राजा बना देगा।

महाराज-लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है।

विदूषक ने कहा-महाराज, राज्य ज्ञान मंडल ने इसे स्वीकृति दी है। देखिए महाराज, विश्व परिदृश्य बदल गया। सूरज सूरज नहीं रहा, अंतरिक्ष में कूद-फांद की जा रही है और तारे जेब में भरे जा रहे हैं।

महाराज ने कहा-क्या कह रहे हो विदूषक, हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा।

विदूषक ने कहा-महाराज, आपको समझना भी नहीं है। राज्य ज्ञान मंडल सब समझ रहा है और नीतियाँ बना रहा है। आप कुछ न समझिए, केवल राज कीजिए। समझने की ओर कदम बढ़ाए और राज्य गया। तख्त छीन लिया जाएगा। मुकुट ठेके पर दूसरे को दे दिया जाएगा।

महाराज ने कहा-तो हमे क्या करना है।

विदूषक ने कहा-आप राज कीजिए। वहाँ के लोग आएंगे, यहाँ खनिज खोदेंगे, उद्योग लगाएँगे, खेती की जमीन खरीदेंगे, जंगल काटेंगे, नदियों का पानी भी अपने अधिकार में ले लेंगे। आप उन्हें इन सब के लिए आदेश देते जाइए। महाराज, उनके अनुसार चलने पर ही आप निष्कंटक राज करेंगे, युगों तक यशस्वी बने रहेंगे। उनके चारण भाट आपका यशगान करेंगे और दसों दिशाओं में फैलाएंगे।

महाराज ने कहा-कुछ काम तो करना होगा हमें, आखिर हम राजा हैं।

विदूषक ने कहा-करिए न, उद्धाटन करिए, मुख्य अतिथि बनिए, सांस्कृतिक कार्यक्रम देखिए। भाषण दीजिए। प्रजा को समय-समय पर उसकेर् कत्तव्यों की याद दिलाइए। बहुत काम हैं आपके जिम्मे।

महाराज ने कहा-भारी-भारी, कठिन काम हमारे जिम्मे। विदूषक जी आप महान हैं। आपने हमारेर् कत्तव्य निर्धारित किए।

मंत्री ने कहा-महाराज, शिक्षा और गंदगी पर विमर्श का कार्य आज भी नहीं हुआ।

महाराज ने कहा-विश्व गंदगी पर आज प्रकाश डाला गया। सब साफ हुआ कि इसी गंदगी में राजाओं के भाग्य का विकास निर्भर है। राज्य की गंदगी और शिक्षा की दुर्दशा भी इसी गंदगी से पैदा हुई है। इस पर अगली सभा में चर्चा कर लेंगे।

अगले अंक में जारी

3 thoughts on “हे विदूषक तुम मेरे प्रिय 2- प्रभाकर चौबे

    1. धन्यवाद डॉक्साब, आपकी प्रतिक्रियाओं से हमें संबल मिलता है ।
      जीवेश

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