पांच सितम्बर शिक्षक दिवस उर्फ पोला दिवस – प्रभाकर चौबे

शीर्षक देखकर चौंकने की जरूरत नहीं है। दोनो की एक साथ याद यूं आई कि शिक्षक सरकार के सबसे बड़े पशुधन हैं। मराठी में बैल को पोल कहते हैं- हमारे यहां पोल आकर पोला हो गया। पोला है बैलों का त्यौहार। पोला के दिन बैलों को सजाते सँवारते हैं, उसकी पूजा करते हैं  कि हे बैल साल भर तू काम करता है और कुछ कहता भी नहीं, तो आ आज तेरी पूजा अर्चना की जावे । तू बैल का बैल ही रहेगा, हमें मालूम है। इसलिए तेरी पूजा कर देने में कोई नुकसान नहीं। पूजा पाकर तू अपना महत्व नहीं बढ़ा लेगा। तो पोला हुआ बैलों का त्यौहार और पांच सितंबर शिक्षक दिवस हुआ शिक्षकों का त्यौहार ।

इसलिए कहा कि आजकल अकेले बैल ही नहीं हैं, गाएँ भी हैं, बछवा, भैंसे भी हैं और कुछ सांड़ भी हैं। तो शिक्षक शिक्षिकाएँ, छात्र-छात्राएँ सरकार के लिए पशुधन हैं। पोला में बैलों को सजाया सँवारा जाता है, शिक्षकों को भी सँवारा जाता है। उन्ह उस दिन राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है, नारियल, शाल भेंट किये जाते हैं। बैलों की दौड़ की तरह शिक्षकों की दौड़ कराई जाती है। शिष्य आकर गुरु को प्रणाम करता है। गुरु उसकी पीठ पर हाथ फेरता है और आशीर्वाद देता है-  यह सरकारी आदेश है। इस तरह नहीं करने पर शिक्षक  दिवस मनाया गया, ऐसा नहीं माना जावेगा। शिक्षक के पैर पड़ना और शिक्षक का आशीर्वाद लेना दोनों जरूरी है।

सरकार भी शिक्षक दिवस मनाती है। सरकार एक पोस्टर छपवाती है। जिस पर किसी मंत्री का संदेश रहता है- शिक्षक को मत भूलिए …!’ अच्छा जी, नहीं भूलते, चलिए। आप साल भर तक शिक्षक एकम शिक्षक, शिक्षक दूने शिक्षक तिया शिक्षक, शिक्षक चौके शिक्षक का पहाड़ा पढ़िए या फिर शिक्षक पौवा शिक्षक, शिक्षक अध्दा सवैया रटिए। शिक्षक को मत भूलिए का  और क्या मतलब हुआ? एक और मतलब यह हुआ कि शिक्षक दिवस पर सरकार ने पोस्टर छपवा दिया है, अब शिक्षक को कोई न भूले।भूलने  वाला सजा का हकदार होगा। ठीक वैसे ही, जैसे सरकार ने शारदा ऐक्ट पास कर दिया है। अब बाल-विवाह न करो, दहेज न लो। शराबबंदी है, शराब न पियो। पेड़ न काटो। शिक्षक को मत भूलो फरमान जारी हो गया है।

तो भइया, यहाँ कौन किसको भूल रहा है, कौन किसको याद कर रहा है। अपना जेब भरना याद रखें या शिक्षक को याद रखें। शिक्षक क याद क्यों नहीं रखेंगे , जरूर रखेंगे। बच्चे के रिजल्ट  के साथ शिक्षक को याद रखेंगे। यार साल में दो बार तो याद कर लिया और कितना करें, कुछ धंधा पानी भी करने दोगे या बस शिक्षक को याद ही करते रहें हमारा पेट शिक्षक तो भर नहीं देगा- लाइसेंस, परमिट, कोटा, फैक्ट्री, शिक्षक तो देगा नही ये चीजें जो दे रहे हैं उन्हें याद करें या शिक्षक को जो इनमें से कुछ नहीं दे सकता। शिक्षक  अगर कुछ दे सकता तो केवल सिरदर्द दे सकता है, उसे याद रखें? 

यार, अपने देश में मंत्री दिवस क्यों नहीं मनाते। दरअसल जो कमजोर है उसका दिवस मनाया जाता है जो मनवाने की स्थिति में है उसका क्या मनाया जावेगा। मंत्री ही सब मनवा रहा है, सब मनाने के लिए दे रहा है। इसलिए हर दिन मंत्री का दिन है।

एक मंत्री जी भाषण दे रहे थे – शिक्षक राष्ट्र निर्माता है। जिस तरह भारत भौतिक रूप से भले ही गरीब देश हो किन्तु आध्यात्मिक रूप से अमीर है, और हमें अपने आध्यात्म पर गर्व है, ठीक उसी तरह शिक्षक आर्थिक रूप से भले गरीब हो किन्तु वह राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे  है। उसकी गरीबी राष्ट्र निर्माण में लग हुआ है। हमें अपने शिक्षकों पर गर्व है.. तभी तो कहा है त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव…’

मैं शिक्षक को प्रणाम करता हूँ…। मैंने मंत्री जी से कहा मंत्री जी, आप शिक्षक की महिमा गा रहे थे बड़ी अच्छी बात है। आप एक काम करिए कि आए राष्ट्र निर्माण बन जाइए, मैं मंत्री बन जाता हूँ, चलिए जल्दी कीजिए। आइए राष्ट्र निर्माण का स्थान लीजिए, मैं आपके गुण गाऊँ। मुझे भी तो मौका दीजिए कि मैं आपके गुण गा सकूँ। जब राष्ट्र निर्माता इतना महान है, तब आप बनिये राष्ट्र निर्माता और मैं घटिया काम करूँ, मंत्रीजी मुझे मंजूर है घटिया पद प्राप्त करना। ऐसी झोपड़ी में रहना कौन पसंद नहीं करेगा जो एयर, कंडीशन हो, जिसमें टी.वी. हो, टेलीफोन हो , आठ-दस दास- दासियाँ हों। ऐसा घटिया पद कौन नहीं चाहेगा जिसके चारों ओर लोग घूमें, जिसकी भृकुटी के इशारे पर अधिकारी नाचें। मुझे तो पसंद है यह घटिया पद, मैं राष्ट्र निर्माता का महान पद छोड़ने को तैयार हूँ।

एक कहावत है- जिअत बाप से डंडी-डंडा, मरत बाप पहुंचाये गंगा… यही कहावत शिक्षक पर लागू होती है।… शिक्षक को ठीक वेतन मत दीजिए और अच्छे काम की उम्मीद कीजिए। एक कक्षा में साठ सत्तर छात्र ठूँस दीजिए, बच्चों को बैठने का स्थान तक न हो, पढ़ाई का वातावरण न हो समाज में अराजकता और अनुशासनहीनता हो और शिक्षक से कहिए कि वह राष्ट्र निर्माण करे। साल भर शिक्षक परेशान रहे, उसे प्रतिकूल स्थितियों में रखिए और एक दिन राष्ट्र निर्माता कहकर उसकी पूजा कर दीजिए ।

समाज में स्मगलरों, शराबियो, ठेकेदारों, ब्लेक मार्केट करने वालों, राष्ट्र द्रोहियों, डाकुओं, चोरों, टेक्स चोरों लूट खसोट करने वालों को सम्मान मिले और शिक्षक से कहा जाये कि वह राष्ट्र निर्माण करे। क्या खाक राष्ट्र निर्माण करेगा शिक्षक? वह नाकाचोर, टेक्सचोर, डाकू, स्मगलरों का निर्माण करें, इसमें सन्देह नहीं। घूसखोर मौज मजे की जिंदगी जीयें और शिक्षक के सादगीपूर्ण जीवन जीने कहा जाये। शिक्षक से कह जावे कि वह टयूशन भी न करे। शिक्षक और शिक्षा विभाग को घटिया दर्जा का माना जावे और उम्मीद की जाव कि वे अपनी भूमिका अदा करेंगे।

पांच सितंबर बड़ा अच्छा दिन है। शुभ दिन । इस शुभ दिन में शिक्षक को उपदेश देने वाले मिलते हैं- साल भर जो शिक्षक पढ़ाता है वह शिक्षक दिवस के दिन पढ़ता है- अच्छे-अच्छे पाठ। उसे त्याग, बलिदान, विवेक,र् कत्तव्य, निष्ठा, अनुशासन, जवाबदारी, राष्ट्रप्रेम के पाठ पढ़ाये जाते हैं। गांव के पंच से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक पाठ पढ़ने लगते है। शिक्षक दिवस मनाना है इसलिये उस दिन जो भी नेता उपलब्ध हो उससे पाठ पढ़वा दो। मास्टरो की एक सभा करो और एक उपदेशक लाकर खड़ कर दो, घंट दो घंटे का कार्यक्रम हो जाये बस, मन गया शिक्षक दिवस।

शिक्षक दिवस के दिन शिक्षा अधिकारी की बड़ी मरन होती है- सभा जुटाओ, नेता जुटाओ और कार्यक्रम अरेंज करो। ठीक भी है, साल भर तो शिक्षक यह सब करता है, एक दिन शिक्षा अधिकारी ने कर दिया। शिक्षक दिवस सम्पन्न हुआ कि कुर्सियाँ उठाने का काम शिक्षक को ही करना पड़ता है हो गया तुम्हारा सम्मान, अब काम करो। पोला के बाद भी बैल काम न करे यह कहाँ लिखा है।

मैने कहा कि पोला के दिन बैल की पूजा होती है और शिक्षक सरकार का पशुधन है। सो यू कि बैल से हम कोई भी काम करवा सकते हैं । चाहे नागर में फँदवा लो, चाहो तो गाड़ी में जुतवा लो, बोझा खिंचवा लो या सवारी कर लो। शिक्षक से भी चाहे जो काम करवा लो जनगणना करवा लो, चुनाव करवा लो, राशन कार्ड जांच करवा लो, काजी हौस की देखरेख करवा लो, महामारी में मरने वालों की संख्या गिनवा लो, जुलूस निकलवा लो, परिवार नियोजन पखवाड़ा मनवा लो, बैल की तरह शिक्षक भी हर काम के लिये उपयोगी है। भारतीय कृषि में बैल का महत्व है तो राष्ट्रीय कार्यों में शिक्षक का। इसलिये दोनों की एक दिन पूजा करो? पूजा में जो दे दोगे शिक्षक स्वीकार कर लेगा , जैसा रखोगे रह लेगा – रह रहा है।

(यह सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार स्व. प्रभाकर चौबे का यह लेख पूर्व प्रकाशित लेख है)

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