रविकान्त
सहारनपुर और मुज़फ़्फ़रनगर के बीच स्थित दो मदरसों में किसान महापंचायत में आने वाले आंदोलनकारियों के रुकने और खाने का इंतज़ाम किया गया था। इसी तरह मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर के बीच सड़क किनारे स्थित पाँच मसजिदों को आंदोलनकारियों के लिए खोल दिया गया था।
5 सितंबर, शिक्षक दिवस पर मोदी और योगी सरकार को ‘सबक़ सिखाने’ के लिए मुज़फ़्फ़रनगर में किसानों की महापंचायत हुई। 22 राज्यों से लाखों की तादात में पहुँचे किसानों ने अपनी ताक़त का एहसास कराया और स्पष्ट संकेत दिया कि किसान आंदोलन किसी भी क़ीमत पर अपनी मांगों को मनवाए बिना समाप्त नहीं होगा। किसानों ने पूरे धैर्य और संयम के साथ एकजुटता दिखाते हुए मोदी और योगी सरकार के ख़िलाफ़ ‘वोट की चोट’ का खुला ऐलान किया। योगेंद्र यादव ने मंच से चुनाव में सबक़ सिखाने और बीजेपी को हटाने का आह्वान किया। उन्होंने इंद्र के मिथक के सहारे कहा कि जब इंद्रासन डोलता है, तभी वह चैतन्य होता है। लगता है सोई हुई सरकार तभी हमारी मांगें मानने के लिए तैयार होगी, जब उसकी सत्ता डोलेगी।
मुज़फ़्फ़रनगर के जीआईसी ग्राउंड में होने वाली इस महापंचायत के कई मायने हैं। बुद्धिजीवी और पत्रकार अपने तईं इसका विश्लेषण कर रहे हैं। किसानों की एकजुटता से लेकर मीडिया की भूमिका, आंदोलन के राजनीतिक उद्देश्य से लेकर मंच पर होने वाले भाषणों की चर्चा और विश्लेषण लगातार जारी है। मानीखेज है कि किसानों के शक्ति प्रदर्शन से घबराई सरकार और उसके पायताने बचाव में खड़ा गोदी मीडिया राकेश टिकैत के भाषण का दुर्भावनापूर्वक पोस्टमार्टम कर रहा है। इस भाषण में बोले गए नारे के एक हिस्से को प्रचारित करके आंदोलन को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है।
राकेश टिकैत ने अपने भाषण के 13 वें मिनट में ‘अल्लाहू अकबर’ का नारा लगाया और सामने की भीड़ ने ‘हर हर महादेव’ का जयघोष किया। राकेश टिकैत ने अपने भाषण में बार-बार दोहराया कि अब बीजेपी को सांप्रदायिक खेल नहीं खेलने दिया जाएगा। बीजेपी ने हिंदू मुसलमानों के बीच विभाजन करके सत्ता हासिल की है। लंबे समय से एक साथ प्रेम और भाईचारे से रह रहे दोनों समुदायों को लड़ाने का काम बीजेपी ने किया है। किसान आंदोलन दोनों समुदायों को जोड़ रहा है।
गोदी मीडिया और बीजेपी के आईटी सेल द्वारा अल्लाहू अकबर नारे को सांप्रदायिक और तालिबानी कहा जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि राकेश टिकैत द्वारा लगाए गए नारे ने पश्चिमी यूपी में खासकर मुसलमानों के विश्वास को बहाल करने और भाईचारा बढ़ाने का काम किया है।
ग़ौरतलब है कि 2013 में इसी ज़मीन पर बालियान खाप की पंचायत में टिकैत बंधुओं ने ‘बदला’ लेने का ऐलान किया था। इसके बाद बड़े पैमाने पर दंगे हुए। इन दंगों में दोनों समुदायों के लोग मारे गए। सांप्रदायिक तनाव के कारण हजारों मुसलमानों को दूसरे ठिकानों पर पनाह लेनी पड़ी। लोग कहते हैं कि अभी तक मुसलमानों में भय व्याप्त रहा है। बीजेपी ने सांप्रदायिक दंगों से उपजी नफ़रत की फ़सल को खूब काटा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव तथा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी में बड़ी कामयाबी हासिल की।
किसान महापंचायत में राकेश टिकैत द्वारा लगाए गए इस नारे से दोनों समुदायों के बीच न सिर्फ़ विश्वास बहाल हो रहा है बल्कि दोनों के बीच बनी नफ़रत की दीवार भी ढह गई है।
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि राकेश टिकैत को इस तरह के नारे से बचना चाहिए। दरअसल, गोदी मीडिया और आईटी सेल हमेशा ऐसे ही मौक़े की तलाश में रहते हैं। गोदी मीडिया लगातार किसी घटना या बयान को तोड़ मरोड़कर लंबे समय से पूरे आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश करता रहा है। ऐसे में पूछा जा सकता है कि क्या यह नारा सांप्रदायिक है?
अल्लाहू अकबर और हर हर महादेव का नारा तो मेरठ की धरती से शुरू हुए अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में भी लगा था। आज़ादी के बाद चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भी हिंदू मुसलिम एकता के लिए यह नारा लगाते रहे हैं। फिर यह नारा आज सांप्रदायिक क्यों हो गया है?
वास्तव में, यह नारा सांप्रदायिक एकता को मज़बूत करता है। इस समय इस नारे की एक खास अहमियत भी है। दरअसल, हिन्दू बहुसंख्यकवाद की राजनीति के दबाव के कारण धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की राजनीति करने वाली पार्टियों की आज यह हिम्मत नहीं है कि उनके नेता ‘अल्लाहू अकबर और हर हर महादेव’ एक साथ बोल सकें। इसलिए राकेश टिकैत द्वारा लगाए गए इस नारे का रचनात्मक और राजनीतिक महत्व अधिक हो जाता है।
इस विभाजनकारी और आतंककारी सांप्रदायिक स्याह वक़्त में महापंचायत में लगा यह नारा और सभी समुदायों की उत्साहपूर्ण उपस्थिति एक उम्मीद जगाती है। किसान आंदोलन का जब भी विस्तार से मूल्यांकन किया जाएगा, इसे सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष के साथ-साथ देश और समाज को मज़बूत करने के लिए भी याद किया जाएगा। आने वाले समय में इसके रचनात्मक योगदान और महत्व का भी मूल्यांकन होगा।
मुज़फ़्फ़रनगर महापंचायत का राजनीतिक महत्व तो है ही, इसकी सामाजिक महत्ता भी ग़ौरतलब है। पंजाब, हरियाणा, केरल सहित विभिन्न राज्यों से पहुँचे किसानों के स्वागत के लिए जगह जगह तैयारियाँ की गई थीं। इसमें मुसलिम समुदाय ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
सहारनपुर और मुज़फ़्फ़रनगर के बीच स्थित दो मदरसों में आंदोलनकारियों के रुकने और खाने का इंतज़ाम किया गया था। इसी तरह मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर के बीच सड़क किनारे स्थित पाँच मसजिदों को आंदोलनकारियों के लिए खोल दिया गया था। दंगा केंद्र माने जाने वाले मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली, जानसट, मेरापुर और कवाल गाँवों में मुसलिम और जाटों ने मिलकर किसानों के लिए खाने के स्टॉल लगाए। दंगा पीड़ित जाट बहुल भैंसी और मुसलिम बहुल पुरवालियान में भी दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाल होता हुआ दिखाई दिया।
दरअसल, इन गाँवों के बहुसंख्यक समुदाय द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों की हत्याएँ की गई थीं। अभी तक भैंसी में मुसलमान और पुरवालियान में जाट जाने से डरते और आशंकित रहते थे। लेकिन महापंचायत ने डर और आशंका को निर्मूल कर दिया है। एक दृश्य सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रहा है। सुजड़ू गाँव के मुसलिम नौजवान मुज़फ़्फ़रनगर की ओर जाते हुए वाहनों में बैठे किसानों के समीप जाकर हलवा की प्लेट आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, ‘महापंचायत में जा रहे हैं, मुंह मीठा करते जाइए।’ किसान खुशी-खुशी हलवा खाते हैं और मुट्ठी हवा में तानते हैं।
सड़कों के किनारे जगह-जगह मुसलमानों ने आंदोलन को समर्थन देने वाले होर्डिंग लगाए हुए थे। इनमें किसान एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को मज़बूत करने वाले नारे लिखे हुए थे। एक और खास बात। एक दिन पहले पहुंचने वाले खासतौर पर सिख किसानों ने जाट या हिन्दू ठिकानों के बजाए रहने के लिए मसजिदों को चुना। मुसलमानों ने उनके रहने खाने का बख़ूबी इंतज़ाम किया।
दरअसल, किसान आंदोलन इस रचनात्मता के मार्फत तीन काले क़ानूनों को हटाने की मुहिम से आगे बढ़कर देश को बचाने और बनाने की ओर बढ़ रहा है। इसलिए सरकार और उसकी समर्थित मीडिया लगातार आंदोलन को बदनाम करके ख़त्म करने की साज़िश कर रहा है।
लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं। सौज- सत्यहिन्दी