
प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक और संपादक प्रभाकर चौबे की स्मृति में प्रति वर्ष आयोजित किया जाने वाला प्रभाकर चौबे संवाद श्रृंखला का 8 वाँ आयोजन युद्धोन्माद और युद्ध की विभीषिका पर केंद्रित रहा। इस बार का विषय ”युद्धोन्माद और विभीषिका के दौर में आम आदमी की व्यथा‘ था।
प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक और संपादक प्रभाकर चौबे की स्मृति में प्रति वर्ष आयोजित किया जाने वाला प्रभाकर चौबे संवाद श्रृंखला का 8 वाँ आयोजन युद्धोन्माद और युद्ध की विभीषिका पर केंद्रित रहा। इस बार का विषय ”युद्धोन्माद और विभीषिका के दौर में आम आदमी की व्यथा‘ था।
मुख्य वक्ता के रूप में जाने माने चिकित्सक और एक्टिविस्ट डॉ राकेश गुप्ता थे और युद्ध के आर्थिक पहलू पर स्कूल ऑफ स्ट्डीज इकोनॉमिक्स विभाग , पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के विभागाध्यक्ष प्रो. रविन्द्र के. ब्रह्मे ने अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के प्रारंभ में फाउंडेशन के अध्यक्ष जीवेश प्रभाकर ने आयोजन की रूपरेखा की जानकारी दी एवं इस आयोजन की आवश्यकता पर बात रखते हुए आमंत्रित वक्ताओं का परिचय दिया। पत्रकार आलोक चौबे एवं एक्टिविस्ट उमा प्रकाश ओझा ने आमंत्रित वक्ताओं का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया।
डॉ राकेश गुप्ता ने प्रत्यक्ष युद्ध के अलावा दुनिया भर में नव साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा संसाधनों पर कब्जे के लिए जारी परोक्ष युद्ध और संघर्ष की पर विशेष रूप से और विस्तार से अपनी बात को केंद्रित किया। प्रो. ब्रह्मे ने युद्ध के आर्थिक पहलुओं पर अपनी बात केंद्रित करते हुए कहा कि युद्ध की दो इकॉनमी होती है,एक वॉर इकोनॉमी और दूसरी इकॉनमी ऑफ वॉर। उन्होंने इन दोनों पर केंद्रित करते हुए इससे विश्व व्यापार से लेकर आम आदमी तक पड़ने वाले प्रभावों पर विस्तार से अपनी बात कही।
कार्यक्रम के प्रारंभ में एक्टिविस्ट रियाज़ अम्बर के सहयोग से युद्ध की विभीषिका को उजागर करती डॉक्यूमेंट्री “चिल्ड्रन अंडर फायर”का प्रदर्शन किया गया। डॉक्यूमेंट्री युद्ध प्रभावित इलाकों में बच्चों की दर्दनाक स्थिति का मार्मिक चित्रण करती है जिसने सभी उपस्थित जनों को द्रवित कर दिया।
सभागार में उपस्थित सुधिजनों ने प्रभाकर चौबे को याद करते हुए अपनी भावात्मक श्रद्धांजलि अर्पित की। आयोजन में नगर के सुधिजन बड़ी तादात में उपस्थित थे।