
12 जून 1975 से 25 जून के बीच, हर रात देश के और ज्यादा गहराते चौदह दिन के इन अंधेरों को अब देखते हैं ।पिछली कड़ी यशपाल के जिक्र पर रुकी थी …..
आइये जानते हैं कौन था यह यशपाल कपूर?
सत्ता में हमेशा कुछ लोग पर्दे के पीछे ही बने रहते हैं, पर बहुत शक्तिशाली होते हैं। सक्रिय रहते हैं । शक्ति केन्द्रों और संबंधित व्यक्तियों की डोरें अपनी उंगलियों से बाँध कर रखते हैं । वे सर्वोच्च पद वाले के विश्वासपात्र होते हैं। बिना उचित, अनुचित का विचार किए, इस सर्वोच्च व्यक्ति की इच्छाओं और उद्देश्यों को पूरा करते हैं । वैधानिक ढांचों और संस्थागत सत्ता के समानान्तर उसकी स्वतंत्र और व्यक्तिगत रचना खड़ी करते हैं । उसके हित और लाभ के लिये दमन, क्रूरता, असत्य, अनैतिकता किसी का भी सहारा ले लेते हैं । उस सर्वोच्च व्यक्ति के साथ उनकी अपनी खुद की व्यक्तिगत सत्ता भी मजबूत होती चलती है। उनकी अपनी सत्ता अक्सर सामने दिखायी नहीं देती है । नेहरू के समय एम.ओ. मथाई ने यह जगह बनायी थी, संजय गांधी के समय आर.के. धवन ने । यशपाल कपूर ने भी इंदिरा गांधी के निजी सचिव के रूप में अपनी ऐसी ही जगह बनायी थी । उमा वासुदेव ने यशपाल कपूर का परिचय कुछ इस तरह दिया है कि, पाकिस्तान के पेशावर में 1920 में जन्मा यशपाल कपूर 1945 में दिल्ली आया । वह अखबार बेचता था । शाम को सब्जी मंडी में भी सब्जियाँ बेचता था। यशपाल कपूर के खुद के बयान के अनुसार, जो उसने उमा वासुदेव को दिया ”1946 में मैं सेवादल का सक्रिय मेम्बर हो गया। मैं एक झंडा और बिगुल लेकर चलता था और लोगों से कांग्रेस को चवन्नी देने के लिए कहता था।” अपनी ऊर्जा, मेहनत और लगन से वह धीरे से नेहरू के दफ्तर में स्टेनोग्राफर टाइपिस्ट हो गया । 1956 में उसने इंदिरा गांधी के साथ काम किया । उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के मामलों में उनका गैर आधिकारिक तरीके से दूत या संदेश वाहक हो गया । बाद में वह राय सभा का सदस्य भी बना ।
इंद्र कुमार गुजराल ने अपनी किताब में यशपाल कपूर से जुड़े दो रोचक किस्से दिए हैं, जो यशपाल कपूर की पहुँच, ताकत और उसके इस मुकाम पर बने रहने के कारण पर रोशनी डालते हैं। पहला किस्सा शास्त्री की ताशकंद में हुयी मृत्यु की रात की घटना से जुड़ा है । ”जनवरी को कँपाने वाली ठंडी सुबह मैं 3 बजे यशपाल कपूर के टेलीफोन की चीखती आवाज से जागा। उसने मुझे बताया कि लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में घातक हृदय आघात से निधन हो गया है। इंदिरा गांधी ने फौरन मुझे बुलाया है । मैं जितनी जल्दी पहुँच सकता था, उनके संफदरजंग निवास पर पहुँचा । वह मुझे मिलीं। वह एक गरिमा पूर्ण ड्रेसिंग गाउन पहने थीं। जल्दी ही हम प्रसिद्ध पत्रकार रोमेश थापर के साथ उनकी स्टडी में आ गए।
”श्रीमती गाँधी बहुत उत्तेजित थीं कि अगली सरकार में वह विदेश मंत्री हो जाएंगी। (शास्त्री के मंत्रिमंडल में वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं। विदेश मंत्री का पद शास्त्री ने उन्हें नहीं दिया – प्रि.) (यह सुनकर) हम दोनों पूरी तरह असहज हो गए। हमने उनसे विनम्रता से कहा कि यह अच्छा मौका है जब वह खुद प्रधान मंत्री हो सकती हैं।”
( पृष्ठ38)
यशपाल कपूर जैसे लोग सत्ता में कैसे इतनी महत्त्वपूर्ण जगह बना लेते हैं, इस सवाल का उत्तर गुजराल के दूसरे किस्से में मिल जाएगा ।
”मुझे याद है कि इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के शुरूआती दिनों में , जब उमाशंकर दीक्षित, दिनेश ंसिंह और मैं ‘किचन केबिनेट’ की तरह कहे जाते थे, यशपाल कपूर ने एक बार भविष्यवाणी की तरह कहा ‘आप यहाँ यादा दिन नहीं रहेंगे क्योंकि आप बहुत यादा संवेदनशील और सुसंस्कृत हैं। हम बने रहते हैं क्योंकि हम उनके कुत्तों की तरह हैं । यहाँ तक कि जब वह हम पर चीखती हैं, हम अपनी दुम हिलाते हैं जबकि आप आहत हो जाते हैं।”(पृष्ठ: 43)
यशपाल कपूर के शब्दों पर ध्यान दें । राजनीति में पर्दे के पीछे रहकर महत्त्वपूर्ण जगह शायद इसी तरह बनती है । यशपाल कपूर पार्टी मामलों में इंदिरा गांधी का राजनैतिक सलाहकार तो था ही, सूचनाएँ भी पहुँचाता था। उनके लिए व्यक्तियों और सत्ता के समीकरण भी साधता था । व्यक्तियों पर दबाव बनाने जैसा काम वह बहुत कुशलता से करता था । कुलदीप नैय्यर ने भी एक रोचक किस्सा लिखा है ।
‘यशपाल कपूर, जो इंदिरा गांधी की ओर से उत्तर प्रदेश के मामले देखता था, उसने ‘खोजा’ कि बहुगुणा ने संजय और उसकी माँ के समूल नाश के लिए चार तांत्रिकों को प्रार्थना करने के काम पर लगाया है । इनमें से दो ने तब स्वीकार भी किया । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पी.सी. सेठी की मदद से, राय में ढँढकर ‘मीसा’ के अन्तर्गत, उसने उन्हें गिरफ्तार भी करवा दिया ‘। (द जजमेंट : 113)
कुलदीप नैय्यर ने आगे लिखा है कि बहुगुणा ने मुझे बताया कि यह सब बकवास है और जिन तांत्रिकों की वह (यशपाल) बात कर रहे हैं, उनका अस्तित्व ही नहीं है । शायद एक पुराना आयुर्वेदिक वैद्य, जिसने बहुत से कांग्रेसी नेताओं का इलाज किया था, जिनमें कमलापति त्रिपाठी भी थे, उसे गलती से तांत्रिक समझ लिया होगा । (वही:114)
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो आर.के धवन के साथ यशपाल कपूर भी गिरफ्तार हुआ था । मजेदार बात है कि आर.के. धवन इसी यशपाल कपूर का भांजा था । उसने यशपाल कपूर से बहुत कुछ सीखा था । संजय की सत्ता के दौरान धवन ने वही जगह पा ली थी जो कभी इंदिरा के समय उसके मामा की थी । यह भी देखना रोचक है कि फैसले वाले दिन और उसके पहले, जस्टिस सिन्हा की तरफ क्या हो रहा था।
कुलदीप नैय्यर ने अपनी बेहद चर्चित किताब ‘द जजमेंट’ में इस फैसले के पहले की गतिविधियों का उल्लेख किया है। उन्होंने इन प्रसंगों को उपन्यास की रोचकता, रहस्य, रोमांच के ताने बाने बुनते हुए लिखा है। उन्होंने जो भी लिखा है, उसकी प्रामाणिकता व सूचना स्रोत के सम्बन्ध में, उन्होंने फैसले के बाद इलाहाबाद में जस्टिस सिन्हा से हुयी अपनी बातचीत का हवाला दिया है। उनके अनुसार, फैसले से पहले, इंदिरा गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश के एक सांसद इलाहाबाद गए और उन्होंने सिन्हा से यूँ ही बातों बातों में इशारा करते हुए पूछा, कि क्या 50,000- के बदले वह फैसला इंदिरा के पक्ष में कर देंगे? सिन्हा ने कोई उत्तर नहीं दिया। सिन्हा के पास सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने का प्रस्ताव भी पहुँचा। निर्णय देर से आए इसकी भी कोशिश की गयी। गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव प्रेम प्रकाश नायर इस बारे में उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से देहरादून में मिले और उन्हें सुझाव दिया कि इस फैसले को कुछ देर से दें, क्योंकि इंदिरा गांधी कुछ देशों के दौरे पर बाहर जाने वाली हैं। उनके विरुध्द दिया गया कोई भी निर्णय उनके लिए परेशानी पैदा करने वाला होगा। मुख्य न्यायाधीश ने यह अनुरोध सिन्हा तक पहुँचा दिया। सिन्हा इस बात से इतना चिढ़ गए कि उन्होंने उसी वक्त अपने रजिस्ट्रार को फोन करके कहा कि वह निर्णय देने की तारीख 12 जून घोषित कर दे। नैय्यर ने लिखा है कि 8 जून को गुजरात चुनाव के पहले फैसला न देकर सिन्हा ने पहले ही कांग्रेस के साथ सहयोग कर दिया था। निर्णय क्या आएगा, कोई नहीं जानता था । गुप्तचर विभाग भी बिल्कुल अन्धेरे में था। उसने सिन्हा के स्टेनोग्राफर नेगीराम को टटोला, धमकाया भी, लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला। 11 जून की रात आदेश टाइप करने के बाद वह और उसकी पत्नी घर से गायब हो गए। उनके कोई सन्तान नहीं थी, इसलिए गुप्तचर विभाग के लोग जब वहाँ पहुँचे घर बिल्कुल खाली मिला।
निर्णय का जो क्रियात्मक आदेश (operative portion) का अंश था, उसे सिन्हा की उपस्थिति में 11 जून को टाइप किया गया। इसके बाद सिन्हा ने अपने स्टेनो से गायब हो जाने के लिये कहा। वह गायब हो गया। 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट के कमरा न. 24 में सिन्हा ने 10 बजे 258 पन्नों का अपना फैसला दिया। 10:02 बजे शेषन ने टेलीप्रिंटर पर यू.एन.आई का संदेश पढ़ा। ‘श्रीमती गांधी पद से हटा दी गयीं।’ (द जजमेंट :2)
अंग्रेजी ‘तहलका’ के 27 जून 2015 के अंक में कुलदीप नैय्यर ने फिर इन्हीं बातों को दोहराया है । इस तरह चालीस साल बाद एक बार फिर उन्होंने अपनी उन्हीं बातों की पुष्टि कर दी है ।
आगे जारी ….