
आषाढ़ी वर्षा मानसून के का द्वारचार है, परघनी है। आसमान से आ रही बूंदों की धरती द्वारा परघनी। समधी भेंट है, धरती और आसमान गले मिल रहे हैं कि जो बारात लेकर आ हैं, अब ब्याह कर लौटेंगे।तेज हवाएं और बौछारों से पेड़-पौधे डोलते हैं तो लगता है बाराती नाच रहे हैं।
मानसून से पहले जो पानी गिरता है उसे मीडिया ने मानसून पूर्व की वर्षा कहना शुरू किया। शहरी लोगों में यह शब्द चल पड़ा। हिन्दी अखबारों में यही लिखा जाने लगा। अखबार ऐसा कहते हैं और विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि समाज में पही भाषा चल रही है। वैसे हमारे देशी मौसम विज्ञान में वर्षा से सम्बन्धित ढेरों शब्द हैं। लेकिन कौन मेहनत करे। आषाद के बादल एक “झला” बरसे, यही प्री मानसून वर्षा है। अब आषाढ़ क्या है मत पूछ लेना। प्री मानसून रेंस का हिन्दी अनुवाद मानसून पूर्व की वर्षा कर दिया और छुट्टी पा गए। मौसम की जानकारी देने में अखवार का दो कॉलम रंगना ही तो है, कौन साहित्य लिखना है। कालीदास के समय अखबार निकलते होते और किसी हिन्दी अखबार में मेघदूत की अखबारी समीक्षा होती तो मेघदूत को “एम्बेसेडर ऑफ क्लाउड्स” कर देते। और लिखा होता कि कालीदास ने प्री मानसून के क्लाउड्स से एम्बेसेडर का बढ़िया काम लिया है। यंग जनरेशन को यह अपील करेगा। यंग लोगों को इसे जरूर पढ़ना चाहिए। एक ऐसा ही अनुवाद पढ़ चुका हूं छोटी कक्षा की अंग्रेजी की पाठ्य पुस्तक में गणेश भगवान पर एक पाठ है। उसमें लिखा है गणेश वास फांड ऑफ केक्स यानि कि मोदक प्रिय को फांड ऑफ केक अनुवाद कर दिया-लड्डू को केक बना दिया।
चाहे प्री-मानसून रेंस कहें, चाहे मानसून पूर्व की की वर्षा,चाहे आषाढ़ की वर्षा कहें अथवा आषाढ़ी झला लेकिन इस वर्षा का आनंद ही अलग है।
आषाढ़ी वर्षा मानसून के का द्वारचार है, परघनी है। आसमान से आ रही बूंदों की धरती द्वारा परघनी। समधी भेंट-धरती और आसमान गले मिल रहे हैं कि जो बारात लेकर आ गए, अब ब्याह कर लौटेंगे। तेज हवाएं और बौछारों से पेड़-पौधे डोलते हैं तो लगता है बाराती नाच रहे हैं। गरजते बादल बारात में ढोल पीट रहे हैं और बिजली की चमक आतिशबाजी हो मानो। प्री-मानसून की वर्षा में घरों में, सड़कों पर, दफ्तरों में जो भागमभाग मचती है तो लगता है बारात देखने की हुलस में आपाधापी मची है। प्री-मानसून वर्षा एक संदेश है-तैयार हो जाओ, यह द्वारचार है फिर भांवरें होंगी और मांग भराई का नेग होगा और सारी धरती हरी-भरी हो जाएगी कि नया जीवन का संदेश लेकर आ गए आषाढ़ के बादल और छींटे मार गए कि आगे आत्मा तक तर कर देंगे। इसीलिए आषाढ़ी वर्षा को प्री मानसून वर्षा कहना मुझे पसंद नहीं।
प्री-मानसून वर्षा कहने से लगता है कि परीक्षा में केवल रोल नम्बर देने का काम हुआ है। एक तो प्री मानसून एकदम रूखा सूखा शब्द है। उसकी ध्वनि और ध्वन्यार्थ डॉट-उपटे सा लगता है। अंग्रेजी बोलना चाहिए केवल नौकरी के लिए। अच्छी अंग्रेजी भी नौकरी पाने के लिए बोलना-लिखना चाहिए। लेकिन मातृभाषा को साथ लेकर चलना चाहिए। आंग्रेजी उस बोझ की तरह है जो कुली को पेट पालने हेतु उठाना पड़ता है। मातृभाषा आत्मा को तृप्त करती है।
लेकिन अपने को क्या। जिसे जो बोलला है बोले। बात चल रही थी आषाढ़ के बौछार की। आषाढ़ के बादल आसमान पर ऐसे दौड़ते हुए आते हैं मानों सौ मीटर की दौड़ में हो। हवाएं भी तेज हो जाती हैं, मानों खुशखबरी सुनाने बाल-वृद्ध एक साथ मरी-जिओ दौड़ पड़े हों। और घास-फूस, कागज कचरा, पेड़ को पत्तियां उड़ने लगती हैं, मानो हृदय की खुशियां बाहर उड़ेल रही हो। डाल टूटती है। पेड़ गिरते हैं। छप्पर उड़ते हैं मानों सारे बंधन तोड़कर आषाढ़ के पहले बादलों का पहली बौछार कर स्वागत करने टूट पड़ रहे हों। मनुष्य और प्रकृति के बीच ऐसा तादात्म्य और ऐसा रिश्ता कि आषाढ़ की आंधी-पानी के नुकसान को भी भावी अच्छी वर्षा के नाम पर स्वागत किया जाता है। दो माह की तपिश में व्याकुल जन आषाढ़ की बौछार से तृप्त हो जाते हैं-काहे का नुकसान जी यह तो आषाढ़ का बरदानी हाथ है। रंभाती हुई गाय अपने सेवई (नया बच्चा) की तरफ दौड़ रही है और वह अमृत पाने उछल कूद करने लगा है।
किसी-किसी साल आधे आषाढ तक गर्म हवाएं चलती हैं, तब देखो हाल। व्याकुल होकर एक-दूसरे से लोग पूछते हैं आधा आषाढ़ बीत गया एक बूंद पानी नहीं। इस साल ऐसे ही सूखा बीतेगा। ऐसे ही पेर देगा क्या? कभी-कभी आषाढ़ का पहला पखवाड़ा शुमझाम करता है, दूसरा पखवाड़ा भांव भांय करने लगता है । आषाढ़ में खंड वर्षा तो आम बात है ।आषाढ़ में उमस का भी अपना अलग आनंद है-पत्ते तक नहीं हिल रहे मानो राशन दुकान वाला ताला बंदकर मंत्री के बंगले गया हो। बदन चिपचिपा रहा होता है, मानों मंत्रिमण्डल के पुनर्गठन की खबरें अखबारों में छप रही हों।
कुछ भी हो लेकिन आषाढ़ की हवाएं और बौछारों भरी दोपहरी तपती धूप में राहगीर को कुंए का एक लोटा ठंडा जल है।
(पूर्व प्रकाशित आलेख)