हे विदूषक तुम मेरे प्रियः प्रभाकर चौबे 12 वीं कड़ी – विदूषक की पदोन्नति हुई

सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यासउपन्यासकविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यासहे विदूषक तुम मेरे प्रियको धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतरभिलाई के वरिष्ठ रंगकर्मी मणिमय मुखर्जी ने किया है । इसका भिलाई इप्टाद्वारा काफी मंचन किया गया है ।आज प्रस्तुत है

12 – विदूषक की पदोन्नति हुई

दरबार में महाराज ने कहा – कुछ लोग कान में कहते रहते हैं कि दरबार में कुछ पदाधिकारियों की जरूरत है। मंत्री, दीवान, सेनापति, खजांची, राजस्व अध्यक्ष, शिक्षा अध्यक्ष आदि-आदि के काम बत्रढे हैं। इन्हें कुछ और सहायक चाहिए।

मंत्री ने कहा – जो ऐसा कहते रहते हैं वे ठीक ही कह रहे हैं।

महाराज ने कहा – खजांची जी बताइए कि हर प्रमुख के पास कितने सहायक हैं। मंत्री जी की सेवा में कितने अधिकारी-कर्मचारी हैं।

खजांची ने कहा – कुल बीस हैं महाराज।

महाराज ने कहा – केवल संख्या नहीं, पदनाम भी बताएं।

दीवान ने कहा – मंत्रीजी की सेवा में एक उपमंत्री, एक महामंत्री, एक अधीक्षक मंत्री, एक अवरमंत्री, सोलह कार्यालयीन मंत्री हैं।

महाराज ने पूछा – और खजांची की सेवा में कितने हैं।

दीवान ने कहा – एक उप-खजांची, एक सह खजांची, एक अधीक्षक खजांची, एक अवर खजांची और पाँच कार्यालयीन खजांची हैं।

महाराज ने पूछा – और आपकी सेवा में कितने हैं?

दीवान ने कहा – एक उप-दीवान, दो सह-दीवान, तीन सहायक दीवान, एक अवर दीवान और आठ कार्यालयीन दीवान हैं।

महाराज ने कहा – दीवानजी यह बताइए कि क्या हर अधिकारी के साथ अवर अधिकारी और कार्यालयीन सेवक हैं – जैसे आपके पास अवर दीवान का पद है, मंत्रीजी के पास अवरमंत्री का पद है, कार्यालयीन मंत्री के पद हैं, ऐसा ही क्या सेनापति के पास, अवर सेनापति, कार्यालयीन सेनापति के पद हैं।

दीवान ने कहा – हाँ महाराज, राजकाज से सम्बान्धिंत सारे विभागों में अवर अधिकारी पदनाम के पद हैं।

महाराज ने पूछा – अवर मंत्री, अवर दीवान, अवर सचिव, ये अवर का क्या काम? इतने अधिकारी हैं फिर अवर अधिकारी क्या करते हैं।

दीवान ने कहा – महाराज, अवर पद बहुत महत्त्वपूर्ण है। अवर पदाधिकारी बहुत काम के हैं।

महाराज ने कहा – तो दूसरे पदाधिकारी कम काम के हैं? विदूषक जी आप बताइए कि अवर पदनाम के अधिकारी क्या काम करते हैं?

विदूषक ने कहा – महाराज, अवर पदनाम के पदाधिकारी बत्रडे काम के हैं। उच्च अधिकारियों और प्रशासन के लिए अवर पदाधिकारी आघात भक्षक का काम करते हैं।

महाराज ने कहा – आघात भक्षक का क्या आशय है विदूषक जी। क्या अवर सचिव प्रशासन के हृदय हैं?

विदूषक ने कहा – नहीं महाराज, अवर सचिव प्रशासन के दीमाग हैं। वे दीमाग उत्पादन उद्योग हैं।

महाराज ने कहा – दीमाग उत्पादन उद्योग क्या है, विदूषक जी? आप स्पष्ट व्याख्या करें।

विदूषक ने कहा – महाराज, ये कानून के कीत्रडे हैं। कानून के कीत्रडे इनके दीमाग में विचरण करते हुए तरल द्रव्य छोत्रडते जाते हैं और इनका दीमाग राज्य के नियम-कायदों के मामले में हमेशा उर्वरक रहता है। ये ही बताते हैं कि जो काम होगा, हो रहा, हो गया वह नियम के दायरे में है अथवा नहीं। राज्य के उच्च अधिकारी इन्हीं अवर पदाधिकारियों से नियम-कायदे पूछते रहते हैं।

महाराज ने कहा – इतने महत्त्वपूर्ण पद पर हम अपने परिवार के लोगों की नियाुक्तिं क्यों न करें।

विदूषक ने कहा – महाराज ये आपके ही परिवार के हैं। आप जिस पर कृपा कर दें वह अवर सचिव बन गया। उसकी नियाुक्तिं उस पद पर हो या न हो, वह आपकी कृपा का अवर सचिव बन जाता है। उसी के बताए नियम चलते हैं। प्रजा किसी माँग को लेकर गुहार कर रही है, रो रही है, लेकिन आपके अवर सचिव ने कह दिया कि नियमत: प्रजा की माँग पूरी नहीं की जा सकती तो प्रजा प्राण त्याग दे तो भी माँग पूरी नहीं की जाएगी। अवर सचिव प्रजा के प्राण ले सकते हैं, कानून को ढीला नहीं कर सकते। अपने कमर पर बंधे गमछे की गांठ और कानून की गांठ पक्की बाँधते हैं।

महाराज ने कहा – ऐसे ही सेवक चाहिए राज्य को।

विदूषक ने कहा – महाराज राज्य का प्रशासन तो राजा की बुध्दि होता है। राज्य प्रशासन कभी हृदय नहीं हो सकता। प्रशासन अगर राज्य का हृदय बने तो वह द्रवित होगा। द्रवित होगा तो प्रशासन बह जाएगा। प्रशासन बह गया तो राज्य बह जाएगा। इसलिए प्रशासन को बुध्दि ही रहना है, हृदयस्थल नहीं बनना है।

महाराज ने कहा – विदूषकजी, तो राज्य का हृदय कौन है?

विदूषक ने कहा – राजा ही हृदय होता है। राज्य की प्रजा का हृदय बनने का अधिकार केवल आपको है महाराज। आप द्रवित होकर राज्य तक लुटा सकते हैं। इसलिए आप प्रजा के हृदय स्र्राट हैं। राजकुमार युवा हृदय स्र्राट हैं, उन्हें भी थोत्रडा द्रवित होने का अधिकार है। महारानी साहिबा महिला हृदय साम्राज्ञी हैं। वे महिलाओं के कल्याण के उद्देश्य से राज लुटा सकती हैं।

महाराज ने कहा – इसीलिए प्रजा जय करती है प्रजापालक, हृदय स्र्राट महाराज की जय। युवराज की जय। युवा हृदय स्र्राट की जय।

विदूषक ने कहा – हाँ महाराज, आप प्रजा के हृदय में बसते हैं। आपसे थोत्रडा नीचे हृदय के एक कोने में युवराज का वास है।

महाराज ने कहा – और महारानी कहाँ बसती हैं?

विदूषक ने कहा – महारानी तो पूरे हृदय में बसती हैं। पूरे हृदय पर राज करती हैं।

महाराज ने कहा – अति उत्तम व्यवस्था है। महारानी हृदय पर राज करती हैं अर्थात् प्रजा पर राज करती हैं। विदूषक जी बताइए कि दरबार में जो पदाधिकारी हैं वे ज्यादा तो नहीं हैं। जैसे दीवान के पास दस सेवक, मंत्री के पास बीस सेवक और इसी तरह हर अधिकारी के पास सेवकों की भीत्रड है।

विदूषक ने कहा – महाराज, इसमें एक कमी है।

महाराज ने कहा – इतने सेवक है और आप कह रहे हैं कि कमी है।

विदूषक ने कहा – हाँ महाराज, दरअसर हर विभाग में एक विदूषक होना चाहिए।

महाराज ने कहा – अरे भाई ये अधिकारी हमें विदूषक ही लगते हैं। हैं भी।

विदूषक ने कहा – आपको ये विदूषक लगते हैं, लेकिन ये राज्य अधिमान्यता प्राप्त विदूषक नहीं है।

महाराज ने कहा – क्या मतलब?

विदूषक ने कहा – महाराज हर विभाग में एक-एक विदूषक का सरकारी पद सृजित कर आप उनकी नियाुक्तिं करें। जैसे स्वास्थ्य विभाग में एक स्वास्थ्य विदूषक, शिक्षा विभाग में शिक्षा विदूषक, संस्कृति विभाग में संस्कृति विदूषक, परिवहन यातायात विभाग में परिवहन विदूषक आदि।

दीवान ने कहा – नए पद सृजित करने होंगे। नये पदनाम देने होंगे।

विदूषक ने कहा – महाराज, राज्य के अवर सचिव से दीवान जी पूछ लें कि महाराज की इच्छा के अनुसार हर विभाग में विदूषक पद पर नियाुक्तिं हेतु नियम बताइए। अवर सचिव सब नियम बता देंगे।

महाराज ने कहा – एकदम ठीक। दीवानजी आप अवर सचिव से कहिए महाराज चाहते हैं कि हर विभाग में एक विदूषक हो, अब नियम खंगालिए और टीप लिखकर ऊपर मंत्रीजी को भेजिए।

मंत्रीजी विदूषक पद पर योग्य, सक्षम, कर्मठ विदूषक नियाुक्तिं करें।

विदूषक ने कहा – महाराज, दरबार की सेवा में अब हर विभाग में विदूषक होंगे, इसलिए मेरा पदनाम बदला जाए। में वरिष्ठतम विदूषक हूँ।

महाराज ने कहा – बताइए विदूषकजी, आपका पदनाम क्या किया जाए?

विदूषक ने कहा – जैसे, राज राजेश्वर, महामण्डलेश्वर, अखिलेश्वर उसी तरह से मेरा पद राज विदूषक से पदोन्नत कर महाविदूषकेश्वर किया जाए – विदूषकों का मुखिया।

महाराज ने कहा – स्वीकार है। आज से राज्य में एक महिविदूषकेश्वर का पद हुआ। राज्य के पहले महाविदूषकेश्वर आप हैं।

अगले अंक में जारी…..

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