सुप्रीम कोर्ट ने यूपी से जुड़े एक भ्रष्टाचार के मामले की सुनवाई करते हुए अहम बात कही है कि राज्य सरकार की इजाजत के बिना सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) किसी मामले की जांच नहीं कर सकती। साथ ही केंद्र सरकार राज्य की अनुमति के बिना सीबीआई का अधिकार क्षेत्र नहीं बढ़ा सकता है।
गौरतलब है कि गैर-बीजेपी राज्यों पंजाब, झारखंड, केरल, राजस्थान, बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मिजोरम ने नए मामलों की जांच के लिए सीबीआई को इजाजत देने से मना किया है। इसी से जुड़े मामले में कोर्ट ने स्थिति साफ की है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जज एएम खानविलकर और बीआर गवई ने दिल्ली स्पेशल इस्लेब्लिसमेंट (डीएसपीई) एक्ट का हवाला दिया। यह सीबीआई को रेग्युलेट करता है। कोर्ट ने कहा कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 5 केंद्र सरकार को केंद्र शासित प्रदेशों से परे सीबीआई की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने में सक्षम बनाती है, लेकिन जब तक कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य संबंधित क्षेत्र के भीतर इस तरह के विस्तार के लिए अपनी सहमति नहीं देता है, तब तक यह स्वीकार्य नहीं है। जाहिर है, प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप हैं, जिसे संविधान की बुनियादी संरचनाओं में से एक माना गया है।
सुप्रीम कोर्ट फेरटिको मार्केटिंग एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटिड से जुड़े केस की सुनवाई कर रहा था, जिसमें सीबीआई ने एक सरप्राइज रेड की थी। अभियुक्त द्वारा इस मामले में कहा गया था कि धारा 6 के तहत राज्य सरकार की सहमति के अभाव में सीबीआई के पास निहित प्रावधानों के मद्देनजर जांच कराने की कोई शक्ति नहीं हैं।
फैक्ट्री में रेड पर पता चला था कि जो कोयला कंपनी ने कोल इंडिया लिमिटिड से फ्यूल सप्लाई अग्रीमेंट के तहत खरीदा था उसकी कथित तौर पर काला बाजारी हो रही थी। सीबीआई ने इसपर केस रजिस्टर किया था। अगस्त 2019 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने इसपर फैसला सुनाया था। इसको चुनौती देते हुए कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटकटाया था, जिस पर आज जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने फैसला सुनाया है।
एजेंसियां