स्वास्थ्य के जानकारों द्वारा कोरोना की दूसरी लहर को लेकर जब आशंका जताई जा रही है तो राज्य में ख़ून की कमी के कारण एक नया संकट खड़ा होता दिख रहा है।राजधानी मुंबई से लेकर दूरदराज में मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण, उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ और खानदेश के ग्रामीण भागों तक ख़ून का टोटा है। राज्य में महज 20 हजार यूनिट रक्त बचा है। कहा जा रहा है कि रक्त की यह मात्रा महज कुछेक दिनों में ही खत्म हो जाएगी।
कोरोना संक्रमण और इसके चलते मरीज़ों की होने वाली मौतों के मामले में महाराष्ट्र देश के अन्य सभी राज्यों से आगे है। ऐसे में स्वास्थ्य के जानकारों द्वारा कोरोना की दूसरी लहर को लेकर जब आशंका जताई जा रही है तो राज्य में ख़ून की कमी के कारण एक नया संकट खड़ा होता दिख रहा है। राज्य सरकार के मुताबिक यहां महज अगले पांच से सात दिनों के लिए ही पर्याप्त रक्त बचा है। यही वजह है कि महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोप्पो ने इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए राज्य के युवाओं से अधिक से अधिक मात्रा में रक्तदान करने की अपील की है। लेकिन, इस अपील को अपेक्षा के मुताबिक तवज्जो नहीं मिलने से अब खुद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को आगे आना पड़ा हैं। वे इस आपातकालीन स्थिति में लोगों स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आग्रह कर रहे हैं।
बता दें कि राजधानी मुंबई से लेकर दूरदराज में मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण, उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ और खानदेश के ग्रामीण भागों तक ख़ून का टोटा है। राज्य में महज 20 हजार यूनिट रक्त बचा है। कहा जा रहा है कि रक्त की यह मात्रा महज कुछेक दिनों में ही खत्म हो जाएगी। ऐसे में यदि यहां कई स्तरों पर व्यापक रक्तदान अभियान नहीं चलाया गया और अच्छी मात्रा में रक्त का भंडार नहीं किया गया तो स्वास्थ्य की गतिविधियां ठप पड़ जाएंगी और कई तरह की बीमारियों से पीड़ित गंभीर मरीज़ों की जान पर बन जाएगी।
यदि मुंबई की ही बात करें तो इस महानगर में रक्त की कमी के कारण विकट स्थिति बनती दिख रही है। मुंबई में फिलहाल 3,500 यूनिट ही रक्त बचा है। यह मात्रा इसलिए नाकाफी बताई जा रही है कि यहां हर दिन विभिन्न अस्पतालों में चिकित्सा पद्धति के दौरान सामान्यत: 3,000 से 3,200 यूनिट रक्त की आवश्यकता पड़ती है। जाहिर है कि राज्य की राजधानी में ही रक्त की अत्याधिक कमी के कारण स्वास्थ्य की आपातकालीन स्थिति बन गई है। कहा जा रहा है कि एक सप्ताह के भीतर यदि रक्त की पर्याप्त आवश्यकता की पूर्ति नहीं की जा सकी तो यह स्थिति शहर के अस्पतालों में भर्ती कई गंभीर मरीज़ों के लिए घातक साबित हो सकती है।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए जहां एक तरफ स्वास्थ्य विशेषज्ञ पर्याप्त मात्रा में ख़ून का स्टॉक रखने की जरूरत बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हकीकत यह है कि कोरोना-काल में ही राज्य रक्त की कमी से सबसे ज्यादा जूझता हुआ दिख रहा है। दरअसल, इस स्थिति के पीछे जो प्रमुख कारण हैं उनमे एक यह है कि पिछले आठ महीनों के दौरान राज्य भर के अस्पतालों में ख़ून की खपत बहुत तेजी से बढ़ गई। वहीं, इस दौरान यहां रक्तदान करने वाले व्यक्तियों की संख्या में भी भारी गिरावट दर्ज की गई। इसका असर राज्य के रक्त भंडार पर पड़ा और यहां ख़ून की कमी होती चली गई। दरअसल, कोरोना संक्रमण के डर और लॉकडाउन के कारण रक्तदान से जुड़ी सामान्य गतिविधियां भी प्रभावित हुईं। वजह है कि सामान्य दिनों में गैर-सरकारी संस्थानों और कॉलेज प्रशासन की मदद से होने वाले रक्तदान शिविरों से रक्त जुटाया जाता है। लेकिन, बीते आठ महीनों में सीमित मात्रा तक की रक्त जमा कराया जा सका। अब जब की दिसंबर के मध्य में कोरोना की दूसरी लहर आने को लेकर आशंका जताई जा रही है तो इसका असर एक बार फिर रक्तदान पर भी पड़ सकता और ऐसे में आवश्यकता के मुताबिक रक्त जुटाना कहीं अधिक मुश्किल हो सकता है। क्योंकि, कोरोना संक्रमण के डर से रक्त दान करने वाले व्यक्ति रक्त दान करने के लिए विभिन्न केंद्रों तक पहुंचने से बच रहे हैं।
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र राज्य रक्त संग्रहण परिषद के सह-संचालक डॉक्टर अरुण थोराट इस बारे में बताते हुए कहते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले युवाओं से समय-समय पर रक्तदान की अपील की जाती है और गैर-सरकारी प्रयासों से आयोजित कैंपों के जरिए सबसे ज्यादा युवाओं की भागीदारिता से बड़े पैमाने पर रक्त का भंडार किया जाता है। लेकिन, लॉकडाउन में सारे सेक्टर बंद होने से इस दिशा में युवाओं को जोड़ना मुश्किल हो गया। इसलिए, यह स्थिति बन गई है। थोराट के मुताबिक शासन की ओर से एक बार फिर से रक्तदान के लिए जन-जागरण चलाया जाएगा और लोगों के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा रक्तदान के लिए की अपील का खासकर युवाओं में सकारात्मक असर होगा।
बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले वर्ष 17 लाख 23 हजार यूनिट रक्त एकत्रित किया गया था। यह रक्त हर वर्ष सबसे अधिक मुंबई, ठाणे, नासिक, पुणे, नागपुर, कोल्हापुर और शोलापुर जैसे बड़े शहरों में आयोजित होने वाले रक्त शिविरों के माध्यम से जमा किया जाता है। लेकिन, इस वर्ष कोरोना का सबसे ज्यादा प्रकोप इन्हीं शहरों में रहा। इसलिए, ऐसी स्थिति के कारण ख़ून की किल्लत का सबसे ज्यादा असर भी इन्हीं बड़े शहरों पर हुआ। दूसरी तरफ, पूरे राज्य में कुल 341 ब्लड-बैंक हैं। इनमें 76 सरकारी और 265 निजी या अर्ध-सरकारी ब्लड-बैंक हैं। लेकिन, इस साल मार्च में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए घोषित लॉकडाउन के बाद से महाराष्ट्र के ज्यादातर ब्लड-बैंक ख़ून की कमी के संकट से जूझ रहे हैं।
स्पष्ट है कि इसका असर कैंसर और हृदय रोग जैसी दूसरी बीमारियों तथा सड़क आदि दुर्घटनाओं में घायल उन मरीज़ों पर भी पड़ा है जिनकी चिकित्सा पद्धति में ख़ून की आवश्यकता होती है। इनमें से खासी संख्या ऐसे मरीज़ों की थी जो कोरोना संक्रमित नहीं थे। वहीं, महाराष्ट्र में ख़ून की कमी के कारण इसकी मांग बढ़ गई है। इस स्थिति के कारण राज्य में ख़ून का काला बाजार तैयार हो रहा है। कोंकण से पिछले दिनों आईं खबरें इस बात की पुष्टि भी करती हैं। यहां मरीज़ों के परिजनों ने एक यूनिट ख़ून खरीदने के लिए चार गुना दाम तक अधिक दाम दिया। इस दौरान रत्नागिरी जिले में लोगों ने ब्लैक में ख़ून हासिल करने के लिए सैकड़ों किलोमीटर तक की यात्राएं भी कीं।
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखकर राज्य सरकार पर इस वायरस से बचाव करने में सहायक रहे डॉक्टर, स्वास्थ्य-कर्मी और पुलिस वालों के गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं देने का भी दबाव है। ऐसे में राज्य पर औषधियों के साथ-साथ रक्त की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित कराना मुख्य काम हो गया है। लेकिन, रक्त की भारी कमी और उसे जुटाने में आ रहीं समस्याओं को देखते हुए रातोंरात इसका हल निकलना मुश्किल है। इस हालत में यदि यहां कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप बढ़ता है तो सरकार के लिए स्थितियां पहले से अधिक जटिल होंगी। ऐसे में ख़ून की कमी का संकट अन्य रोगों से पीड़ित रोगियों को उठाना पड़ेगा।
(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं।) सौज न्यूजक्लिकः लिंक नीचे दी गई है-
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