इंदौर।”कला व नाटक का काम सच कहना है। अगर हम सच कहते हैं तो वही अपने आप में प्रतिरोध है। ” प्रख्यात नाट्यकर्मी, अभिनेता और लेखक व निर्देशक सुधन्वा देशपाण्डे ने भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्तव्य देते हुए कही। उन्होंने कहा कि बंगाल के अकाल की विभीषिका से द्रवित होकर शम्भू मित्रा “नबान्न” की रचना की और बाद में इस पर फ़िल्म “धरती के लाल” बनी थी।
इप्टा द्वारा पाँच राज्यों में 44 दिनों तक निकाली गई “ढाई आखर प्रेम के” सांस्कृतिक यात्रा का समापन इंदौर में गीत, संगीत और नाटकों के प्रदर्शन के साथ समारोहपूर्वक संपन्न हुआ। सार्वजनिक स्थलों पर जनगीत गाए गये। नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुति हुई। इप्टा के कलाकारों ने यात्रा निकालने के कारणों और यात्रा में मिले अनुभवों को साझा किया। एक प्रस्ताव में सरकार से माँग की गई कि गिरफ़्तार किए गए कलाकारों, लेखकों, पत्रकारों को अविलंब रिहा किया जाए।
सफ़दर हाशमी द्वारा मज़दूरों के समर्थन में नाटक करते हुए गुंडों के हमले में बलिदान देने के बाद हिंदी नाटकों में प्रतिरोध का एक नया उभार देखने को मिला। सुधन्वा जी ने कहा यह नाटक की ही ताक़त है जो विपरीत और दारुण परिस्थितियों में भी ज़िंदगी की राह दिखाता है। उन्होंने फ़िलिस्तीन के एक नाट्य समूह फ्रीडम थिएटर के बारे में भी बताया कि किस तरह नाटक वहाँ प्रतिरोध का माध्यम बना है। सुधन्वा ने महाराष्ट्र के जालना के एक ग्रुप के नाटक “शिवाजी अंडरग्राउंड इन भीमनगर” का भी ज़िक्र किया जिसके माध्यम से यह बताया गया था कि शिवाजी ने दरअसल तत्कालीन ज़मींदारों और साहूकारों पर लगाम लगाई थी। लेकिन वर्तमान शासक शिवाजी के नाम पर देश को बाँटने का काम कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 9 अप्रैल 2022 से प्रारम्भ हुई ‘ढाई आखर प्रेम के’ सांस्कृतिक यात्रा के इंदौर प्रेस क्लब में हुए समापन समारोह के मुख्य अतिथि सुधन्वा देशपांडे ने “नाटकों में प्रतिरोध की धारा” विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह यात्रा इतिहास में दर्ज होगी और आने वाले संघर्षों को प्रेरित करेगी। सत्ता संस्थान और सांप्रदायिक ताक़तें कलाकारों, लेखकों, कवियों, संगीतकारों को प्रताड़ित कर रही है। अब हम अपने देश में दानिश्वरों को खोना नहीं चाहते। प्राचीन संस्कृत साहित्य में पाखंड पर प्रहार के अनेक किस्से मौजूद हैं, बावजूद इसके वर्तमान में यह सब कहना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि देशभक्ति के मायने केवल देश के नक्शे और झंडे से प्यार करना ही नहीं है। देश की जनता से प्यार देशभक्ति की बुनियादी शर्त होती है। हमारे शासक देशभक्ति का शोर मचा कर जनता के ही ख़िलाफ़ कार्य कर रहे हैं। सुधन्वा ने कहा कि सफ़दर हाशमी को इसलिए मारा गया क्योंकि वे मज़दूरों के हक़ में नाटक प्रस्तुत कर रहे थे।
इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह ने कहा कि आज़ादी के पूर्व बंगाल के विभाजन के दौर में भी थिएटर चुप नहीं रहा था। पहला नाटक अंग्रेजो के खिलाफ 1906 में खेला गया था। “कीचक वध” की पौराणिक कथा को आधार बनाकर नाटक लिखा गया। इस नाटक के सारे प्रतीक ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ थे। “कीचक वध” नाटक का समाज पर गहरा असर हुआ। जनता को अब राजनीतिक नाटकों की ओर लौटना चाहिए।
इप्टा के महासचिव राकेश के अनुसार यह समय निराशा का नहीं है। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के दौरान विख्यात शायर ग़ालिब ने कहा था कि “आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक….।” इसके 90 साल बाद देश को आजादी मिली थी। हम लोग रहे न रहे तो भी प्रेम की यात्रा जारी रहेगी। उन्होंने एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर देश में साज़िशपूर्ण तरीके से मुसलमानों पर किए जा रहे हमलों, लेखकों पर झूठे मुकदमे कायम करने की निंदा करते हुए गिरफ्तार लेखकों, बुद्धिजीवियों को अविलंब रिहा करने की माँग की। प्रस्ताव में मध्य प्रदेश के सीधी में पत्रकारों से किए गए व्यवहार की भी कड़ी निंदा की गई। राकेश ने बताया कि “ढाई आखर प्रेम के ” यात्रा लगभग 250 गाँवों, कस्बों, शहरों से होती हुई महानगर इंदौर पहुंची है। उन्होंने संवैधानिक एवं आजादी के दौरान प्राप्त मूल्यों की रक्षा के लिए लेखकों, किसानों, मजदूरों से एकजुटता का आह्वान किया।
छत्तीसगढ़ इप्टा के महासचिव राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि इप्टा ने कबीर, रहीम, रसखान को आधार बनाकर प्रेम का संदेश देने का प्रयास किया है। आयोजन समिति के संरक्षक मंडल के सदस्य और वरिष्ठ ट्रेड यूनियनिस्ट आलोक खरे ने कहा वर्तमान चुनौती भरे समय में जोखिम का सामना करते हुए इप्टा की सांस्कृतिक विरासत की यात्रा पाँच राज्यों में निकली है। यह यात्रा राष्ट्रहित में जरूरी थी। इप्टा का इतिहास ही रहा है संघर्षों में जनता को स्वर प्रदान करना।
44 दिन लंबी यात्रा के सतत साथी मृगेंद्र सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हमने ओमप्रकाश नदीम का गीत “ढाई आखर प्रेम के सुनने और सुनाने आये हैं, हम भारत में नफ़रत का हर दाग मिटाने आए हैं…, गाकर जनता से संवाद कायम किया। जनता से हमने कई बातें सीखी और स्वयं को समृद्ध किया। इस यात्रा में कई अनजान शहीदों को पहचाना गया। नफ़रत के माहौल के बावजूद जनता सुनना और बोलना चाहती है। उन्होंने किताबी ज्ञान की अपेक्षा यात्रा से इतिहास समझने को महत्त्वपूर्ण बताया।
इस अवसर पर इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विनीत तिवारी ने प्रगतिशील लेखक संघ के इंदौर इकाई के पूर्व अध्यक्ष एस. के. दुबे का स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इप्टा इकाई इंदौर की अर्थशास्त्री जया मेहता ने कहा कि बेशक अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति बेहद मुश्किल थी। वो दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य थे। लेकिन आज के ज़माने में लड़ाई और मुश्किल हो गयी है क्योंकि आज दुश्मन की पहचान स्पष्ट नहीं है। हमें 75 वर्ष के पहले आज़ादी के संघर्ष से ये प्रेरणा लेना चाहिए कि असाधारण परिस्थितियों में साधारण लोग असाधारण सहस का परिचय देते हैं, और साधारण लोग ही नायक बनकर उभरते हैं। संचालन सारिका श्रीवास्तव ने किया। आभार विवेक मेहता ने माना।
*साहिर को किया याद*
कार्यक्रम में साहिर लुधियानवी को याद करते हुए उन के गीतों के माध्यम से संगीतमय प्रस्तुति दी गई। इस प्रस्तुति के सूत्रधार थे विनीत तिवारी जिन्होंने आज़ादी के 75 वर्षों में हुए सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक बदलावों को व्यक्त करने के लिए और आगे का रास्ता चुनने के लिए साहिर के गीतों का चयन किया था। इन गीतों की प्रस्तुति शर्मिष्ठा, बबीता देबनाथ, उत्पल बैनर्जी और विजय दलाल ने की। तबले पर संगत की राज ने। इस प्रस्तुति का समापन “वो सुबह कभी तो आएगी” से हुआ। इसके पूर्व इप्टा के साथियों द्वारा अनेक जनगीत गाये गए।
*चौराहों पर हुए आयोजन*
दिन में मालवा मिल चौराहे पर सफ़दर हाश्मी के लिखे नुक्कड़ नाटक” मशीन ” के माध्यम से शोषण की पूँजीवादी व्यवस्था पर प्रहार किया गया। जनगीत निसार अली, सत्यभामा, सीमा राजोरिया, वर्षा आनंद, विनोद कोष्टी ने गाया। यहाँ इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र कुमार ने अपने संबोधन में यह बताया कि इप्टा का नाटक करने का उद्देश्य इस दुनिया को आने वाली पीढ़ियों के लिए अधिक सुन्दर और अधिक मानवीय बनाना है। उन्होंने अपने बच्चों को सांप्रदायिकता से बचाने और धार्मिक पहचानों के बजाय मनुष्यता की पहचान देने का आह्वान किया।
रविवार को ही दिन में यात्रा औद्योगिक नगर पीथमपुर पहुँची। वहाँ भी नाटक “मशीन” की प्रस्तुति दी गई जिसमें गुलरेज़ ख़ान के निर्देशन में भास्कर मिश्रा, गोपाल सिंह राजपूत, तिलकराज जाट, दिग्विजय सिंह राजपूत, विशाल यादव व चेतन कौशल ने अभिनय किया।
22 मई की सुबह इंदौर में यात्रा की शुरुआत इप्टा के साथियों द्वारा गाये जा रहे ज़िंदगी के गीतों के साथ हुई – हम लड़ेंगे साथी…. जाने वाले सिपाही से पूछो वो कहाँ जा रहा है…. ये किसका लहू है कौन मरा… जाम करो मिल के ये शोषण का पहिया ….रोटी और नींद की जुगाड़ में खोई हैं अपनी जवानियां…. तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यकीन कर …प्रस्तुत किया गया।
*”एक अकेली औरत” की व्यथा कथा*
पहले दिन दोपहर इंदौर प्रेस क्लब में जन गीतों के साथ “एक अकेली औरत” की नाट्य प्रस्तुति हुई।नाटक ने घर समाज के अनेक मुद्दों पर दर्शकों का ध्यान आकृष्ट किया। एक अकेली महिला की व्यथा कथा को व्यंग्यात्मक प्रस्तुति वेदा राकेश ने दी। एकल प्रस्तुति में आपसी संवाद शैली की दोहरी भूमिका में वेदा ने महिलाओं के दुख, दर्द, खुशियां, आपसी संबंध, पित्र समाज व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति का सजीव चित्रण किया। आयोजन में शर्मिष्ठा ने जनगीत ” बस एक फिक्र दम कदम नफस नफस कदम कदम। घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए… गीत की प्रस्तुति दी। जेएनयू दिल्ली इप्टा इकाई की वर्षा ने लोकधुन पर आधारित महिला मुक्ति का गीत गाया और वेदा राकेश ने”औरतें उठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जाएगा.. गीत गाकर अन्याय के खिलाफ महिलाओं को एकजुट रहने का आह्वान किया।
*धीरेंदु मजूमदार की मां*
जया मेहता के निर्देशन में “धीरेंदु मजुमदार की मां” नाटक की प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया। पुणे से आई कलाकार जहांआरा का अभिनय बेमिसाल था। नाटक में भारत सहित एशिया में नागरिकता की पहचान, दमन, लोकतंत्र और इंसानियत के प्रश्न उठाए गए थे। धीरेंदु मजुमदार की मां उन्हें प्रेरित करती है जो समाजवाद और विश्व नागरिकता के स्वप्न देखते हैं। इस नाटक में सहयोगी के रुप में कत्यूषा, तौफीक, वंशिका, सारिका, अर्पिता, असद, रेहान, सादिक, भास्कर, उजान, शर्मिष्ठा भी थे। सूत्रधार की भूमिका विनीत तिवारी ने निभाई। ध्वनि और विद्युत संयोजन धन्नू जी ने किया। संपूर्ण नाटक व्यवस्था का प्रबंधन प्रमोद बागड़ी द्वारा किया गया था।
*कबीर के भजनों की प्रस्तुति*
तारा सिंह डोडवे और उनके साथियों द्वारा कबीर के भजनों की प्रभावशाली प्रस्तुति दी गई। इन भजनों के माध्यम से समाज में भेदभाव मिटाने और आपसी भाईचारा बढ़ाने का संदेश दिया गया।
घरेलू महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में सक्रिय सिस्टर रोजीना ने अपने संगठन की जानकारी देते हुए बताया कि वे महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ने हेतु कानूनी मदद प्रदान करती हैं। उनका संगठन धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठकर मानवता के लिए काम करता है।
आशा उषा संगठन की कविता सोलंकी ने कहा कि महिलाओं को मधुमक्खियों से एकता का सबक सीखना चाहिए। सरकार द्वारा आशा उषा के साथ अन्याय किया जा रहा है। संचालन करते हुए इन्दौर इप्टा इकाई की जया मेहता ने कहा कि वर्तमान समाज व्यवस्था में इंसान के स्थान पर मुनाफे पर अधिक जोर दिया जा रहा है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का शोषण अधिक होता है।आयोजन में झारखंड इप्टा के शैलेंद्र कुमार एवं अशोक नगर इप्टा इकाई से सीमा राजोरिया और सत्यभामा ने जनगीत गाए।
*पोस्टर प्रदर्शनी के संदेश*
संपूर्ण यात्रा में अनेक स्थानों पर स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए गए पोस्टरों में आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया गया। मध्य प्रदेश से कलाकार पंकज दीक्षित, अशोक दुबे एवं मुकेश बिजौले द्वारा विभिन्न कवियों, विचारकों की पंक्तियों पर आधारित पोस्टर प्रदर्शित किए गए।
*यात्री पहुंचे शहीद स्मारकों पर*
21 मई 2022, शनिवार को सुबह इंदौर के कुछ शहीदों के स्मारक स्थलों पर पहुंच कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले, कुर्बानी देने वाले इन शहीदों के परिजन भी इस अवसर पर मौजूद थे। यात्रा में शामिल यात्री इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह, महामंत्री राकेश के नेतृत्व में रेसीडेंसी कोठी स्थित शहीद सआदत खान के स्मारक पर पहुंचे, जहां राहुल इंक़लाब और उनके परिजनों ने शहीद सआदत खान के अदम्य साहस और वीरता से उनके द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ किए गए युद्ध के बारे में विस्तार से जानकारी दी। तत्पश्चात शहीद बख्तावर सिंह के स्मारक पर भी पुष्पांजलि अर्पित कर उनके कार्यों का स्मरण किया गया। दोनों शहीद स्थलों से मिट्टी उठाई गई, जन गीत गाए गए। गांधी प्रतिमा स्थल पर भी यात्रियों ने महात्मा गांधी, शहीद ए आजम भगत सिंह एवं हेमु कालानी सहित अनेक गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न शहरों से आए कलाकार शामिल थे।
उल्लेखनीय है कि देश में निरंतर जारी सांप्रदायिकता एवं नफरत के खिलाफ प्रेम का संदेश देने के लिए इप्टा द्वारा देश के 5 राज्यों में ढाई आखर प्रेम यात्रा निकाली गई थी। 9 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के रायपुर से जारी यह यात्रा झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश से होती हुई मध्यप्रदेश के इन्दौर में पहुंची थी।
-रिपोर्टहरनाम सिंह-