सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास ‘हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’ को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि ‘भिलाई इप्टा’द्वारा इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतर का काफी मंचन किया गया है । आज प्रस्तुत है तीसरी कड़ी- आयोगारोपण का सुझाव
(जीवेश चौबे-संपादक)
3 आयोगारोपण का सुझाव
दरबार की आपात बैठक में महाराज ने कहा- मंत्री जी, प्रशासन को लेकर प्रजा में अतिशय असंतोष है।
दीवान ने कहा- महाराज, प्रशासन ठीक तो चल रहा है। कार्य सम्पादित हो रहे हैं। प्रजा के कष्टों का निवारण भी कर रहा है प्रशासन।
महाराज ने कहा- पता नहीं प्रशासन प्रजा के क्या कार्य सम्पादित कर रहा है। प्रजा असंतुष्ट है। त्राहिमाम कर रही है। प्रशासन को सुधारना है। विदूषक जी बताइए हम क्या करें।
विदूषक ने कहा- महाराज, आपको कुछ नहीं करना है। आप केवल राज कीजिए।
महाराज ने कहा- विदूषक जी, कभी- कभी आपकी बात हमारी बुध्दि में समाती नहीं। हमें कुछ नहीं करना है तो कौन करेगा।
विदूषक ने कहा- महाराज, सबका ईश्वर रखवाला है। प्रजा जानती है कि जाको राखै साइयाँ, मार सके न कोय…।
महाराज ने कहा- ये तो सही है। लेकिन विदूषक जी प्रजा में असंतोष है।
विदूषक ने कहा- महाराज, प्रजा के पास कुछ तो है- असंतोष है उसके पास, तो रहने दीजिए। और महाराज, प्रजा दुखी होती है तो सीधे ईश्वर से बातचीत करने लगती है कि हे ईश्वर इस दुष्ट मंत्री को दंड दे। हे प्रभु, इस अन्यायी दीवान को सद्बुध्दि दे। आपसे आकर ऐसा नहीं कहती। तो उसे ईश्वर से गुहार करने दीजिए।
महाराज ने कहा- हे विदूषक, प्रजा जब ईश्वर से ही सब करने कह रही है तो हमारे इतने सेवक क्यों रहें। सेवक की फौज इकट्टा है, इनकी छुट्टी करें।
विदूषक ने कहा- नहीं महाराज, ऐसा मत करिए। सेवकों की भीड़ रहने दें, सेवकों की भीड़ आपकी शोभा हैं। जितने ज्यादा सेवक, राजा का ज्यादा मान- सम्मान। सेवक आपकी यशकीर्ति फैलाते हैं।
महाराज ने कहा- क्या कह रहे हैं आप, ये सेवक हमारी शोभा हैं।
विदूषक ने कहा- हाँ महाराज। आप घोड़े पर सवार अकेले राज्य में निकलकर देख लीजिए। प्रजा समझेगी राजा अकेला निकला। कोई लाव- लश्कर नहीं। युध्द में हार गया क्या। और आप रथ में बैठकर निकलते हैं- आगे आठ रथ, पीछे बारह रथ, आगे पीछे सैनिक इतना ताम- झाम, वैभव देखकर जनता जय- जयकार करती है। जनता कहती है कि हमारे महाराज बड़े प्रतापी हैं। हजारो सेवक उनकी सेवा में लगे हैं। महाराज आपने यह वैभव हटाया और प्रजा समझेगी कि महाराज का कोई प्रभाव नहीं। आपको खल्लू राजा कहने लगेगी। ये सेवक आपके प्रभामंडल हैं, इनसे ही आपकी शान है।
महाराज ने कहा- लेकिन विदूषक जी, ये सेवक प्रजा का कार्य नहीं करते।
विदूषक ने कहा- महाराज, ये आपके सेवक हैं। आपका काम करते हैं। आपको प्रजा प्रजापालक कहती है। अगर ये सेवक प्रजा का काम करने लगें तो प्रजा इन्हें प्रजापालक कहेगी। इसलिए इनका काम न करना ही आपके लिए जरूरी है। प्रजापालक रहिए।
महाराज ने कहा- ओ तो ठीक है विदूषक जी, लेकिन प्रजा के छोटे- मोटे काम तो प्रशासन करे।
विदूषक ने कहा- महाराज, प्रशासन गतिशील होता है।
महाराज ने कहा- गतिशील! अरे ये सब बैठे कुर्सी तोडते हैं, और आप कहते हैं कि प्रशासन गतिशील होता है।
विदूषक ने कहा- महाराज, आप ज्ञानी हैं। सब जानते हैं। प्रशासन बैठा है, लेकिन गतिशील है। महाराज, मान लीजिए एक आवेदन मिला। वह आवेदन ग्रहण करने वाले ने आगे बत्रढा दिया। दूसरे ने उस पर कुछ टीप लिखकर और आगे बत्रढा दिया। इस तरह वह आवेदन आगे चलता गया, तो प्रशासन गतिशील हुआ कि नहीं। मान लीजिए प्रजा की कोई समस्या है उस समस्या को छोटे सेवक ने उपदीवान को बताया। उपदीवान ने दीवानजी को बता दिया। दीवान जी ने उपमंत्री के कान में बात डाल दी। उपमंत्री ने मंत्री को बता दिया…।
महाराज ने कहा- और अंतत: मुझ तक आ गई वह समस्या।
विदूषक ने कहा- महाराज, इसी से पता चलता है कि प्रशासन गतिशील है, चल रहा है। प्रशासन के बारे में आप कह सकते हैं- बिन पग चलहिं, सुनहिं बिनु काना…।
महाराज ने कहा- ये बिना पैर और बिना कान के हैं।
विदूषक ने कहा- हाँ महाराज, ये प्रशासन है।
महाराज ने कहा- सारा बोझ मुझ पर डाल देते हैं।
विदूषक ने कहा- महाराज, प्रशासन इसे ही कहते हैं कि कुछ न करें, सारा कुछ मुखिया पर छोत्रड दे। प्रजा को बताता रहे कि ऊपर से आदेश आने वाला है। इससे आप का महत्त्व बत्ढता है महाराज।
महाराज ने कहा- ठीक कह रहे हैं आप विदूषक जी। प्रशासन के लोग मेरे पास आते हैं। बैठते हैं। सब ठीक है, कहते हैं। और बात करनी हुई तो कोई अपनी पदोन्नति की बात करता है। कोई दूसरे अधिकारी की शिकायत करता है। किसी की पदोन्नति रुकवाने का काम करता है।
विदूषक ने कहा- महाराज, यह व्यवस्था जितनी मजबूत होगी, आप का राज उतना स्थायी होगा। इसे और मजबूत करने के उपाय किए जाएँ।
महाराज ने कहा- मंत्रीजी, हमारे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था। क्या हुआ उसका।
दीवान ने बताया- महाराज, प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपने सुझाव प्रस्तुत कर दिए हैं।
महाराज ने कहा- वाह! क्या सुझाव है।
दीवान ने कहा- महाराज, प्रशासनिक सुधार आयोग ने क्या सुझाव दिए हैं यह जानने के लिए एक छानबीन आयोग का गठन कर दिया गया है।
महाराज ने कहा- यानि कि प्रशासनिक सुधार आयोग ने क्या सुझाव दिए, यह जानने एक और आयोग। ये क्या बात हुई।
विदूषक ने कहा- महाराज, राजकाज चलाने का यही तरीका है। प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसा को स्पष्ट करने एक और आयोग। स्पष्ट करने को और स्पष्ट करने के लिए एक और आयोग।
महाराज ने कहा- आयोग, आयोग, ये आयोग पर आयोग। आयोग बना रहे हो या वृक्षारोपण कर रहे हो।
विदूषक ने कहा- महाराज, यह आयोगारोपण है। जितने आयोग गठित करेंगे उतना आपका नाम होगा। प्रजा कहेगी कि महाराज को प्रजा की कितनी चिंता है। प्रजा की समस्या के लिए आयोग पर आयोग बनाए जा रहे हैं।
महाराज ने कहा- लेकिन प्रजा पूछे कि आयोग का क्या हुआ तो क्या जवाब दें।
विदूषक ने कहा- कहें कि बहुत जल्द आयोग अपनी अनुशंसा देगा। और महाराज यह ”बहुत जल्द” कई वर्षों का होता है। आप तो प्रजापति हैं, आपको समय में नहीं बाँधा जा सकता। आप समयातीत हैं।
महाराज ने कहा- अच्छा विदूषक जी, आज तक हमने कितने आयोग गठित किए है, कहीं है हिसाब।
विदूषक ने कहा- महाराज, आप राजा हैं, दाता हैं। जो कर दिया उसे याद नहीं रखते। नेकी कर दरिया में डाल। आप कितना दान- दक्षिणा देते हैं याद रखते हैं क्या? इसी तरह कितने आयोग बनाए याद नहीं रहता। जैसे रुपए- पैसे, अनाज- वस्त्र, गाय- गोरू दान में देते हैं उसी तरह प्रजा को भी आयोग दान देते हैं। दान- दक्षिणा पाकर, उपहार पाकर प्रजा खुश होती है, राजा से आयोग पाकर भी खुश होती है। प्रजा कहती है कि राजा बत्रडा दयालु है, प्रजा को कष्ट हुआ और आयोग का गठन कर देता है। महाराज ने कहा- तो राज्य में हर समस्या के निवारण के लिए आयोग का गठन हो, वाह विदूषक जी, आपने प्रशासन को चुस्त करने और सुशासन के लिए अनुकरणीय सुझाव दिए।
अगले अंक में चौथी कड़ी——