जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे पर शुक्रवार को देश के पश्चिमी हिस्से नारा में तब हमला हुआ जब वह एक सड़क पर भाषण दे रहे थे. उसके बाद अस्पताल में उनका निधन हो गया.
उनके ऊपर हमले से लेकर उनके निधन की ख़बर आने तक और अभी भी दोस्तों और मुझे जानने वालों के लगातार फ़ोन कॉल्स और मैसेज आ रहे हैं. उन सभी के सवाल एक जैसे हैं. किसी को ये यक़ीन नहीं हो पा रहा कि जापान में भी ऐसा कुछ हो सकता है. उन सभी के सवाल एक ही जैसे हैं… सभी पूछ रहे हैं… आख़िर जापान में ऐसा कैसे हो सकता है?
मुझे ख़ुद भी बहुत हद तक ऐसा ही लगा. जापान में रहते हुए आप हिंसक हमलों या अपराध के बारे में नहीं सोचते हैं. या फिर यूं कहना चाहिए कि ऐसा कुछ नहीं सोचने की आदत हो जाती है.
हमला किस पर हुआ है, ये भी अपने आप में चौंकाने वाली बात है. देश के पूर्व प्रधानमंत्री पर बीच सड़क, दर्जनों लोगों की मौजूदगी में पीछे से गोली चलाई गई.
शिंज़ो आबे अभी जापान के प्रधानमंत्री नहीं थे लेकिन जापान के लोगों के बीच और जापान की पब्लिक लाइफ़ में उनकी ख़ास पकड़ और पहचान थी. इसके अलावा बीते तीन दशक में वह जापान के सबसे लोकप्रिय और चर्चित नेता रहे
आबे को कौन मारना चाहेगा? और क्यों?
मैं ख़ुद भी कुछ ऐसा ही सोचने की कोशिश कर रहा हूं… राजनीतिक हिंसा का एक और वाकया. एक ऐसा वाकया जो जापान में शुक्रवार को हुए हमले के जैसा ही था. जिसने स्थानीय लोगों को चौंका दिया था. याद करने पर ज़हन में साल 1986 में स्वीडन के प्रधानमंत्री ओलोफ़ पाल्मे पर गोली चलाए जाने का वाक़या याद आता है.
जब मैं लोगों को कहता हूं कि वे जापान में हिंसक अपराधों के बारे में न सोचें तो मैं वाकई इसे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहता हूं.
जापान में क्रिमिनल रिकॉर्ड
हां, ये बात बिल्कुल सही है कि यहां पर याकूज़ा हैं… जापान का मशहूर और संगठित क्राइम गैंग लेकिन इस बात से और सच्चाई से इनक़ार नहीं किया जा सकता है कि ज़्यादातर लोगों का उनसे कोई लेना-देना नहीं है. इसके अलावा याकूज़ा बंदूकों से कतराते हैं क्योंकि इसके बदले जो सज़ा है, वो काफ़ी सख़्त है.
जापान में बंदूक रखना काफी मुश्किल है. अगर आपको बंदूक रखना है तो इसके लिए आपका कोई क्रीमिनल रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए, आपके पास पूरी ट्रेनिंग होनी चाहिए, आपको मनोवैज्ञानिक स्तर पर बेहतर होना चाहिए और इसके साथ ही आपका पूरा बैकग्राउंड भी चेक किया जाता है. पुलिस आपके पड़ोसियों से आपके बारे में पूरी तफ़्तीश करती
इसका नतीजा यह है कि जापान में मूल तौर पर गन-क्राइम नहीं है. अगर आंकड़ों के आधार पर बात करें तो जापान में हर साल औसतन 10 से भी कम मौतें बंदूक हमले के कारण हुईं. साल 2017 में तो यह संख्या सिर्फ़ तीन थी.
ऐसे में इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि शिंज़ो आबे की हत्या के बाद अब पूरा ध्यान उस बंदूकधारी हमलावर और उसके इस्तेमाल किए गए हथियार पर केंद्रित हो गया है.
कौन है हमलावर
वह कौन शख़्स है? उसे कहां से हथियार मिला? जापान की स्थानीय मीडिया का कहना है कि हमलावर की पहचान 41 साल के तेत्सुया यामागामी के रूप में हुई है.
उन्होंने पुलिस से कहा है कि वो आबे से असंतुष्ट थे और उनकी हत्या करना चाहते थे. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से एनएचके ने बताया है, “संदिग्ध सेल्फ डिफेंस फ़ोर्स का पूर्व मेंबर है और इसने हैंडमेड गन से गोली मारी है. 2005 तक इसने तीन साल सेल्फ डिफेंस फ़ोर्स में काम किया था.”
लेकिन शुरुआती जांच में पता चला है कि उन्होंने सिर्फ़ तीन साल ही नेवी में बिताए थे. जो बंदूक उन्होंने इस्तेमाल की थी वो ही अजीबोगरीब थी. हमले के बाद की जो तस्वीरें सामने आई हैं उनमें साफ़ पता चल रहा है कि यह एक होम-मेड हथियार था. यानी घरेलू-स्तर पर बना हुआ हथियार था. स्टील पाइप की दो बिट्स एक टेप की मदद से चिपकाई गई थीं. और गन देखकर लग रहा था कि किसी तरह हाथ से ही ट्रिगर भी बनाया गया होगा.
हमले में इस्तेमाल बंदूक को देखने पर लग रहा है कि उसे इंटरनेट पर देख-देखकर तैयार किया गया होगा.
तो क्या यह जानबूझकर किया गया राजनीतिक हमला था? या फिर किसी लोकप्रिय और मशहूर शख़्स को गोली मारकर ख़ुद मशहूर हो जाने की कोशिश? ये जानलेवा हमला क्यों किया गया, हम नहीं जानते हैं.
ऐसा नहीं है कि जापान में होने वाली यह पहली राजनीतिक हत्या है. जापान के एक नेता की पहले भी बर्बर तरीक़े से हत्या हो चुकी है. वो साल 1960 का दौर था.
साल 1960 में जापान के सोशलिस्ट पार्टी के नेता इनेजिरो असानुमा की एक कट्टर दक्षिणपंथी ने तलवार घोंपकर उनकी हत्या कर दी थी. यह शख़्स समुराई तलवार चलाता था. हालांकि राइट-विंग चरमपंथी अभी भी जापान में मौजूद हैं, आबे खुद भी राइट-विंग नेशनलिस्ट थे.
अकेलापन भी है अपराध की वजह
हाल के सालों में, हमने यहां कुछ अलग ही किस्म के अपराधों को सामान्य होते देखा है. जापान में शांत, अकेले रहने वाले लोग बहुत हैं जिनका शायद किसी ना किसी से द्वेष है. जो शायद किसी ना किसी से खुश नहीं हैं.
साल 2019 में, एक सख़्स ने क्योटो स्थित एक लोकप्रिय एनिमेशन स्टूडियो की ब्लिडिंग में आग लगा दी थी. इस हादसे में 36 लोगों की मौत हो गई थी.
बाद में जब पुलिस ने उस शख़्स को गिरफ़्तार किया तो उसने बताया कि वो उस स्टूडियो से नाराज़ था क्योंकि उस स्टूडियो की वजह से उसका काम छिन गया था.
ऐसा ही एक और भी मामला सामने आया था. यह साल 2008 की घटना थी जब, टोक्यो के अकिहाबारा ज़िले में एक असंतष्ट युवक ने दुकानदारों के एक समूह पर ट्रक चढ़ा दिया था. इसके बाद वो ट्रक से बाहर निकला और वहां खड़े लोगों को चाकू घोंपने लगा. इस हमले में सात लोगों की मौत हो गई थी.
इस हमले को अंजाम देने से पहले उसने ऑनलाइन एक संदेश पोस्ट किया था. जिसमें उन्होंने लिखा था, “मैं अकिहाबारा में लोगों की हत्या करूंगा. मेरा कोई दोस्त नहीं है. मुझे लोगों ने दरकिनार कर दिया, क्योंकि मैं बदसूरत हूं. मेरी क़ीमत कूड़ेदान से भी कम है.”
हालांकि आबे की हत्या को लेकर अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि ये हत्या फ़र्स्ट कैटेगरी की है या फिर सेकंड कैटेगरी की. लेकिन ऐसा लगता है कि इस राजनीतिक हत्या के बाद से जापान बदल जाएगा.
जापान इतना सुरक्षित है कि यहां सुरक्षा काफी रीलैक्स्ड है. चुनावी अभियानों के दौरान नेता खुले में जाकर, सड़कों पर चुनाव प्रचार करते हैं, भाषण देते हैं, लोगों से हाथ मिलाते हैं.
ऐसे में यह समझना भी आसान हो जाता है कि आबे का हमलावर कैसे उनके इतने क़रीब आ गया और हथियार निकालकर उसने ठीक पीछे खड़े होकर हमला भी कर दिया.
इस हमले के बाद से यह निश्चित तौर पर तय माना जा रहा है कि आज के बाद यह बदल जाएगा.
सौजन्य बीबीसी – रूपर्ट विंगफ़ील्ड-हाएस – बीबीसी न्यूज़, नारा