”दारफ़ुर की स्थिति तो बहुत ख़राब है, क्योंकि वहाँ जंग चलती रहती है. ऐसे में भारतीय वहाँ क्यों जाते हैं पता नहीं. लेकिन ये बताया जाता है कि वो आयुर्वेद के उत्पाद बेचने के लिए जाते हैं, तो ये संभव है क्योंकि सूडान में भी स्वास्थ्य सेवा चरमरा गई है और वहाँ आयुर्वेद का चलन है.”
”हमें भारत सरकार से संदेश मिला है कि हमारी वापसी का इंतजाम हो गया है, लेकिन अभी बस हमारे पास नहीं पहुँची है.” ये शब्द हैं प्रभु एस के, जो सूडान के अलफशर में फँसे हुए हैं.
वाट्सऐप कॉल पर बीबीसी से बातचीत में वो बताते हैं, “मैं अपने गाँव में गरम मसाला बेचने, प्लास्टिक, कपड़ों से बने फूलों को बेचने का काम करता था. लेकिन वो नहीं चला. मेरे गाँव से सूडान में लोग गए थे और उन्होंने बताया कि वो वहाँ आयुर्वेदिक दवा बेचने का काम करते हैं. इसके बाद मैं अपनी बीवी के साथ यहाँ आ गया.” प्रभु कर्नाटक के चन्नागिरी से आते हैं और 10 महीने पहले ही सूडान आए हैं.
वे बताते हैं, ”मैं भी आयुर्वेद की दवा बेचता हूँ. मैं दवाओं के बारे में जानता हूँ. हम शूगर, गैस, बदन और सिर दर्द के लिए दवा और बालों के लिए भी तेल बनाते हैं.”
बीच में फ़ोन पर बात काट कर प्रभु कहते हैं कि मकान मालिक आया है और वो हमें निकलने के लिए कह रहा है.
वे चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, ”जैसे ही बस आएगी, हम निकल जाएँगे. यहाँ हमारे ही गाँव के 50 से ज़्यादा लोग है. बस में अगर दो गार्ड होंगे, तो अच्छा होगा. क्योंकि लूट के मामले सामने आ रहे हैं.”
उत्तर पूर्वी अफ़्रीका में बसे सूडान में अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स (आरएसएफ़) और सेना के बीच लड़ाई जारी है.
इस बीच भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट किया है कि वहाँ फँसे भारतीयो को लेकर पहला जत्था रवाना हो चुका है.
उन्होंने ट्वीट कर लिखा है, ”आईएनएस सुमेधा 278 लोगों के साथ सूडान पोर्ट से जेद्दाह के लिए रवाना हो चुका है.”
इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को ये घोषणा की थी- सूडान में फँसे भारतीयों को लाने के लिए ऑपरेशन कावेरी जारी है. सूडान के बंदरगाह पर 500 भारतीय पहुँच चुके हैं और लोग भी रास्ते में हैं. हमारा जहाज़ और एयरक्राफ़्ट उन्हें लाने के लिए तैयार है.
जानकारी के मुताबिक़ सूडान के अलग-अलग इलाक़ों में 3000 भारतीय फँसे हुए हैं.
इन लोगों में 180 से ज़्यादा लोग कर्नाटक की हक्की-पिक्की जनजाति के बताए जा रहे हैं.
प्रभु एस भी इसी जनजाति से आते हैं.
ये जनजाति भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों के ख़ासकर जंगली इलाक़ों में बसती है. ये जनजाति पक्षी पकड़ने और शिकार करने का काम करती है.
बेंगलुरू में मौजूद स्थानीय पत्रकार इमरान क़ुरैशी बताते हैं कि इस जनजाति के लोग पहले चिड़िया पकड़ने का काम करते थे लेकिन इस पर रोक लगने के बाद वे पाँव में दर्द, गैस आदि समस्याओं के लिए जड़ी-बूटियों और पेड़ पौधों से दवा, तेल निकालने का काम करने लगे.
उनके अनुसार, ”इस जनजाति के लोग अपना सामान अफ़्रीका के देशों, सिंगापुर और मलेशिया में बेचते हैं.”
भारत और सूडान के बीच संबंध
सूडान में भारत के राजदूत रह चुके दीपक वोहरा बताते हैं कि भारतीयों की सूडान में साख है और इस देश के लोग भारतीयों पर भरोसा भी बहुत करते हैं. वे साल 2005 से 2010 तक वहाँ राजदूत रह चुके हैं.
वे बताते हैं, ”मैं दो अहम घटनाओं का साक्षी बना हूँ. साल 2005 में जब सूडान में सरकार और विद्रोहियों के बीच शांति समझौता हुआ था, उस समय भारत की तरफ़ से संयुक्त राष्ट्र के शांतिरक्षक दल के तहत भारतीय सेना भी वहाँ गई थी. वहीं साल 2011 में दक्षिणी सूडान अलग हो गया था.”
सूडान के हर कोने से हज़ारों की संख्या में लोग इलाज कराने के लिए भारत भी आते हैं.
ऐसे में सूडान के लोगों में ये विश्वास है कि भारतीय मेडिकल साइंस में बहुत तजुर्बेकार हैं.
सूडान में भारतीयों के आयुर्वेद की दवाओं बेचने के सवाल पर वे कहते हैं, ”वहाँ आयुर्वेद काफ़ी प्रसिद्ध है और वहाँ के लोगों को भारतीयों पर विश्वास भी है. ऐसे में भारतीय आयुर्वेद उत्पादों, जड़ी बूटियों के साथ ये लोग वहाँ गए होंगे.”
दीपक वोहरा कहते हैं, ”दारफ़ुर की स्थिति तो बहुत ख़राब है, क्योंकि वहाँ जंग चलती रहती है. ऐसे में भारतीय वहाँ क्यों जाते हैं पता नहीं. लेकिन ये बताया जाता है कि वो आयुर्वेद के उत्पाद बेचने के लिए जाते हैं, तो ये संभव है क्योंकि सूडान में भी स्वास्थ्य सेवा चरमरा गई है और वहाँ आयुर्वेद का चलन है.”
वो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि आयुर्वेद की दवाओं के लिए न आपको अस्पताल की ज़रूरत है और दवाएँ भी आपको घर पर ही मिल सकती हैं और शायद इसलिए भारतीय लोग सूडान जाते हैं.
सूडान में भारतीय और व्यापार
पूर्व राजदूत दीपक वोहरा बताते हैं कि वहाँ बसे भारतीय निर्यात का काम ज़्यादा करते हैं.
दीपक वोहरा के अनुसार, ”वहाँ बसे भारतीय अपनी दुकानों के लिए अपने देश और चीन से उपभोक्ता वस्तु, कपड़े आदि ख़रीदतें हैं और बेचते हैं. लेकिन किसी तरह की इंडस्ट्री में वो नहीं हैं और उनकी काफ़ी इज़्ज़त है.” रिपब्लिक ऑफ़ सूडान में ज़्यादातर गुजराती बसते हैं और राजदूत के मुताबिक़ वहाँ 70 फ़ीसदी गुजराती लोग हैं.वहीं रिपब्लिक ऑफ़ दक्षिणी सूडान में भारत के अलग-अलग राज्यों से आए लोग बसे हुए हैं.
तेल और सोने का भंडार
जानकारों के अनुसार जिन देशों में तेल के भंडार होते हैं, वहाँ लोगों को आर्थिक संभावनाएँ ज़्यादा नज़र आती हैं.
हालाँकि सूडान के आर्थिक हालात के बारे में बाताया जाए, तो सलाना प्रति व्यक्ति आय 700 डॉलर है.
पूर्व राजदूत दीपक वोहरा बताते हैं कि वे दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तर में बहुत घूमे हैं.
वे बताते हैं, ”भारत के लोग सूडान इसलिए भी जाते हैं, क्योंकि वहाँ 1970 के मध्य में तेल मिला था. जिसके बाद देश की अर्थव्यवस्था में काफ़ी विकास हुआ और भारत से कई ओनएजीसी के पेशवर 1990 में वहाँ गए थे. दक्षिण सूडान के आज़ाद होने पर भी कई भारतीय यहाँ आए.”
साल 2011 में दक्षिणी सूडान आज़ाद हुआ था और 80 फ़ीसदी तेल यहाँ चला गया था. सरकारी आँकड़ों के अनुसार सिर्फ़ 2022 में ही सूडान ने 41.8 टन सोने के निर्यात से क़रीब 2.5 अरब डॉलर की कमाई की थी.
सूडान संकट के बारे में बारीक जानकारी रखने वाले एक्सपर्ट शेविट वोल्डमाइकल ने बीबीसी को बताया, “आर्थिक संकट से जूझ रहे देश के लिए सोने की खदानें ही आय का मुख्य स्रोत हैं और इस संघर्ष के समय ये रणनीतिक रूप से अहम हो गई हैं.”
पूर्व राजदूत दीपक वोहरा बीबीसी से बातचीत में भरोसा दिलाते हुए कहते हैं कि इससे पहले यूक्रेन में फँसे भारतीयों को बचाने के लिए भारत सरकार ने ऑपरेशन गंगा शुरू किया था जिसके तहत हज़ारों की संख्या में भारतीयों को सुरक्षित लाया गया था.
वे बताते हैं कि भारत ने ऐसे कई सफल ऑपरेशन पहले भी चलाए हैं, जहाँ न केवल भारतीय नागरिकों को बल्कि दूसरे देशों के लोगों को भी प्रभावित देशों से निकालने में मदद की है. ऐसे में सूडान में फँसे भारतीयों को भी सुरक्षित निकाल लिया जाएगा.
- साभारः बीबीसी हिन्दी- सुशीला सिंह बीबीसी संवाददाता