हे विदूषक तुम मेरे प्रियः 7वीं कड़ी- महँगाई पर विदूषक की रायः प्रभाकर चौबे

सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास  हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतर भिलाई के वरिष्ठ रंगकर्मी मणिमय मुखर्जी ने किया है । इसका ‘भिलाई इप्टा’द्वारा काफी मंचन किया गया है । आज प्रस्तुत है 7 वीं कड़ी– मंहगाई पर विदूषक की राय

7- मंहगाई पर विदूषक की राय

महाराज ने दीवान, मंत्री, सेनापति, खजांची पेशकार को सभा कक्ष में बुलाया। बोले- आज एक जरूरी परामर्श करना है। प्रहरी से कहा कि विदूषक को बुला लाओ। प्रहरी ने आकर समाचार दिया कि विदूषक आपको सुनाने एक कविता लिख रहे हैं, कहा है कि कविता पूर्ण होते ही पहुँचता हूँ। विदूषक के आने पर सभा शुरू हुई। महाराज ने कहा- हे विदूषक जी मुझे सुनाने के लिए आपने कविता की रचना की है। विदूषक ने कहा- हाँ महाराज, हास्य रस की एक बेजोत्रड रचना है। सभा के बाद सुनाऊँगा।

महाराज ने सभा शुरू की। बोले- हे सभासद, क्या राज्य में भीषण महँगाई फैली है। क्या प्रजा त्राहिमाम कर रही है।

मंत्री ने कहा- महाराज ऐसी खबरें तो आ रही हैं।

दीवान ने कहा- महाराज, महंगाई कुछ बत्रढी जरूर है। प्रजा में अशांति फैली है।

महाराज ने कहा- महंगाई क्यों फैली है। क्या राज्य में कालाबाजारी हो रही है।

मंत्री ने कहा- महाराज हमारे राज्य में कालाबाजारी होती नहीं। इस राज्य में कालाबाजार नहीं गोराबाजार लगता है।

विदूषक ने कहा- महाराज, पिछले आदेश के अनुसार राज्य में काला रंग प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसकी मुनादी करा दी गई थी। काला रंग प्रतिबंधित है तो कालाबाजारी कैसे हो सकती है।

महाराज ने पूछा- तो क्या जमाखोरी की जा रही है।

सेनापति ने कहा- नहीं महाराज। हमारे यहाँ जमा करना अपराध है। कुछ भी जमा करना अपराध है। हमारे यहाँ जाम होता है, जमा नहीं?

महाराज ने पूछा- यह ठीक है। जाम हो, जमा नहीं। लेकिन महंगाई बत्रढी है। क्या राज्य में पापाचार बत्रढा हैं।

मंत्री ने कहा- महाराज, इस राज्य में पापाचार होता ही नहीं। यहाँ हर दिन सतसंग चलता है। प्रवचन होते हैं। धार्मिक सभाएँ हो रही हैं। राज्य के साधु प्रसन्न हैं, खूब दान-दक्षिणा पा रहे हैं। दूसरे राज्य से साधु यहाँ आकर दान-दक्षिणा ग्रहण कर रहे हैं, प्रसन्न हैं महाराज। तीर्थाटन, अनुष्ठान, यज्ञ, पुराण कथाएँ ही हो रही हैं। पूरा राज्य धर्ममय हो गया है। यहाँ पापाचार कदम तक नहीं रख सकता।

खजांची ने कहा- हाँ महाराज, राजकोष से प्रतिदिन हजारों स्वर्ण मुद्राएँ धार्मिक कार्यों के लिए दी जा रही हैं। धार्मिक आयोजनों के लिए राजकोष का मुँह हमेशा खुला है। यहाँ अधर्म का क्या काम।

महाराज ने कहा- फिर महंगाई क्यों बत्रढी है।

दीवान ने कहा- महाराज शत्रु देश के कुछ जासूस यहाँ घुस आए हैं। वे प्रजा के बीच दुष्प्रचार कर रहे हैं। असंतोष फैला रहे हैं।

महाराज ने कहा- उन्हें पकत्रडकर दंडित करो।

दीवान ने कहा- महाराज यह काम किया जा रहा है।

महाराज ने कहा- महंगाई के नाम पर असंतोष न फैले, ऐसा क्या किया जाए। विदूषक बताओ क्या उपाय किया जाए।

विदूषक ने कहा- महाराज बिल्कुल आसान उपाय है।

मंत्री ने पूछा- ऐसा! तो उपाय का उद्धाटन कीजिए।

विदूषक ने कहा- महंगाई शब्द को देश निकाला दे दिया जाए।

दीवान ने कहा- महंगाई शब्द का देश निकाला।

महाराज ने कहा- ऐसा हो सकता है।

विदूषक ने कहा- ऐसा होगा अब।

महाराज ने कहा- स्पष्ट करें विदूषक जी।

विदूषक ने कहा- महाराज, हम बदमाशों, लुटेरों, बटमारों, लफंगों, विद्रोहियों, चोरों को देश निकाला देते हैं। उसी तरह हम शब्द को भी देश निकाला दे सकते हैं।

महाराज ने कहा- विदूषक जी आपकी गहन रहस्यमय वाणी समझ में नहीं आ रही। शब्द को देश निकाला कैसे दें।

विदूषक ने कहा- महाराज, हम कहते हैं कि झूठ न बोलें मतलब झूठ को हमने निकाला। सत्य बोलें मतलब सत्य शब्द को अंदर किया। अपराध न करें कहते हैं, मतलब अपराध शब्द का निकाला हुआ कि नहीं।

मंत्री ने कहा- हाँ, हुआ। अपराध का हृदय से निकाला हुआ।

विदूषक ने कहा- एकदम ठीक समझे। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो कहने का तात्पर्य होता है, अधर्म का निकाला हो, अधर्म एकदम बाहर जाए।

खजांची ने कहा- वाह! इसीलिए तो राजकोष से दान दिया जा रहा है।

विदूषक ने कहा- इसी तरह अब अपने राज्य से महंगाई शब्द का ही देश निकाला करना है।

महाराज ने कहा- कैसे।

विदूषक ने कहा- राज्य भर में मुनादी करा दें कि अब राज्य में कोई भी आदमी या औरत या बच्चा या वृध्द महंगाई शब्द न बोलेगा न सुनेगा। महाराज की आज्ञा से महंगाई शब्द को देश निकाला की सजा दी गई है। अब महंगाई शब्द की पौनी-पसारी बंद। उसके साथ न उठना, न बैठना, न उसे पानी देना, न चिलम-बीत्रडी देना। महंगाई शब्द इस राज्य में न दिखे न कोई उच्चारित करे। इस आदेश का उल्लंघन करने वाले को कठोर दंड दिया जाएगा।

महाराज ने कहा- इससे महंगाई रुक जाएगी।

विदूषक ने कहा- महाराज यह प्रिवेंटिव मेजर यानि कि बचाव कार्य है। राज्य में कोई महंगाई शब्द बोलेगा नहीं तो महंगाई सुनाई नहीं देगी। आप महँगाई सुनने से तो मुक्त हुए।

महाराज ने कहा- ठीक कहते हो। महंगाई सुनते-सुनते दिल की धत्रडकन बत्रढ जाती है।

मंत्री ने कहा- महंगाई शब्द का उच्चारण प्रतिबंधित करना बचाव कार्य है। महंगाई रोकने के उपाय भी बता दें विदूषक जी।

विदूषक ने कहा- महाराज, उपाय आसान है। राज्य की सारी दुकानें बंद करा दें। न रहेंगीं दुकानें न बत्रढेगी महंगाई।

महाराज ने कहा- प्रजा सामान कहाँ से खरीदेगी। दुकानें बंद करा दी गईं तो हाहाकार मच जाएगा।

विदूषक ने कहा- महाराज, प्रजा को खाने-पीने की आदतें सुधारने कहा जाना चाहिए।

मंत्री ने पूछा- खाने-पीने की आदतें कैसे सुधरेंगी।

विदूषक ने कहा- प्रजा से कहा जाए कि वह फिर से प्रकृति की ओर लौटे।

दीवान ने कहा- जरा स्पष्ट करें विदूषकजी।

विदूषक ने कहा- प्रकृति की ओर लौटना नहीं समझते आप। अपने कपत्रडे उतार दीजिए, फिर प्रकृति की ओर लौट गए आप। इस पर सब हँसने लगे।

विदूषक ने कहा- महाराज प्रजा अनाज खाती है। तेल प्रयोग करती है। साबुन और नमक का प्रयोग करती है। कपत्रडे पहनती है। इसीलिए दुकानें खुली हैं, इसीलिए महंगाई बत्रढती है। जब प्रजा अनाज खाना बंद कर दे तो काहे की कीमत और काहे की महंगाई।

महाराज ने कहा- तो प्रजा क्या खाए।

विदूषक ने कहा- प्रकृति की ओर लौटे तो कंद-मूल, फल-फूल खाए। पेत्रड की पत्तियाँ खाए। महाराज, आदिम युग में मतलब जब आदमी प्रकृति के पास था तब महंगाई थी क्या? कहीं पत्रढा है ऐसा कि उस युग में लोग महंगाई से परेशान थे। नहीं पत्रढा। महाराज, प्रकृति से सब लेते थे। फल-फूल, कंद-मूल, घास, पत्तियाँ मुफ्त में मिलती थीं।

दीवान ने कहा- तो इन खेती का, इन बारियों का क्या होगा।

विदूषक ने कहा- प्रजा से कहें कि खेती में घास उगाए। ज्यादा पौधे लगाए। हर खेत में घास। हर मेत्रड पर पौधे। जनता प्रकृति के पास रहेगी तो कीमत देने की झंझट से मुक्त रहेगी।

महाराज ने कहा- मतलब महंगाई रोकने तो उपाय किया जाएं, एक तो महंगाई शब्द का देश निकाला और दूसरा जनता को प्रकृति के करीब भेजना। जनता कंद-मूल, घास-पत्ती खाए और महंगाई भूल जाए।

विदूषक ने कहा- एकदम यही उपाय करना होगा।

मंत्री ने कहा- वाह विदूषक जी क्या उपाय बताया।

दीवाने ने कहा- इसीलिए राज्य में विदूषक का पद रखा जाना जरूरी होता है।

अगले अंक में- कड़ी 8 -घूसखोरी नहीं सेवाखोरी है यह

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