
विश्व बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष : अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के 2016 के आंकड़ों के अनुसार भारत में पांच से 17 वर्ष के दो करोड़ 38 लाख बच्चे काम करते हैं। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों का मानना है कि कोरोना वायरस संकट के चलते बाल श्रमिकों की संख्या और बच्चों की तस्करी की संभावनाएं तेजी से बढ़ रही है।
बारह बरस का राहुल दिल्ली में किराने की एक दुकान पर काम करता है। वह स्कूल में दाखिला लेकर बेहतर भविष्य के सपने संजो ही रहा था कि कोरोना वायरस महामारी ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।दिल्ली के मयूर विहार इलाके में किराने की दुकान से लोगों के घरों तक सामान पहुंचाने के बदले में दो हजार रुपये महीना पाने वाले राहुल ने कहा, ‘स्कूल बंद है और पता नहीं कब खुलेंगे। पापा रिक्शा चलाते हैं और उनका भी काम बंद पड़ा है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अब काम छोड़कर स्कूल जा सकूंगा।’
यह हाल सिर्फ राहुल का ही नहीं, कोरोना काल में देश के अधिकांश बाल मजदूरों का है। आज, 12 जून को विश्व बालश्रम निषेध दिवस है, लेकिन इससे पहले ही ऐसी आशंकायें सामने आईं हैं कि मौजूदा दौर में आर्थिक परेशानियों को झेलने में अक्षम परिवार फिर बच्चों को बाल श्रम की गर्त में धकेल सकते हैं।
बच्चों की तस्करी करने वाले भी सक्रिय हो गए हैं जिस पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से जवाब भी मांगा है। आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2002 से विश्व बालश्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) मनाना शुरू किया जिसमें इस समस्या को खत्म करने के लिये हो रहे प्रयासों पर विश्व स्तर पर बात की जाती है।
गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पांच से 14 वर्ष की उम्र के एक करोड़ से अधिक बाल श्रमिक हैं और पांच से 18 वर्ष की उम्र के 11 में से एक बच्चा काम कर रहा है। आईएलओ 2016 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में पांच से 17 वर्ष के 15 करोड़ 20 लाख से अधिक बच्चे काम करते हैं और इनमें से दो करोड़ 38 लाख भारत में हैं।
बच्चों के लिये काम कर रहे संगठनों ने आशंका जताई है कि लॉकडाउन और प्रवासी मजदूरों की समस्या के बाद बाल श्रम भी विकराल रूप ले सकता है। पहले लॉकडाउन में ही बच्चों की हेल्पलाइन पर तीन लाख कॉल आये और आठ प्रतिशत बाल श्रम संबंधी थे।
गैर सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ के उप निदेशक (बाल संरक्षण) प्रभात कुमार ने कहा, ‘पिछले तीन चार दशक से हमने बाल श्रम को खत्म करने के लिये काफी उपाय किये और 2001 से 2011 की जनगणना में बाल श्रम के आंकड़ों में 20 फीसदी कमी आई। लेकिन अगर इस समय इसके लिये कोई ठोस उपाय नहीं किये गए तो इस सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा।’
कुमार ने आगे कहा, ‘यह भी संभावना है कि अब ये बच्चे दोबारा स्कूल भी न लौटें और इन्हें आर्थिक अड़चनों से जूझ रहे इनके परिवार मजदूरी की ओर धकेल दें। उम्रदराज लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण का जोखिम अधिक होने से अब बच्चों को दोबारा शहरों में काम के लिये भेजने की आशंका भी बढ़ी है।’ वहीं, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा, ‘हम राज्य सरकारों के संपर्क में हैं और इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। इसके लिये पंचायतों या ग्रामीण बाल कल्याण समितियों को अधिक सक्रिय होना होगा।’
कानूनगो ने कहा, ‘खेती में तो बाल मज़दूरी है ही लेकिन इसके अलावा भी कई सेक्टर ऐसे हैं जिनमें बच्चों को ही लगाया जा रहा है। हमें उन क्षेत्रों की पहचान करके कड़ी सतर्कता बरतनी होगी।’ उल्लेखनीय है कि भारत में ख़रीफ़ की फ़सल का मौसम शुरू होने वाला है और देश में 62 प्रतिशत बाल मजदूर इसी सेक्टर में हैं।
कानूनगो ने आगे कहा, ‘जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 45 में 2000 रुपये प्रतिमाह प्रायोजन का प्रावधान है लेकिन उत्तर और मध्य भारत में यह लगभग बंद ही है। इसके अलावा संस्थागत प्रायोजन के चलन पर भी रोक लगानी जरूरी है।’
उन्होंने कहा, ‘हमने बच्चों के अवैध व्यापार और बाल श्रम पर रोक लगाने के लिये राज्यों से बात की है और अगले सप्ताह उन्हें योजना का मसौदा भी भेजेंगे। बाल श्रम से बचाव के लिये परिवारों को रोजगार सुनिश्चित कराना भी जरूरी है।’
प्रियांक कानूनगो ने कहा कि बाल श्रम की समस्या को दूर करने के लिए मौजूदा कानूनों का इस्तेमाल प्रभावी तरीके से होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब तक इस संबंध में जितनी प्राथमिकियां दर्ज हुई हैं, उसे देश में बाल श्रमिकों की संख्या को देखते हुए मिलाया जाय तो वह बेहद कम है। इसलिए यह सभी की जिम्मेदारी है कि वह बाल श्रमिक के बारे में बताएं और प्राथमिकी दर्ज कराएं।
इसके अलावा बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राई) ने कहा कि कोरोना वायरस संकट के बाद घरों से चल रहे कामकाजों, कृषि और जोखिम भरे पेशों में बाल श्रम में बढ़ोतरी हो सकती है।
गैर सरकारी संगठन क्राई ने कहा कि परिवार में उपजी आर्थिक तंगी की भरपाई करने के लिए बच्चों को अकुशल श्रम में धकेले जाने की आशंका है। ऐसी आशंका है कि जिन घरों में भी पैसे को लेकर परेशानियां होंगी, वहां बच्चे पढ़ाई के बदले अपने घर की मदद करने के लिए काम को चुन सकते हैं।
क्राई ने बाल श्रम कानून को कड़ाई से लागू करने की सिफारिश की है। संगठन ने कहा कि सरकार को सामाजिक दूरी और अन्य नियमों का ध्यान रखते हुए कक्षाओं की भरपाई करने के लिए विशेष प्रशिक्षण केंद्र खोलने चाहिए।
(सौज- न्यूजक्लिक / समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट से)