

बहुत हल्ला मचा तो एक सप्ताह के लॉक डाउन का निर्णय लेने की चर्चा हो रही है। एक बार फिर व्यापारी संघ के प्रतिनिधि के साथ चर्चा के दौरान इस निर्णय पर विचार किया गया। न तो कोई डॉक्टर ,न वैज्ञानिक और न समाज और आर्थिक विषय विशेषज्ञ।आखिर महामारी के संक्रमण को गंभीरता से क्यों नही लिया जा रहा?
महामारी से लड़ने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों वैज्ञानिकों की जगह हर बार सलाह मशविरे के लिए व्यापारियों को क्यों प्राथमिकता दी जा रही है? कलेक्टर ने फिर चन्द भरे पेट वाले व्यापारियों को बुलाया और समझ लिया पूरी जनता के यही प्रतिनिधि और महामारी के विशेषज्ञ भी यही । इस बार फिर इन्हीं की सलाह से 1 सप्ताह के लॉक डाउन का फैसला करने पर विचार हुआ । ये चंद बड़े-बड़े व्यापारी तो पूरे व्यापारी समाज का भी प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और ये न येमहामारी के विशेषज्ञ ही हैं। आखिर ऐसे बन्द की मार तो हज़ारों छोटे व्यवसायों पर ही पड़ेगी । इस दौरान ये बडी तोंद वाले खाय अघाए लोग नेटफ्लिक्स पर मौज उड़ाएंगे और रोज कमाने खाने वाले छोटे छोटे लोग एक बार फिर तकलीफ में पड़ जाएंगे।
प्रशासन ने कभी सोचा ही नहीं कि फल सब्जी वालों को छोड़कर भी अन्य व्यवसाय करने वालों का भी एक बड़ा तबका रोज कमाने खाने वालों का है जो बड़ी दुकान नहीं रखता। कम लागत और टर्न ओव्हर वाले छोटे, छोटे ठेलों खोमचे पर, सड़कों पर व्यवसाय करने वाले छोटे व्यापारी को न तो कोई पूछता है न इनकी चिंता करता है। न तो इनका कोई प्रतिनिधि ऐसी बैठकों में होता है और ना ही यह बैठक कराने वाली इन लोगों को बुलाना पसंद करते हैं । इन लोगों की नजर में यह छोटे-छोटे लोग कीड़े मकोड़ों की तरह होते हैं। सारा बाजार चंद बड़े व्यापारियों के चंगुल में फंसकर रह गया है। क्या बाजार सिर्फ इन्हीं बड़े लोगों का है? प्रशासन और सरकार इस पर कुछ सोचती ही नहीं, फतवा सरीखे एक फरमान जारी कर देती है, आज शाम को खुलेगा कल सुबह नहीं खुलेगा परसों रात तक चलेगा, सप्ताह भर बन्द रहेगा आदि आदि।
कहां जाएंगे ये बेचारे छोटे-छोटे व्यवसाई? रोज कमाने खाने वालों का क्या होगा ? गौरतलब है कि महामारी के भीषण दौर में कभी किसी ने सोचा ही नहीं कि इन छोटे व्यवसाय करने वाले, ठेले खोमचे वाले हज़ारों परिवार का भरण पोषण कैसे ही रहा है? अब तक कभी किसी ने सोचा ही नही कि लॉक डाउन में इनकी आय का क्या जरिया रह गया है और इनके परिवार का गुजारा कैसे हो रहा है । ये छोटे छोटे व्यापारी पिछले तीन-चार महीनों से जीविका के लिए, परिवार के भरण पोषण के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। न तो इनके लिए किसी तरह के आर्थिक पैकेज पर विचार किया गया न इन्हे किसी अन्य तरह की कोई मदद की व्यवस्था की गई। किसी भी तरह के लॉक डाउन के पहले इस पर गंभीरता से विचार करना और राहत पैकेज की व्यवस्था करना बहुत ज़रूरी है।
दूसरी ओर प्रदेश में महामारी संक्रमण के बढ़ते खतरे को नियंत्रित करना भी बहुत ज़रूरी है मगर क्या ऐसे दिशाहीन निर्णय और अनियोजित कार्यप्रणाली अथवा अदूरदर्शी फरमान से कोई सकारात्मक परिणाम मिल सकेंगे? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी के फैलाव की चेन को तोड़ने एक समुचित सम्पूर्ण लॉक डाउन की जरूरत है जिसके लिए कम से कम 15 दिन की फिजिकल दूरी आवश्यक होती है।इस तरह औपचारिकता निभाने के लिए बन्द कर देने से वो चेन तो नहीं टूटती जिससे महामारी के फैलाव पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि ये निर्णय बहुत तकलीफदेय और कठिन प्रतीत होता है मगर प्रदेश और समाज की बेहतरी और महामारी पर नियंत्रण के लिए यही कारगर सिद्ध हो सकता है।
इसके लिए लॉक डाउन के पूर्व न सिर्फ डॉक्टरों बल्कि समाज और आर्थिक विशेषज्ञों से सलाह मशविरा कर समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर कार्य योजना बनानी होगी। समाज के निचले एवम् गरीब तबकों के लिए आर्थिक पैकेज की समुचित व्यवस्था करनी होगी ।
सरकार को सकारात्मक परिणाम हासिल करने इस दिशा में गंभीरतापूर्वक मंथन करना होगा। चंद व्यापारियों की बजाय डॉक्टर, वैज्ञानिकों, समाज और आर्थिक विशेषज्ञों से सलाह मशविरा कर प्रदेशहित में उचित निर्णय लेना चाहिए । महज नाम के लिए लॉक डाउन करके संक्रमण के फैलाव को रोक पाना मुश्किल है।