कोरोना के कारण गरीबी के चरम स्तर पर पहुंच सकती हैं दुनिया की 4.7 करोड़ महिलाएं: संयुक्त राष्ट्र

राजू साजवान

यूएन की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के कारण महिलाओं में गरीबी की दर में 9.1 फीसदी की वृद्धि हो सकती है

कोविड-19 वैश्विक महामारी और उसके बाद बने सामाजिक और आर्थिक हालात के कारण 2021 तक लगभग 4 करोड़ 70 लाख महिलाएं गरीबी के चरम स्तर का सामना कर सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की संस्था यूएन वूमेन और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा कराए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। कोविड-19 से पहले वर्ष 2019 से 2021 के बीच महिलाओं में गरीबी दर 2.7 फीसदी घटने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन अब नई रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के लिए गरीबी में 9.1 फीसदी वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्वव्यापारी महामारी से दुनिया भर में गरीबी की दर बढ़ी है, लेकिन इसका महिलाओं और खासकर प्रजनन उम्र की महिलाओं पर ज्यादा असर हुआ है। अनुमान है कि वर्ष 2021 तक, साल 25 से 34 वर्ष आयु वर्ग में चरम गरीबी का सामना करने वाले हर 100 पुरुषों की तुलना में 118 महिलाएं चरम गरीबी का शिकार होंगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रतिदिन 1 डॉलर 90 सेंट (140 रुपए) या उससे कम रकम पर गुजारा करने वाले लोग गरीबी की श्रेणी में आते हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2030 तक यह अंतर 100 पुरुषों की तुलना में 121 महिलाएं तक बढ़ने की आशंका है। “फॉर्म इनसाइट्स टू एक्शन: जेंडर इक्वलिटी इन दी वेक ऑफ कोविड-19″ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 के कारण साढ़े नौ करोड़ से ज्यादा लोग वर्ष 2021 तक चरम गरीबी के गर्त में चले जाएंगे।

कोविड-19 वैश्विक आपदा और उसके बाद के सामाजिक व आर्थिक दुष्प्रभाव के कारण दुनिया में चरम गरीबी का शिकार हुए कुल लोगों की संख्या 43.50 करोड़ हो जाएगी और इस आंकड़े को महामारी से पहले के स्तर पर वर्ष 2030 से पहले नहीं लाया जाएगा।

यूएन वूमेन की कार्यकारी निदेशक पुमजिले म्लाम्बो-न्गुका का कहना है कि यह रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा कर रही है कि समाज और अर्थव्यवस्था की विसंगतियाँ व ख़ामियों के चलते महिलाओं में गरीबी की दर चरम पर पहुंची है। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि परिवार की देखरेख करने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी महिलाएं निभाती हैं। इसलिए वे कम आय अर्जित करती हैं और कम बचत कर पाती हैं। इसके अलावा उनके रोजगार के अवसर भी निश्चित नहीं हैं। 

उन्होंने कहा कि पुरुषों की तुलना में कुल मिलाकर महिलाओं के रोजगार पर 20 प्रतिशत अधिक जोखिम है। यूएन की वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इतनी सारी विषमताओं को देखते हुए कोरोना महामारी से उबरते समय नीतिगत कार्रवाई को तेज गति से आगे बढ़ाया जाना होगा और उसके केन्द्र में महिलाओं को रखना होगा।

सौज- डाउनटुअर्थ

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