घरेलू रसोई गैस के दाम सात साल में दोगुने हो गए हैं तो खाने की क़ीमतें पिछले एक साल में 50 फ़ीसदी बढ़ गई हैं। ऐसे में सवाल है कि महंगाई का बोझ आम लोगों पर कितना है? यह समझने के लिए एक तरीक़ा तो मुद्रास्फ़ीति का है जो काफ़ी पेचिदा है। दूसरा तरीक़ा है कि यह देखा जाए कि आम लोगों की जेबें कितनी ढीली हो रही हैं। इसके लिए बेहतर पैमाना है रसोई के ख़र्च को देखना। यदि इस पैमाने पर देखा जाए तो रसोई गैस और खाने वाली तेल की क़ीमतें महंगाई की कहानी काफ़ी हद तक बयां कर देती हैं। ऐसे में ग़रीब के घरों का बजट तो गड़बड़ा गया है। लेकिन क्या इनसे सरकार पर भी असर पड़ा है?
घरेलू रसोई गैस की क़ीमत पिछले सात वर्षों में दोगुनी हो गई है। कई सालों से धीरे-धीरे सब्सिडी को ख़त्म कर दिया गया है। यह तो हुई आम आदमी की बात। लेकिन सरकार का क्या? सरकार के मंत्री से ही जानिए। वह भी लोकसभा में दिया गया है। लोकसभा में तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के लिखित जवाब के अनुसार, 1 मार्च 2014 को एक एलपीजी रिफिल की क़ीमत 410.50 रुपये थी और अब इस महीने बढ़कर 819 रुपये हो गई। यह क़ीमत दिल्ली की है और राज्य में लगने वाले करों के अनुसार ये क़ीमतें थोड़ी कम ज़्यादा हो सकती हैं।
4 फ़रवरी से अब तक चार बार गैस की क़ीमतों में बढ़ोतरी की गई है और अब तक रिफिल की क़ीमत में प्रति सिलेंडर 125 रुपये की बढ़ोतरी हुई है।
खाने के तेल के दाम 50% महंगे
खाने के तेल की क़ीमतें पिछले एक साल में 25 फ़ीसदी से लेकर 50 फ़ीसदी तक महंगी हो गई हैं। आम उपभोक्ता पर तो इसका भार पड़ ही रहा है, सरकार के लिए भी मुश्किल बढ़ती जा रही है। यह सरकार के लिए भी कितनी बड़ी सिरदर्दी है यह इससे समझा जा सकता है कि एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार इस पर इसी हफ़्ते अंतर-मंत्रालयी कमिटी की बैठक करने वाली है। यानी सरकार को भी पता है कि यदि बढ़ती महंगाई पर काबू नहीं पाया तो राजनीतिक नुक़सान हो सकता है।
‘टीओआई’ की रिपोर्ट के अनुसार उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ के आँकड़ों से पता चलता है कि पैक किए गए मूंगफली तेल का मॉडल (आम इस्तेमाल का तेल) मूल्य 9 मार्च, 2020 को 120 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर मंगलवार को 170 रुपये हो गया है। इसी तरह, पिछले एक साल में पैक सरसों के तेल का मॉडल मूल्य 113 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 140 रुपये हो गया है। इस अवधि के दौरान पाम ऑयल के मॉडल की क़ीमत में भी 50% की वृद्धि हुई है, जो 85 रुपये से बढ़कर 122 रुपये प्रति लीटर हो गया है। रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि सबसे पहले खाद्य तेल की वैश्विक आपूर्ति में कमी आई है और घरेलू खपत बढ़ने के संकेत हैं। दूसरा कारण आयातों पर भारत की बहुत बड़ी निर्भरता है।
पिछले एक साल में मॉडल वनस्पती की क़ीमतें (पैक) 80 रुपये से बढ़कर 120 रुपये प्रति लीटर हो गईं। एक साल पहले पैक किया गया सूरजमुखी का तेल 110 रुपये की तुलना में अब 150 रुपये में बिक रहा है।
ईंधन पर कर से सरकार का मुनाफ़ा बढ़ा
मार्च 2014 से लेकर अब तक की अवधि के दौरान बढ़े हुए करों के कारण पेट्रोल और डीजल की बिक्री से आने वाला सरकार का कर संग्रह साढ़े चार गुना बढ़ गया है।
प्रधान ने कहा कि 2013 में ईंधन की बिक्री से राजस्व संग्रह 52,537 करोड़ रुपये रहा, जो 2019-20 में बढ़कर 2.13 लाख करोड़ रुपये और 2020-21 के 11 महीनों में 2.94 लाख करोड़ रुपये हो गया। प्रधान ने कहा कि केंद्र सरकार का पेट्रोल, डीजल, जेट ईंधन, प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल का कुल संग्रह 2016-17 में 2.37 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर अप्रैल-जनवरी 2020-21 के दौरान 3 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
हाल के दिनों में पेट्रोल कई राज्यों में कुछ जगहों पर 100 रुपये प्रति लीटर से ज़्यादा हो गया। हालाँकि पिछले दो हफ़्ते से क़ीमतें स्थिर हैं। देश में पेट्रोल और डीजल के महंगा होने का बड़ा कारण एक्साइज ड्यूटी और दूसरी तरह के टैक्स हैं। यूपीए सरकार और मौजूदा मोदी सरकार की इन टैक्स दरों में भी काफ़ी ज़्यादा अंतर है। यूपीए सरकार के दौरान पेट्रोल पर 9.48 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 3.56 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी थी। मौजूदा स्थिति में पेट्रोल पर सरकार 32.98 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगा रही है।
सौज- सत्यब्यूरो
इसी तरह से सरकार अपना पेट पाल रही है