क्या कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए जमीन तैयार की जा चुकी है- जीवेश चौबे

क्या ये हमारे लोकतंत्र की हार है जिसमें बहुमत प्राप्त दल को छल बल धन बल से तोड़कर अपनी सरकार बनाने वाले को स्वीकार्यता और सम्मान मिल रहा है ? या यह मतदाताओं के मताधिकार का अपमान है जिसमें उनके मत का कोई मतलब नहीं रह जाता। जब चुनाव पश्चात विपरीत परिणामों को येन केन अपने पक्ष में ही किया जाना है तो ऐसे में मतदान का क्या औचित्य रह जाएगा ?  विदित हो कि वर्तमान कर्नाटक सरकार कांग्रेस जे डी एस गठबंधन को तोड़कर ही बनाई गई थी।

कल से तमाम न्यूज चैनल्स पर कर्नाटक चुनाव के एग्जिट पोल आ रहे हैं। हर बार आते हैं, मगर इस बार ऐसा हो रहा है कि ज्यादातर सर्वे में कांग्रेस की सरकार बनने के आसार सामने आ रहे हैं । 

अब ये तो गोदी मीडिया के लिए बहुत दुखद और दुविधापूर्ण हो गया है कि वे भाजपा को कैसे पीछे बताएं।इसका एक ही तरीका है कि बोल दो ” कांटे की टक्कर” “जेडीएस” किंगमेकर…त्रिशंकु विधान सभा के आसार आदि आदि। निश्चित रूप से आज परिणाम का आकलन तो अनिश्चित ही हैं मगर इस तरह की चाटुकारिता मीडिया के पतन को उजागर करता है।

सबसे बड़ी विडंबना ये है कि न सिर्फ मीडिया बल्कि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग यह बड़े आराम और बेशर्मी से कह रहा है या मान ही रहा है कि परिणाम कुछ भी हो सरकार तो भाजपा बना रही है।ऐसा नरेटिव मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से आम जन में फैलाय जा रहा है।

क्या ये हमारे लोकतंत्र की हार है जिसमें बहुमत प्राप्त दल को छल बल धन बल से तोड़कर अपनी सरकार बनाने वाले को स्वीकार्यता और सम्मान मिल रहा है ? या यह मतदाताओं के मताधिकार का अपमान है जिसमें उनके मत का कोई मतलब नहीं रह जाता। जब चुनाव पश्चात विपरीत परिणामों को येन केन अपने पक्ष में ही किया जाना है तो ऐसे में मतदान का क्या औचित्य रह जाएगा ?   पिछले वर्षों में जनता ने यह देखा है की अनेक प्रदेशों में भाजपा को मतदाताओं द्वारा नकार दिए जाने के बावजूद खरीद फरोख्त या साम, दाम दण्ड भेद का सहारा लेकर भाजपा ने सरकार बनाई है। सबसे दुखद ये है कि इन हथकंडों को अब एक पार्टी और वर्ग विशेष द्वारा सही और सम्यानुकूल ठहराते हुए देश में मान्यता और स्वीकार्यता दिलाने की कोशिश जा रही है। 

विगत 5- 7 सालों में हुए विभिन्न चुनाव परिणामों पर नजर डालें और आकलन करें तो  मध्य प्रदेश ..राजस्थान,-छत्तीसगढ़,, पंजाब, बिहार, झारखंड ,तमिलनाडु ,तेलंगाना, हिमाचल, महाराष्ट्र, बंगाल, आंध्रप्रदेश, केरल ,उड़ीसा,- मेघालय ,नागालैंड , मिजोरम., सिक्किम, यहां तक कि विगत इलेक्शन में कर्नाटक में भी जनता ने भाजपा को नकार दिया था और भाजपा हार गई थी । मगर इनमें से अधिकांश राज्यों में तोड़ फोड़ की राजनीति के बाल पर भाजपा ने सरकार बनाई या सरकार में शामिल हुई।

अब एक बार फिर कर्नाटक के लिए जमीन तैयार की जा रही है।यदि परिणाम विपरीत आते हैं तो फिर एक बार यही देखने मिल सकता है।विदित हो कि वर्तमान कर्नाटक सरकारभी भाजपा ने कांग्रेस जे डी एस गठबंधन को तोड़कर ही बनाई थी।

राष्ट्रीय स्तर पर कुछ ऐसा भ्रम फैला हुआ है या कहें ऐसा नरेटिव बना दिया गया है मानो हर जगह भाजपा ही जीत रही हो…जबकि इन राज्यों में हारने के बावजूद..साम दाम दण्ड भेद लगाकर खरीदे गए  विधायकों के दम पर ही बेशर्मी से सरकारें बना ली गई… ।

अब नया नैरेटिव फैलाया जा रहा है जिसमें तर्क ये दिया जाता है कि विपक्षी अपने प्रतिनिधियों को संभाल कर क्यों नहीं रख पाते , वे बिकने के लिए आतुर रहते हैं। यानी इस तर्क से तो भ्रष्टाचार में देने वाला दोषी नहीं हुआ, सारी गलती लेने वाले की है जो बिकने को आतुर है।ऐसे ही बहुत से तर्क अपराधियों को निर्दोष साबित करने के उद्देश्य से पार्टियों द्वारा दिए जाते हैं कि महिलाएं खुद सावधानी नहीं रखती  सोना जेवर पहनकर क्यों लूटने वालों को आमंत्रित करती हैं, या कम कपड़े पहनकर क्यों निकलती हैं आदि।

कहने का आशय यह है कि यह ऐसा नैरेटिव है जिसके तहत समाज में, देश में एक तरह से शुचिता, नैतिकता को पूरी तरह अप्रासंगिक और अपरिहार्य कर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। खासकर उसी पार्टी द्वारा जो खुद को पार्टी विद डिफरेंस कहती है और राजनैतिक शुचिता, संहिता मर्यादा का दंभ भरते थकती नहीं है।

विगत वर्षों में भाजपा की तमाम कारगुजारियों पर गौर किया जाए तो कर्नाटक में भी ऐसा संभव होना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। यदि आपको इसमें कुछ भी अनैतिक नहीं लगता तो आप अपनी चेतना,स्वतंत्र सोच, समझ,विवेक बुद्धि को ताक पर रखिए.. बस इतना याद रखिए कि हिंदू खतरे में है… अंदर तक भयभीत हो जाइए…और इसे एक ही महामानव बचा सकता है…. जल्द ही आपको कई राज्यों में फिर “नैतिक”  बनने का मौका मिलेगा।

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