संविधान प्रजा से नागरिक बनने की प्रक्रिया का दस्तावेज है, कड़े संघर्ष और अनगिनत बलिदान से हासिल आज़ादी को गणतंत्र में स्थापित करने का अहम पड़ाव है । संविधान संवाद के दूसरे आयोजन में मुख्य वक्ता के तौर् पर प्रो मोहम्मद आरिफ अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहीं।
संविधान प्रजा से नागरिक बनने की प्रक्रिया का दस्तावेज है, कड़े संघर्ष और अनगिनत बलिदान से हासिल आज़ादी को गणतंत्र में स्थापित करने का अहम पड़ाव है । संविधान संवाद के दूसरे आयोजन में मुख्य वक्ता के तौर् पर प्रो मोहम्मद आरिफ अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहीं।
*पार्क फाउंडेशन*, छत्तीसगढ़ द्वारा भारतीय संविधान के 75 वें वर्ष के अवसर पर *संविधान संवाद* श्रंखला के अंतर्गत *संविधान संवाद -2* का आयोजन वृन्दावन हॉल रायपुर में किया गया। इस अवसर पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. मोहम्मद आरिफ को आमंत्रित किया गया था।
नागरिक अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध पूरे देश में सम्मानित शिक्षाविद,अध्येता इतिहासकार प्रो आरिफ *भारतीय संविधान के अंतर्निहित मूल्य* विषय पर सम्बोधित किया।
विदित हो कि प्रो आरिफ अपने व्याख्यानो के द्वारा सामाजिक न्याय, समानता , सद्भाव ,सौहार्द्र एवं राष्ट्रीय एकता के लिए लम्बे अरसे से शिद्दत के साथ पूरे देश में सक्रिय हैँ ।
आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं एक्टिविस्ट गौतम बंद्योपाध्याय ने की। प्रारम्भ में जीवेश चौबे ने संचालन करते हुए सभी का स्वागत किया एवं पार्क के अध्यक्ष उमाप्रकाश ओझा ने व्याख्यान के विषय पर आधार वक्तव्य दिया।
मुख्य वक्ता के रूप में प्रो आरिफ ने संविधानन के मूलभूत मूल्यों पर अपनी बात रखते हुए स्पष्ट किया कि इतने बरसों से लागू संविधान पर आज पुनः चर्चा की आवश्यकता क्यों है। उन्होंने कहा कि संविधान देश की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता का मूल है जो लोक की ताकत को स्थापित करता है। जिसे रचते समय संविधान सभा में एक एक शब्द पर लम्बी लम्बी बहसे हुई। देश के लिए संविधान बनाये जाने वाली सभा में सभी वर्ग,संप्रदाय और समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व था। यह सभी की सहमति और अनुमोदन से तैयार हुआ है।
प्रो आरिफ ने संविधान के अंतर्निहित मूल्यों में स्वतंत्रता सामनंता,सम्प्रभूता, एकता और बंधुत्व पर विस्तार से अपने विचार रखे। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग को समझाते हुए लोक की ताकत और महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि संविधान की प्रस्तावना की शुरुवात इन शब्दों से होना व्यक्ति की बजाय लोक की ताकत को मजबूती से रखता है। । उन्होंने फ़्रांस के वाल्टेयर का ज़िक्र करते हुए कहा कि वाल्टेयर द्वारा रचित संविधान मूल रूप से मानवता और मानवाधिकार का प्रथम दस्तावेज़ है और हमारा संविधान उसी से प्रेरित है जो मानव की मौलिक स्वतंत्रता,समानता और मौलिक अधिकार को सम्प्रेषित करता है और उसकी वकालत करता है। आज इसी पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। आज लोक को हाशिये पर डाल मनु स्मृति के आधार पर नये संविधान की आशंका व्यक्त की जा रही है जो भारत के मौजूदा संविधान के लिए खतरा की घंटी है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि संविधान में निहित मूल बातों एवं मूल्यों को लोक में ले जाकर जागरूकता लानी होगी। इसके लिये हर स्तर पर संघर्ष करना होगा और सभी नागरिको को आगे आना होगा। उन्होंने संविधान लिखे जाने में महात्मा गांधी के साथ ही नेहरू,आम्बेडकर और पटेल की भूमिका पर भी विस्तार से बात की
धर्म और धार्मिक स्वतंत्रता पर बोलते हुय्र उन्होंने कहा कि संविधान मे शुरुवात में हि यह स्पष्ट है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा मगर राज्य हर धर्म को स्वतंत्रता और संरक्षण प्रदान करेगा। इसमें ही सेकुलर अंतर्निहित है जो हमारे संविधान की आत्मा की तरह है। हालाँकि इसे स्पष्ट रूप से बाद में जोड़ दिया गया। उन्होंने अपने उद्बोधन में संविधान निर्माण के समय हुई लम्बी बहसो,मुश्किलों और परेशानियों का काफी विस्तार से वर्णन किया। बाद मे उन्होंने उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों एवं शंकाओं का जवाब भी दिया। इस अवसर पर नगर का बड़ा बौद्धिक वर्ग एवं कॉलेज के छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।
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