सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास‘हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतरभिलाई के वरिष्ठ रंगकर्मी मणिमय मुखर्जी ने किया है । इसका ‘भिलाई इप्टा’द्वारा काफी मंचन किया गया है ।आज प्रस्तुत है –
9 वीं कड़ी – मानसिक साक्षरता का अर्थ
सभासदों की बैठक में महाराज गुस्से में लाल हुए जा रहे थे। दीवान, मंत्री सेनापति, खजांची, कोषाध्यक्ष, गुरुकुल अध्यक्ष सर झुकाए बैठे थे। राज्य विदूषक खैनी मल रहा था। महाराज ने कहा_राज्य में शिक्षा की दुर्दशा हो रही है। निरक्षरता दूर नहीं हो रही। पत्रडोसी राज्यों में प्रजा की साक्षरता दर हमारे राज्य से अधिक है। महाराज ने मंत्री से पूछा_बताइए मंत्रीजी प्रजा को साक्षर कैसे बनाया जाए।
मंत्री ने कहा_महाराज, हमारे गुरुकुल अध्यक्ष, इस पर दिन रात चिंतन-मनन कर रहे हैं।
महाराज ने कहा_कुछ नहीं सोच रहे आप लोग। सोचिए। गुरुकल अध्यक्ष क्या सोच रहे हैं।
दीवान ने कहा_यह कि राज्य की प्रजा को साक्षर कैसे बनाया जाए।
सेनापति ने कहा_मतलब साक्षरता की दुर्दशा पर सोच रहे हैं।
महाराज ने कहा_खजांची जी, राज्य में साक्षरता के लिए धन दिया जाता है।
खजांची ने कहा_लाखों स्वर्ण मुद्राएँ दी जा रही हैं महाराज।
महाराज ने कहा_फिर भी प्रजा निरक्षर है। विदूषक जी बताइए क्या करें। हमारे सर में पीत्रडा होने लगी।
विदूषक ने कहा_महाराज राज्य में निरक्षरता है ही नहीं। पूरी प्रजा साक्षर है।
महाराज ने कहा_क्या कह रहे हो विदूषक। हमें खबर लगी है कि राज्य में साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है।
विदूषक ने कहा_महाराज, यह गलत है। पूरी प्रजा साक्षर है।
महाराज ने कहा_आप ऐसा कह रहे हैं।
विदूषक ने कहा_मैं नहीं, आप कहें महाराज। देखिए, राजा कभी झूठ नहीं बोलते। इसलिए हे महाराज आप कहिए कि राज्य की पूरी प्रजा साक्षर है, तो है।
महाराज ने कहा_ऐसा है, तो लो हम घोषणा करते हैं कि राज्य में पूरी साक्षरता है।
विदूषक ने कहा_महाराज और आप सच कह रहे हैं। देखिए, महाराज, साक्षरता का क्या अर्थ है।
महाराज ने कहा_इस सवाल का अर्थ समझ में आया नहीं विदूषक जी, जरा साफ करिए।
विदूषक ने कहा_महाराज, साक्षरता का अर्थ है अक्षर सहित। स-अक्षर। अक्षर के साथ।
विदूषक ने कहा_महाराज, देखिए साक्षर का मतलब केवल लिखना-पत्रढना आना ही नहीं होता। महाराज, जो लोग बोलते हैं वे भी साक्षर हैं। देखिए, महाराज, राज्य के कोने-कोने से प्रजा आपके पास आती है। वे अपना दुखत्रडा लेकर आते हैं। कोई कहता है कि महाराज डाकू तंग कर रहे हैं, रक्षा करें। कोई कहता है महाराज खाने को नहीं है। सहायता करें।
महाराज_हाँ आते हैं और दुखत्रडा का बखान करते हैं।
विदूषक ने कहा_महाराज, वे बोलते हैं कि गूंगे बने रहते हैं।
महाराज ने कहा बोलते हैं, गूंगे बने रहें तो मैं किस तरह समझूँगा।
विदूषक ने कहा_महाराज, ये फरियादी कुछ शब्द बोलते हैं। अक्षर का उच्चारण करते हैं।
महाराज ने कहा_हाँ, शब्द बोलते हैं। पूरा वाक्य बोलते हैं।
विदूषक ने कहा_मतलब वे शब्द के साथ होते हैं। अक्षर के साथ होते हैं। अक्षर के साथ होते हैं मतलब साऽऽऽ क्षर होते हैं अक्षर के साथ, साक्षर। जब वे अक्षर के साथ हैं तो निरक्षर कैसे हुए। वे साक्षर हुए। इसलिए राज्य की पूरी प्रजा साक्षर है।
महाराज ने कहा_विदूषक जी, इसका मतलब यह कि प्रजा बोले तो वह साक्षर। पत्रढना-लिखना भले न जाने।
विदूषक ने कहा_हाँ महाराज, प्रजा बस बोले।
मंत्री ने टोका_लेकिन महाराज प्रजा ज्यादा बोले तो महाराज पर संकट का खतरा भी तो आ सकता है।
विदूषक ने कहा_महाराज, राज्य कभी भी प्रजा को ज्यादा बोलने न दे। उतना ही बोले प्रजा, जितना महाराज को पसंद हो, और महाराज जितना चाहते हैं।
मंत्री ने कहा_ऐसे कैसे हो सकता है। प्रजा एक बार बोलने लगी, उसकी जुबान खुली तो वह ज्यादा बोलेगी।
विदूषक ने कहा_मंत्रीजी, राज्य में इसकी व्यवस्था की गई है कि प्रजा केवल देखे और सुने, बोले न।
मंत्री ने पूछा_क्या व्यवस्था।
विदूषक ने कहा_पूरे राज्य में नाच-गाना की व्यवस्था है। मेले-ठेले, महोत्सव चल रहे हैं। प्रवचन, भजन सुन रही है प्रजा। दूसरे राज्यों से विद्वानों, विदूषियों को बुलाकर कथा का आयोजन किया जा रहा है। प्रजा को भाक्तिं और आस्था में डुबाया जा रहा है। प्रजा केवल सुन रही है देख रही है। बोल नहीं रही।
महाराज_बोलती-सुनती प्रजा साक्षर है।
विदूषक ने कहा_महाराज, इसका परीक्षण कर लिया गया है। यह सिध्द हुआ कि प्रजा केवल देख रही है फिर भी साक्षर है।
महाराज ने पूछा_कैसे विदूषक जी, क्या परीक्षा ली आपने।
विदूषक ने कहा_मराहाज पिछले सावन में पूर्णिमा के दिन राज्य की ओर से पुस्तक दर्शन दिवस का आयोजन किया गया। महाराज, पूरे राज्य में आचार्यों को यह देखने का काम सौंपा गया था कि वे देखें कि प्रजा पुस्तकें देख रही हैं।
महाराज ने पूछा_फिर।
विदूषक ने कहा_महाराज, बाद में आचार्यों ने अपना अवलोकन प्रस्तुत किया कि पूरे दिन राज्य की पूरी जनता पुस्तकें देखती रही। महाराज, राजाज्ञा थी, प्रजा पुस्तकें देखती रहे।
महाराज ने पूछा_लेकिन विदूषक जी, इन सब से क्या प्रयोजन सिध्द हुआ।
विदूषक ने कहा_महाराज इससे यह प्रयोजन सिध्द हुआ कि जनता अक्षर बोलती है इसलिए साक्षर है और पुस्तकें देखती है इसलिए भी साक्षर है।
महाराज ने कहा_मतलब राज्य में शत-प्रतिशत साक्षरता है_अक्षर बोलना और अक्षर देखना, दोनों में प्रजा माहिर है।
विदूषक ने कहा_महाराज भाक्तिं में मानसिक पूजा का बत्रडा महत्त्व है। भक्त किसी मंदिर या पूजागृह नहीं जाते, मन ही मन प्रभु का स्मरण कर लेते हैं, पूजा कर लेते हैं। ऐसी पूजा मानसिक पूजा कहलाती है।
महाराज ने कहा_विदूषक जी, साक्षरता पर विचार देते-देते आप मानसिक पूजा पर कैसे चले आए। आप विलक्षण हैं।
विदूषक ने कहा_महाराज जिस तरह मानसिक पूजा की जाती है उसी तरह प्रजा मानसिक साक्षरता प्राप्त करेगी। प्रजा ऑंखें बंद कर मन ही मन अक्षर, शब्द, वाक्यों को पूरा कर लेगी और वह मानसिक रूप से साक्षरता प्राप्त कर लेगी। यह मानसिक साक्षरता कहलाती है। न पत्रढना, न लिखना, न स्कूल जाना, बस मन ही मन अक्षर का ध्यान कर लेना। यह है मानसिक साक्षरता।
महाराज ने कहा_विदूषकजी, आपने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए। मुझे भी साक्षर बनाया।
मंत्री ने कहा_महाराज, जिस राजसभा में विदूषक पूजे जाते हैं, उस राज्य के राजा के ज्ञान चक्षु खुलते हैं और प्रजा मानसिक साक्षरता के लोक को प्राप्त करती है।
इस पर राजा ने गले का स्वर्ण हार उतार कर मंत्री को यह कहते हुए पहनाया कि मंत्रीजी आज आपने ज्ञान की बात की और आपने भी मेरे ज्ञान चक्षु खोले।
आगे जारी… 10 वीं कड़ी नाक रगत्रडने पर बौध्दिक चर्चा