नथमल शर्मा
ये आख़िरी शब्द है जार्ज फ्लायड के । 46 बरस के इस अश्वेत की गर्दन एक गोरे पुलिस अफ़सर ने अपने घुटनों से दबाई है । जार्ज अपना जीवन बचाने गुहार लगा रहा है । पर उसका अपराध शायद काला होना था और वह वहीं मर गया । उसकी मौत के बाद लोग एक बार फ़िर गुस्से में है । प्रदर्शन कर रहे हैं । कोविड 19 के बावजूद लोग सड़कों पर निकल आए हैं अन्याय के खिलाफ़ ।
दुनिया के सबसे विकसित देश अमेरिका में हो रहा है यह सब । मिनेसोटा शहर के जार्ज फ्लायड का अपराध यह था कि वह अश्वेत था । गोरे पुलिस अफ़सर को आ गया किसी बात पर गुस्सा । दरअसल इस बारे में जितनी खबरें आई है उनमें किसी मे इस बात का उल्लेख दिखा नहीं कि उसका दोष क्या था । पिछले दो दिनों से ये वीडियो वायरल हो रहा था । इसमें एक कार से टिककर अमेरिकन पुलिस अफ़सर खड़ा है और उसके घुटनों के नीचे एक व्यक्ति की गर्दन है । इसके वायरल होते ही अमेरिका में भारी प्रतिक्रिया हुई । हालांकि तब तक , या उसके बहुत पहले ही जार्ज फ्लायड की मृत्यु हो चुकी थी । खबरों में यह जरूर आया है कि साथ के पुलिस वाले भी अपने अफ़सर को रोक रहे थे । कह रहे थे कि उसे छोड़ दें । नीचे दबा जार्ज भी जो निहत्था था अपनी जिंदगी की भीख मांग रहा था । “प्लीज़ आई कांट ब्रीद “(मैं सांस नहीं ले पा रहा हूँ ) ” वह यही कहते रहा पर उस निर्दयी ने नहीं सुना और आखिर जार्ज की जान निकल गई ।
सात समंदर पार हुई इस घटना ने पूरे अमरीका को उद्वेलित कर दिया है । कोविड 19 के बावजूद अनेक शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं । कोविड 19 से वहां एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है । फिज़िकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए लोग सब कुछ सह रहे हैं । पर इस घटना ने जैसे अमरीकी समाज के प्रतिरोध को भड़का दिया है । लोगों की ऐसी नाराज़गी के बाद उस पुलिस अफ़सर डेरेक शाॅविन को गिरफ़्तार कर लिया गया है । उस पर हत्या का आरोप दर्ज़ किया गया है । लोगों के गुस्से को देखते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मृतक के परिजनों के प्रति सांत्वना देते हुए वक्तव्य जारी किया ।साथ ही इसमें उन्होंने कह दिया कि जब लूट शुरू होती है तब शूट करना भी शुरू हो जाता है । लोगों का गुस्सा इससे और भड़क गया । यह सीधे सीधे पुलिस ने जो किया,ठीक किया की तर्ज़ पर ही था । सत्ता ऐसी ही निष्ठुर होती है । सडकों पर नागरिकों का निकलना बढ़ ही रहा है । इसी के साथ राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट भी आग में घी का काम कर रहे थे ।वे लोगों के इस गुस्से का सम्मान ही नहीं कर रहे थे । एक बयान में कहा कि ऐसा ही होता रहा तो सडकों पर सेना उतार दी जाएगी । एक और बयान में कहा कि सभी गवर्नर अपने अपने राज्य में हिंसा रोकें और प्रदर्शन कारियों को लंबे समय तक के लिए जेल में डाल दें । ऐसे में एक पुलिस अधिकारी ने राष्ट्रपति को आड़े हाथों लिया । ह्यूस्टन के पुलिस चीफ आर्ट एवेकेडो ने कहा कि – मैं ट्रंप महोदय को पूरे देश की पुलिस की तरफ से कह देना चाहता हूँ कि आपके पास कुछ ठोस कहने को नहीं है तो अपना मुंह बंद रखे ।
आज 2020 के अमेरिका में भी नस्लवाद से समाज जकड़ा हुआ है । अमरीकी समाज में नस्लीय भेदभाव की जड़े काफी गहरी है । दुनिया को लगता था कि इस सबसे आधुनिक देश में समानता और भाईचारा क़ायम हो चुका होगा । अमरीकी काइंया व्यापारी है पर वहां का नागरिक समाज जागरूक और एक दूसरे के अधिकारों के सम्मान व रक्षा के लिए जाना जाता है । आज जब दुनिया एक तरह से दक्षिण पंथ के गिरफ़्त और कारपोरेट के इशारों पर है तो जाहिर है अमरीका कहाँ बच सका है । हालांकि ऐसा होना नहीं चाहिए । एक सभ्य समाज में ये गोरे काले , ऊंच नीच के भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं । और आज जब शिक्षा और विज्ञान ने मनुष्य को कुछ ज्यादा सभ्य किया है तब तो बिलकुल ही नहीं । पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा बहुत आहत हैं इस घटना से । उन्होंने लिखा है कि “उस वीडियो को देख कर मैं बहुत रोया । इसने एक तरह से मुझे तोड़ कर रख दिया है ।”
अब अमरीका में इस वर्ष चुनाव है इसलिए भी जार्ज फ्लायड की मौत और लोगों के प्रदर्शन, ट्रंप के बयानों को उससे भी जोड़ कर देखा जा रहा है । वहां 13 प्रतिशत अश्वेत हैं । कोविड 19 महामारी से ज्यादा प्रभावित भी ये काले लोग ही है । पुलिस की मार से मरने वाले भी ये लोग ही ज्यादा है । अमरीका की सड़कें इन दिनों प्रदर्शन कारियों से भरी है ।कोविड 19 के चलते वहां करीब चार करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी है । लोग कोविड 19 से चिंतित तो हैं पर आज भी नस्लीय भेदभाव से ज्यादा चिंतित और गुस्से में है । इस नाराज़गी से गोरे और काले अलग- अलग गोलबंद हो जाएंगे ऐसा राजनीति को लग रहा है वहां । हमारे लिए ये कोई नई बात नहीं । हम तो प्रत्याशी ही जाति के आधार पर तय करते हैं । एक पुलिस अफ़सर के घुटने के नीचे दबी जार्ज फ्लायड की गर्दन वहां के नागरिकों को उद्वेलित कर देती है । कर रही है । हमारे यहां तो रोज ही ऐसी न जाने कितनी गर्दन दबती है । कलेक्टर आफिस से किसी को अपनी ज़मीन के कागजात समय पर नहीं मिलना भी तो गर्दन का ही दबना है। मंगला गांव या किसी भी गांव के किसान को उसकी फ़सल की वाजिब कीमत नहीं मिलना या कि सिम्स या किसी भी अस्पताल में ठीक से इलाज़ नहीं होना भी तो गर्दन दबना ही है । महंगी किताबें और बढ़ती फीस, चमकती स्कूलों के बिलकुल पास सूनसान पड़ी सरकारी स्कूल भी तो गर्दन का ही दबना है । अरपाके पानी का सूख जाना या शिवनाथ नदी का बिक जाना भी तो गर्दन का ही दबना है । कल तक जिनकी एक्टीवा में चलने की हैसियत नहीं थी राजनीति में आते ही आज वे इनोवा या ऐसी ही आलीशान गाड़ियों में घूम रहे हैं । यह घूमना भी तो गर्दन का ही दबना है । ऐसे अनेक घुटने हैं जिनके नीचे हमारी गर्दन दबी हुई है । यह बाज़ार और यह राजनीति इतनी चतुर है कि सांस लेने दे रही है । इस निष्ठुरता ने हमें किसी तरह जिंदा तो रखा है लेकिन जैसे सोचने ,समझने , बोलने का नैतिक साहस छीन लिया है । कोविड 19 से डरे हुए हम घरों में बंद है । लाखों लोग सड़कों पर चलने मजबूर तो करोडों लोगों के सामने रोज़ी रोटी का संकट । सरकार के पास जैसे कोई रास्ता नहीं और समाज जैसे भयावह चुप्पी में । हमने न जाने कब से ही बोलना बंद कर दिया है । बहुमत के लोकतंत्र ने चुप समाज की निर्मिति की है ।इसीलिए हम शायद जार्ज फ्लायड की गर्दन में हो रहे और घुटती सांसों को महसूस करने तैयार नहीं । हमने अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को सामाजिक सद्भाव से घनघोर राष्ट्रवाद की ओर मोड़ दिया है । किसी की भी गर्दन दबे हमें फ़र्क नहीं पड़ता अब । हम अपनी माटी के लाल है और इससे बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं । हमारे विचारक मित्र कनक तिवारी ने आज एक वाक्य पोस्ट किया है – “भारतीय जनता में अन्याय का प्रतिरोध करने की ताकत अभी तक तो ठीक से पैदा नहीं हो पाई है । अत्याचारियों के लिए यह अच्छी ख़बर है । ”
(लेखक प्रगजिशील लेखक संघ छत्तीसगढ़ के महासचिव एवं बिलासपुर से प्रकाशित दैनिक ईवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं)