कम्युनिस्ट आंदोलन: व्यंग्य कथाएं- असग़र वजाहत

कोई 10-15 साल पहले मैंने कम्युनिस्ट आंदोलन पर कुछ व्यंग्य कथाएं लिखी थीं।  वे बहुत कम  छपी है। उनमें से एक कथा भाषा पर भी है।उस कथा को फेसबुक पर लगाने की बात सोच रहा था कि ध्यान आया दरअसल वह एक पूरी सीरीज़ है और उस पर समग्रता में ही बात हो सकती है। इसलिए पूरी सीरीज़ दे रहा हूं । व्यंग्य बहुत आक्रामक हैं और उन पर बहुत तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है।- असग़र वजाहत

पचहत्तर के ऊपर के हो गए क्रांतिवीर  (प्रेमी तटस्थ नहीं रह सकते)

 एक

क्रांतिवीर जीवन भर इस भ्रम में रहे कि उनका केवल बायां हाथ ही काम करता है। इसलिए जीवन भर उन्होंने दाहिने हाथ से काम न लिया जबकि दाहिना हाथ बाएं हाथ से ज्यादा काम कर सकता था।

अब  पचहत्तर साल के हो जाने के बाद दाहिना हाथ बाएं हाथ से बदतर हो चुका है। 

यही कारण है कि क्रांतिवीर सब कुछ कर सकते हैं लेकिन शहनाई नहीं बजा सकते।

दो

क्रांतिवीर एक किसान के पास गए और बोले, हमारे साथ चलो, संगठन बनाओ, संघर्ष करो। हम क्रांति करेंगे। सबको न्याय मिलेगा। सबका जीवन सुधरेगा।

किसान ने कहा, मेरे छप्पर की बल्ली टूट गई है। मेरे साथ चल कर बल्ली कटवा लाओ तो छप्पर  छा जाए ।

क्रांतिवीर ने कहा, क्या मूर्खता वाली बातें कर रहे हो। कहां क्रांति और कहां छप्पर।

क्रांतिवीर यह कहकर चल दिए और किसान बल्ली की जगह खुद खड़ा हो गया ताकि छप्पर गिर न जाए।

सालों बाद क्रांतिवीर उधर से गुजरे तो उन्होंने देखा बल्ली की जगह लगातार खड़ा रहने के कारण किसान खुद बल्ली बन गया है ।

क्रांतिवीर उसे क्रांतिकारी भाषण देने लगे।

किसान बोला, कामरेड तुम जो कुछ कह रहे हो बिल्कुल ठीक कह रहे हो लेकिन अब मैं चाहूं भी तो तुम्हारे साथ नहीं जा सकता।

क्रांतिवीर का मन किया, किसान का हाथ पकड़कर घसीट लें पर यह सोचकर ऐसा नहीं किया कि उससे छप्पर गिर जाता और दोनों उसके नीचे दब जाते।

तीन

क्रांतिवीर ने एक तख्ती बनवाई जिस पर लिखवाया ‘क्रांतिकारी’ और उन्होंने यह तख्ती गले में लटका ली और बाहर निकल गये पर उनके पास कोई न आया।

इसके बाद क्रांतिवीर ने एक लोहे का टोप बनवाया और उस पर  ‘कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ लिखवाया । लेकिन फिर भी कोई क्रांतिवीर के पास न आया।

इसके बाद क्रांतिवीर ने जिरह बख्तर बनवाया और उस पर पूरी ‘द कैपिटल’ लिखवाई । जिरह बख्तर पहनकर क्रांतिवीर खड़े हो गए। लेकिन उन्होंने जब चलना चाहा तो चल न सके। बैठना चाहा तो बैठ न सके। बोलना चाहा तो बोल न सके। हंसना चाहा तो हंस न सके।

वे केवल खड़े रहे। 

वर्षों खड़े-खड़े जिरह बख्तर के अंदर उनका शरीर गल गया लेकिन जिरह बस्तर खड़ा रहा।

चार

क्रांतिवीर को इंग्लिश आती थी, जर्मन आती थी, रूसी आती थी, इतालवी आती थी, स्पेनिश आती थी लेकिन हिंदी नहीं आती थी।

किसी ने क्रांतिवीर से पूछा, तुम हिंदी नहीं जानते तो हिंदुस्तान में क्रांति कैसे करोगे?

क्रांतिवीर ने जवाब दिया- मैं पहले इंग्लैंड में क्रांति करूंगा फिर जर्मनी में क्रांति करूंगा फिर रूस में, फिर इटली में, फिर स्पेन में और जब इतने सारे देशों में क्रांति आ चुकी होगी तो भारत में बिना हिंदी के क्रांति हो जाएगी।

पांच

क्रांतिवीर यह रहस्य जीवन भर न समझ सके कि वे गरीबों शोषितों, दलितों, अल्पसंख्यकों के सच्चे समर्थक हैं तब भी ये सब उनके साथ क्यों नहीं आते।

इस रहस्य को समझने के लिए क्रांतिवीर पार्टी के सबसे बड़े नेता के पास गए और अपना सवाल पूछा।

 उनका सबसे बड़ा नेता सौ सवा सौ साल का एक बुजुर्ग था । उसकी भावें और पलकें तक सफेद हो चुकी थीं। वह चल फिर उठ बैठ नहीं सकता था।

उसने क्रांतिवीर का सवाल सुनकर कहा, क्या हमारा दर्शन गलत है कामरेड?

– नहीं कामरेड नहीं।’  क्रांतिवीर घबरा गए।

–  क्या हमारी पार्टी गलत है?

–  नहीं नहीं।’ क्रांतिवीर फिर गिड़गिड़ाए।

–  जाओ काम करो…. बकवास मत किया करो ।

क्रांतिवीर काम करने लगे। लंबे समय तक जब उन्हें अपने सवाल का जवाब न मिला तो होते हुआते एक दिन वे एक ज्योतिषी के पास पहुंचे और अपना सवाल पूछा।

ज्योतिषी ने कहा, सवा पांच रुपये निकालो तो बताऊं।

क्रांतिवीर ने सवा पांच रुपये ज्योतिषी  के हाथ पर रख दिए।

छ:

क्रांतिवीर ने एक रात स्वप्न में कार्ल मार्क्स को देखा पर आश्चर्य की बात थी कि कार्ल मार्क्स ने शेव कर रखा था।

क्रांतिवीर ने कहा, प्रभु यह आपने क्या कर डाला।

कार्ल मार्क्स बोले, यह मैंने नहीं तुम लोगों ने किया है।

सात

क्रांतिवीर बहुत दिनों से अंडर ग्राउंड नहीं हुए थे। उन्हें यह बात  कुछ अजीब लगती थी।

एक रात जब वे पत्नी के साथ बिस्तर में लेटे थे तो बोले, सुनो कॉमरेड हम बहुत दिनों से अंडर ग्राउंड नहीं हुए हैं।

पत्नी बोली, चुपचाप लेटे रहिए, मुझे नींद आ रही है।

असग़र वजाहत की अनुमति से (इन व्यंग्य कथाओं को अन्यथा लेने की बजाय आत्मावलोकन व आत्मपरीक्षण किया जाना चाहिए, साथ ही समग्र रूप में विमर्श भी किया जाना चाहिए, यही एक सच्चे कम्युनिस्ट की पहचान भी है। इन कथाओं से संपादक का सहमत होना ज़रूरी नहीं है।  – संपादक)

2 thoughts on “कम्युनिस्ट आंदोलन: व्यंग्य कथाएं- असग़र वजाहत

  1. अद्भुत, कमाल, ज़बरदस्त रचना, असगर जी को साधुवाद।

  2. असगर जी ने अद्भुत लिखा है। साहस का काम है। आज जिस तरह भाजपा संघ या मोदी के खिलाफ लिखना अपराध से कम नहीं, उसी तरह क्रांतिवीरों के खिलाफ लिखना भी सांड को भरे बाजार छेड़ने के समान है। यह बात और है कि ऐसे ही क्रांतिवीरों से वामपंथ भरा पड़ा है।

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