ऐसा अकसर देखा जा रहा है कि कानून के शासन की दुहाई दे रहा उच्चतम न्यायालय उस समय दुविधा में फंस जाता है जब मामला केंद्र सरकार या उससे जुड़ी एजेंसियों का होता है। अब मामला चुनाव आयोग का है और 347 लोकसभा सीटों पर मत पड़ने और ईवीएम से निकले मतों की संख्या में अंतर का है। इस पर दाखिल याचिकाओं में पिछले चार-पांच महीनों से तारीख पर तारीख लग रही है।
इस बीच होने वाले विधानसभा चुनावों में भी इस तरह की शिकायतें आ रही हैं। पर न तो चुनाव आयोग कोई ध्यान दे रहा है न ही न्यायपालिका। तो क्या कर्तव्य निभाना केवल आम जनता के लिए है या जनता के प्रतिनिधियों की सरकार, कार्यपालिका, न्यायपालिका और चुनाव आयोग की भी है?
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की याचिका पर सुनवाई को स्थगित कर दिया। कोर्ट ने चुनाव आयोग को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कॉमन कॉज़ ने संयुक्त रूप से उच्चतम न्यायालय का रुख किया और अपनी याचिका में उच्चतम न्यायालय से मांग की है कि 17वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों में हुई कथित विसंगतियों की जांच करने के निर्देश दिए जाएं।
इससे पहले अदालत ने रजिस्ट्री को टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर इसी प्रकार की याचिका के साथ इस याचिका को टैग करने के लिए कहा था। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने अदालत में उक्त चुनावों में मतदाता मतदान और अंतिम मतों के विवरण के प्रकाशन की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सोमवार को एडवोकेट प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आग्रह किया कि चुनाव के आंकड़ों में विसंगति है और दिसंबर में नोटिस जारी किया गया था, लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक अपनी प्रतिक्रिया दर्ज नहीं की है। नियमों में अब वीवीपीएटी स्लिप को चुनाव के एक साल बाद संरक्षित करने की आवश्यकता है, लेकिन एक आरटीआई के जवाब से ये खुलासा हुआ है कि कुछ महीनों के भीतर ही उनका निपटान कर दिया गया।
इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि कौन सा नियम निर्धारित करता है? भूषण ने चुनाव नियमों के आचरण के नियम 94 का हवाला दिया। इसे आयोग की ओर से प्रतिवादित किया गया था। मैं केवल उन चीजों की ओर इशारा कर रहा हूं जो याचिका दायर करने के बाद प्रकाश में आई हैं।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए याचिका दायर की गई है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया चुनावी अनियमितताओं से मुक्त नहीं है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए है। याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि उन्होंने 2019 के चुनाव परिणामों को चुनौती नहीं दी, लेकिन केवल यह चाहा कि चुनाव आयोग किसी भी चुनाव के अंतिम परिणाम की घोषणा से पहले डेटा का वास्तविक और सटीक सामंजस्य स्थापित करे।
उन्होंने कहा कि विसंगतियों के सामंजस्य के बिना असत्यापित डेटा के आधार पर परिणाम घोषित करना मनमाना, अन्यायपूर्ण, अपारदर्शी, अतार्किक और असंवैधानिक है। ये विसंगतियां बड़े पैमाने पर हैं। प्रणाली में जनता के विश्वास को कायम रखने करने के लिए भविष्य के चुनावों की निगरानी और समाधान के लिए एक जांच प्रणाली बनाई जाए।
गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज ने अपनी याचिका में निर्वाचन आयोग को भविष्य के सभी चुनावों में आंकड़ों की विसंगति की जांच के लिए पुख्ता प्रक्रिया तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। एडीआर ने अपने विशेषज्ञों की टीम के शोध आंकड़ों को हवाला देते हुए कहा है कि 2019 में संपन्न हुए चुनावों में विभिन्न सीटों पर मतदाताओं की संख्या और मत प्रतिशत और गिनती किए गए मतों की संख्या के बारे में आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में गंभीर विसंगतियां हैं।
याचिका में दावा किया गया है कि उनके शोध के दौरान अनेक विसंगतियों का पता चला। ये विसंगतियां 347 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में एक मत से लेकर 1,01,323 मतों की हैं जो कुल मतों का 10.49 प्रतिशत है। याचिका के अनुसार छह सीटों पर मतों की विसंगतियां चुनाव में जीत के अंतर से ज्यादा थीं।
याचिका में किसी भी चुनाव के नतीजों की घोषणा से पहले आंकड़ों का सही तरीके से मिलान करने और इस साल के लोकसभा चुनावों के फार्म 17सी, 20, 21सी, 21डी और 21ई की सूचना के साथ ही सारे भावी चुनावों की ऐसी जानकारी सार्वजनिक करने का निर्वाचन आयोग को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
याचिकाओं में कहा गया है कि चुनावों की पवित्रता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि चुनाव के नतीजे एकदम सही हों, क्योंकि संसदीय चुनावों में किसी प्रकार की विसंगतियों को संतोषजनक तरीके से सुलझाए बगैर दरकिनार नहीं किया जा सकता। याचिका में निर्वाचन आयोग को भविष्य के सभी चुनावों में आंकड़ों की विसंगति की जांच के लिए पुख्ता प्रक्रिया तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
जेपी सिंह -(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।) सौजन्य जनचौक