भगीरथ श्रीवास
हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) की रिपोर्ट “फोर्स इविक्शन इन इंडिया इन 2019 : एन अनरिलेटिंग नेशनल क्राइसिस” के अनुसार, देशभर में महामारी के दौरान जबरन बेदखली के कम से कम 45 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, मार्च से जुलाई के बीच देशभर में 20 हजार से अधिक लोग जबरन बेदखल किए गए ।
कोरोनाकाल की आपदा को अवसर मानते हुए राज्यों ने 20 हजार से अधिक लोगों को उनके घर से जबरन विस्थापित कर दिया। विस्थापित लोगों का यह आंकड़ा 16 मार्च से 31 जुलाई तक का है। हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) की रिपोर्ट “फोर्स इविक्शन इन इंडिया इन 2019 : एन अनरिलेटिंग नेशनल क्राइसिस” के अनुसार, देशभर में महामारी के दौरान जबरन बेदखली के कम से कम 45 मामले दर्ज किए गए।
रिपोर्ट के अनुसार संभवत: इनमें से अधिकांश बेदखली लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए की गई क्योंकि इस समय प्रभावित लोगों का आवाजाही पर रोक थी और कानूनी विकल्प तक प्रभावितों की पहुंच नहीं थी। उदाहरण के लिए तेलंगाना के सिद्धीपेट में अधिकारियों ने बिना नोटिस 30 दलित परिवारों का घर रातोंरात ढहा दिया। इस घटना के बाद किसानों ने कहा, “अधिकारियों ने मौके का फायदा उठाते हुए आधी रात को घर नष्ट कर दिए। अधिकारियों ने ऐसे समय में हमें बेघर कर दिया जब कोरोनावायरस का डर था।”
इसी तरह ओडिशा के कालाहांडी के सगाड़ा गांव में वन विभाग ने बिना पूर्व सूचना 32 कोंड आदिवासियों के घर नष्ट कर दिए। मणिपुर के माचेंग गांव में वन विभाग के अधिकारियों ने पुलिस की मदद से रॉन्गमे नागा जनजातियों घर सुबह-सुबह खाली करा दिए। उनकी दलील थी कि नागा जनजाति ने जंगल पर अतिक्रमण किया है। जिन लोगों ने वन विभाग की इस कार्रवाई का विरोध किया, उन्हें आंसू और रबर गैस के माध्यम से तितर-बितर कर दिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के रीवा में स्थानीय प्रशासन ने तालाब के सौंदर्यीकरण के नाम पर 20 घरों को उजाड़ दिया, जिससे दिहाड़ी मजदूर लॉकडाउन के दौरान बेघर हो गए। इसके अलावा जून और जुलाई के दौरान मध्य प्रदेश में दलितों और आदिवासी परिवारों को जबरन उजाड़ने की कई घटनाएं सामने आईं। उदाहरण के लिए जून में वन अधिकारियों ने सीवाल में एक आदिवासी परिवार के घर में आग लगा दी और अन्य घरों को भी नष्ट करने की धमकी दी। आरोप है कि गांववालों को खेती से रोकने के लिए ऐसा किया गया।
इसी तरह 12 जुलाई को वन विभाग ने रीवा जिले के हरदी गांव में 100 आदिवासी परिवारों का घर उजाड़ दिया। आरोप था कि इन लोगों ने वन भूमि पर अतिक्रमण किया है। उधर प्रभावित लोगों का दावा था कि वे इस क्षेत्र में पिछले 30 साल से रह रहे हैं और उन्हें वनाधिकार कानून के तहत भूमि अधिकार प्राप्त हैं।
रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सरकारी आवास में रह रहे 400 परिवारों से घर खाली कर लिया। कोरोनावायरस के डर के बीच इन परिवारों को बिना भोजन और पानी के सड़कों पर रहना पड़ा। दिल्ली के शकूरबस्ती में रेलवे के अधिकारियों ने 13 परिवारों को अपना घर ढहाने को मजबूर कर दिया। दिल्ली में ही नगर निगम और पीडब्ल्यूडी ने अतिक्रमण के खिलाफ चलाए गए अभियान के तहत पूर्वी लक्ष्मी नगर में 100 घरों को तोड़ दिया। इससे 150 परिवार उस वक्त बेरोजगार हो गए जब महामारी चरम पर थी।
रिपोर्ट बताती है कि निम्न आय वर्ग की आवासीय परिस्थितियां बेहतर नहीं होतीं। पोषण के निम्न स्तर, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच न होना, साफ पानी और स्वच्छता की कमी के कारण यह वर्ग वायरस के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। ऐसे लोगों के घर ढहाकर और महामारी के दौर में उन्हें बेदखल करके उनके स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा बढ़ जाता है। ऐसी अमानवीय कार्रवाई करके राज्य भारत के संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।
सौज- डाउनटुअर्थ