पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है और भयंकर संक्रमण की आशंकाओं से आक्रांत है । तमाम देसों की सरकारें और राष्ट्र प्रमुख वायरस के साथ साथ इससे आने वाली रोज़मर्रा की कठिनाइयों को लेकर चिंतित हैं । आज जब सामाजिक अलगाव ही बचाव का एकमात्र उपचार माना जा रहा है, तमाम देश निकट भविष्य में इससे छोटे , गरीब तबके को होने वाली आर्थिक दिक्कतों को लेकर चिंतित हैं ।
कई देशों में आम लोगों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है, हमारे देश में भी राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा राहत देने की घोषणा की है । केन्द्र सरकार ने 15 हजार करोड़ का प्रावधान किया है मगर वो मेडिकल सुविधाओं व प्रशिक्षण के लिए किया गया है उसमें आम आदमी को सीधे तौर पर कोई आर्थिक मदद नहीं मिलेगी । केन्द्र सरकार ने आम आदमी के लिए राज्य सरकारों को पहल करने का आव्हान किया है । मुश्किल ये है कि राज्य सरकारों के पास सीमित फंड होता है और लॉक डाउन जैसी स्थिति में जब व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित रहता है राज्य सरकारों के आय के स्त्रोत भी सीमित हो जाते हैं ।
आपात स्थिति में केन्द्र से ही राहत व मदद की उम्मीद की जाती है जिस पर केन्द्र सरकार खरी नहीं उतर सकी है । मध्य व उच्च वर्ग को आयकर, जीएसटी व उद्योग जगत को तमाम टैक्स रियायतों की घोषणा तो ठीक है मगर, मध्यम , छोटे, फुटपाथ पर व्यवसाय करने वाले लाखों लोगों के लिए कोई राहत पैकेज नहीं बताए गए हैं । अब तक न तो केन्द्र और न ही अधिकांश राज्य सरकार ने निराश्रितों, बेघरों और असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों के लिए कोई ठोस कदम उठाए हैं ।
लाखों की तादात में महानगरों से गांव कस्बों को वापस लौटते श्रमिक व कामगार भी आने वाले दिनो में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ सकते हैं । एक तो इनका मेडिकल चैकअप ही नहीं हुआ जिससे उनके गृह स्थानो पर संक्रमण की आशंका तो बढाता ही है साथ ही आर्थिक सूनामी के इस दौर में इन्हें वापस रोजगार हासिल करवा पाना भी एक गंभीर चुनौती होगी । हालांकि अब तक कुछ राज्य सरकारों ने आगामी 1-2 माह तक गरीबी रेखा के नीचे तबके के लिए मुफ्त राशन प्रदान करने की घोषणा की है मगर ये राहत केन्द्र सरकार की मदद के बिना लम्बे समय तक जारी रख पाना संभव नहीं लगता।
अब तक प्रधान मंत्री जी दो बार राष्ट्र को संबोधित कर कोरोना के खतरे व एहतियात बरतने के नाम पर ताली, थाली और घंटा बजाने से लेकर आध्यात्मिक उद्बबोधन ही किया है । यह बात गौरतलब है कि कोरे भाषणो के सिवाय जमीनी स्तर पर राज्य सरकारों एवं आम जनता के लिए कोई ठोस आर्थिक सहयोग की योजना अब तक नहीं बताई है जो आज सबसे ज़रूरी है । राज्य सरकारों की जिम्मेदारी तो अपनी जगह है जिसे ज्यादातर राज्यों में अपनी क्षमतानुसार निभा भी रहे हैं मगर संघीय संरचना में केन्द्र सरकार राज्यों को आर्थिक सहायता मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती । केरल जैसे छोटे राज्य ने 20000 करोड़ का प्रावधान किया है साथ ही तमाम बच्चों को मिड डे मील की आपूर्ति के साथ ही गरीब व मजदूर वर्ग को निःशुल्क राशन उपलब्ध कराने की घोषणा भी की है। केरल के अलावा छत्तीसगढ, दिल्ली . उत्तर प्रदेश सहित कुछ और राज्यों ने भी इस आपातकाल में जनता की मद केलिए अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा मदद करने का साहस दिखाया है । मगर ये समझना होगा कि राज्य सरकारों की अपनी सीमाएं हैं और संसाधन सीमित हैं । आर्थिक रूप से राज्य सरकारें बहुत मजबूत नहीं हैं । इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार को अपने खजाने जल्द से जल्द खोलने ही होंगे । संकट की इस घड़ी में पूर्वाग्रह व दुराग्रहों से ऊपर उठकर और तमाम मतभेदों को भुलाकर सभी को एक साथ एकजुट होकर मुसीबत का सामना करना होगा ।