दिल्ली कूच पर अपने-अपने घरों से निकले और दो दिन से गरमाये पंजाब-हरियाणा के किसानों ने आज दिल्ली पहुंचने के बाद अपनी रणनीति बदल दी। सरकार के दिए निरंकारी मैदान में बैठने से किसानों ने इनकार कर दिया है। अब वे दिल्ली को घेर कर बैठेंगे। सिंघु बॉर्डर पर करीब पांच लाख किसान इकट्ठा हैं। पीछे कोई 55 किलोमीटर लंबी ट्रालियों और ट्रैक्टरों की कतार लगी है।
शाम को पुलिस ने यहीं आंसू गैस के गोले दागे थे और झड़प भी हुई थी। उसके बाद योगेंद्र यादव और वीएम सिंह दिल्ली पुलिस की जिप्सी में बैठकर सिंघू बॉर्डर किसानों को समझाने पहुंचे थे। पंजाब के किसान नेता उन्हें पुलिस की गाड़ी में बैठ आता देख भड़क गये। किसानों को निरंकारी मैदान जाने के लिए समझाइश देने आये स्वराज पार्टी के नेता योगेंद्र यादव और किसान नेता वीएम सिंह को काफी विरोध झेलना पड़ा और वे उलटे पांव वापस लौट गये।
दरअसल, दिल्ली पुलिस ने पहले दिल्ली की सरकार से नौ स्टेडियम अस्थायी जेलों में बदलने के लिए मांगे थे। सरकार के इनकार करने और किसानों का समर्थन करने के बाद आखिरकार बुराड़ी के निरंकारी मैदान में किसानों को जगह देने का पुलिस का फैसला आया। इसे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में जीत बताया।
सिंघू बॉर्डर पर यही बात किसानों को समझाने योंगेंद्र यादव और वीएम सिंह आये थे ताकि किसान निरंकारी मैदान में जमा हो जाएं। किसानों ने उनकी नहीं सुनी। किसान नेताओं ने साफ़ कहा कि अपने फैसले लेने के लिए वे खुद सक्षम हैं और उन्हें किसी ऐसे नेता की ज़रूरत नहीं जिसके साथ चार किसान भी न हों।
इसके बाद ही अपनी बैठक में किसान संगठनों ने ये फैसला किया कि दिल्ली पुलिस से घिरकर दिल्ली के भीतर बैठने के बजाय बेहतर है कि दिल्ली को बाहर से घेर कर बैठा जाय। खबर है कि टीकरी बॉर्डर पर भी जुटे किसानों ने निरंकारी मैदान जाने के बजाय बाहर ही बैठने का तय किया है।
एआइकेएससीसी किसान संगठनों का एक व्यापक मंच है। माना जा रहा था कि इस आंदोलन को वही नेतृत्व दे रहा है लेकिन आज शाम इस समिति के दो बड़े नेताओं को किसानों द्वारा लौटा दिया जाना एक ऐसा घटनाक्रम है जिससे किसान आंदोलन की दिशा बदल सकती है।
आज सुबह ही जब एआइकेएससीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा और दिल्ली के रामलीला मैदान में जगह देने की अपील की, तो उसके हस्ताक्षरकर्ताओं में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी का नाम देखकर कुछ संदेह पैदा हुए थे।
अब, जबकि ज्यादातर किसानों ने मोर्चे के नेतृत्व की नाफ़रमानी कर दी है, तो किसान आंदोलन की आगे की दिशा के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। फिलहाल किसानों ने सिंघू बॉर्डर पर ही डेरा डाल दिया है, चूल्हे जला लिए हैं और रात के खाने की तैयारी में लग गए हैं।
एजेंसियां