जियो के टावर्स की बिजली सप्लाई काट रहे किसानः आज संयुक्त मोर्चा की अहम बैठक

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसानों के आंदोलन की सबसे ज़्यादा मार रिलायंस पर पड़ रही है। किसानों ने रिलायंस के सारे प्रोडक्ट्स के बहिष्कार का एलान किया हुआ है। जिसमें जियो के नंबर को दूसरे सर्विस प्रोवाइडर मेंपोर्ट कराया जा रहा है। पंजाब में तो रिलायंस के पेट्रोल पंप और रिटेल आउटलेट्स के बाहर लंबे वक्त से धरना दिया जा रहा है। अब जो नया काम है, वो ये कि किसान जियो के टावर्स की बिजली काट रहे हैं। इससे कंपनी को ख़ासा नुक़सान हो रहा है। 

बीते कुछ दिनों में किसानों ने नवांशहर, फ़िरोज़पुर, मानसा, बरनाला, फ़ाज़िल्का, पटियाला और मोगा जिलों में लगे जियो के टावर्स को होने वाली बिजली की सप्लाई काट दी है। बरनाला और बठिंडा के गांवों में लगे जियो के टावर्स को मिल रही बिजली की सप्लाई काटने के बाद किसानों ने इनके गेट भी बंद कर दिए। 

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसान अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। इनकी एक ही मांग है कि मोदी सरकार अपने कृषि क़ानूनों को वापस ले ले। किसान नेताओं का कहना है कि आंदोलन शुरू होने के बाद से अभी तक 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से अधिकतर की मौत का कारण ठंड है। आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संयुक्त मोर्चा के नेता आज फिर बैठेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे। 

टिकरी-सिंघु से लेकर ग़ाजीपुर बॉर्डर तक बड़ी संख्या में इकट्ठा हो चुके किसानों का आंदोलन बढ़ता जा रहा है। इन जगहों पर चल रहे धरनों में पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से आने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश से भी बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली कूच किया है। रेवाड़ी बॉर्डर पर भी किसानों का धरना जारी है। किसानों ने कहा है कि 27 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात करेंगे, वे उस दिन उसी वक़्त देश भर के लोगों से थालियां बजाने की अपील करते हैं।

किसानों को मनाने की सारी कोशिशें कर थक-हार चुकी केंद्र सरकार ने एक बार फिर हिम्मत बांधी है और किसानों को बातचीत के लिए बुलाया है। मोदी सरकार की ओर से गुरूवार को किसान संगठनों को पत्र भेजा गया है। पत्र में कहा गया है कि वे कृषि क़ानूनों को लेकर अगले दौर की बातचीत के लिए तारीख़ और वक़्त तय करें। इससे पहले कई दौर की बातचीत बेनतीजा हो चुकी है।

मोदी सरकार के आला मंत्रियों और बीजेपी के रणनीतिकारों की चिंता यह भी है कि अगर किसान आंदोलन इसी तरह चलता रहा तो आने वाले कुछ महीनों में कई राज्यों में होने जा रहे चुनावों में पार्टी को ख़ासा नुक़सान हो सकता है। ऐसे में सरकार के सामने इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है कि वह कृषि क़ानूनों को वापस ले ले।

किसान को डर है कि नए कृषि क़ानूनों के जरिये उसकी ज़मीन पर कॉरपोरेट्स का कब्जा हो जाएगा, इसलिए वह दिन-रात ठंड में धरने पर बैठा है। और बार-बार कह रहा है कि चाहे जान चली जाए इन क़ानूनों को हटाए बिना वह यहां से नहीं जाएगा। बारी अब सरकार की है कि वह इस बात को समझे बजाए इसके कि किसानों को यह बताया जाए कि ये कृषि क़ानून उसके फ़ायदे में हैं और वह बिचौलियों से आज़ाद हो जाएगा। किसान की आशंका, किसान का डर अपनी जगह वाजिब है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसकी ज़मीन पर कोई पांव भी रखे। 

एजेंसियां

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