किसान आंदोलन हकीकत में आर्थिक मुद्दे पर आधारित है। किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है। यह राम मंदिर बनाने जैसे भावनात्मक और भावुक मुद्दे जैसा नहीं है। इसे भारत के लगभग 75 करोड़ किसानों का समर्थन प्राप्त है, हालांकि ज़ाहिर है कि ये सभी दिल्ली के पास इकट्ठा नहीं हो सकते हैं।
भारतीय लोगों का राष्ट्रीय उद्देश्य एक अविकसित देश से पूर्णतः विकसित, अत्यधिक औद्योगीकृत देश में बदलना होना चाहिए, तभी हम अपनी ग़रीबी, पिछड़ेपन, बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, बाल कुपोषण के भयावह स्तर, उचित स्वास्थ्य सेवा की लगभग पूरी कमी, जनता के लिए अच्छी शिक्षा का अभाव और अन्य कई सामाजिक बुराइयों से छुटकारा पा सकते हैं।
इस तरह का परिवर्तन केवल एक ऐतिहासिक शक्तिशाली एकजुट लोगों के जनसंघर्ष के माध्यम से ही संभव है, जो सामंती सोच और प्रथाओं (जैसे- जातिवाद, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास आदि) की सारी गंदगी को मिटा देगा, जो भारत में सदियों से एकत्र हुए हैं और फिर एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेगा जिसके तहत भारत तेज़ी से औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ेगा और लोगों को उच्च जीवन स्तर के साथ सभ्य और समृद्ध जीवन मिलेगा।
जाति-धर्म का झगड़ा
लेकिन इस तरह के एकजुट लोगों का जनसंघर्ष कैसे हो सकता है और इसका आरम्भ कैसे किया जा सकता है? हमारे लोग जाति और धर्म के आधार पर इतने विभाजित और ध्रुवीकृत हैं कि एकता, जो इस संघर्ष के लिए नितांत आवश्यक है, अब तक गायब थी और हम अक्सर जाति और धर्म के आधार पर एक-दूसरे से लड़ रहे थे।
काफी समय तक भारत में अधिकांश आंदोलन या तो धर्म आधारित थे जैसे- राम मंदिर आंदोलन या जाति आधारित जैसे – गुर्जर, जाट या दलित आंदोलन। सीएए विरोधी आंदोलन को मुख्य रूप से मुसलिम आंदोलन माना जाता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हज़ारे का आंदोलन जल्द ही ठंडा पड़ गया I
यही वह समस्या थी जिसके बारे में भारतीय विचारकों को दशकों तक कोई हल नहीं मिला और यह देश के लिए एक दुविधा बन गयी।
अचानक, आकाश से बिजली की तरह, भारत के किसानों ने, जो हमारे समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों में से एक हैं, उस समस्या को हल किया है जिसने लंबे समय से देश को दुविधा में डाल रखा था। अपनी रचनात्मकता का उपयोग करके उन्होंने हमारे लोगों के बीच एकता कायम की है जो दशकों से गायब थी। उनके आंदोलन ने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ दिया है, और वे इन सब चीज़ों से ऊपर उठ गए हैं। इसके अलावा इन लोगों ने हमारे राजनेताओं से दूरी बना रखी है।
ये वो वर्ग है जो देश से सच्चा प्रेम नहीं करता। ये वर्ग केवल सत्ता और धन उपार्जन में रुचि रखता है और जो केवल केवल वोट बैंक बनाने के लिए जाति और सांप्रदायिक घृणा फैलाकर भारतीय समाज का ध्रुवीकरण करता आया है।
किसान आंदोलन हकीकत में आर्थिक मुद्दे पर आधारित है। किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है। यह राम मंदिर बनाने जैसे भावनात्मक और भावुक मुद्दे जैसा नहीं है। इसे भारत के लगभग 75 करोड़ किसानों का समर्थन प्राप्त है, हालांकि ज़ाहिर है कि ये सभी दिल्ली के पास इकट्ठा नहीं हो सकते हैं।
इसके अलावा, इन्हें भारतीय सेना, अर्ध सैनिक बलों, और पुलिसकर्मियों का भी मौन समर्थन प्राप्त है, क्योंकि इनमें से अधिकांश वर्दीधारी किसान हैं, या किसानों के बेटे हैं।
यह एक चिंगारी है, जो जल्द ही पूरे देश में आग लगा सकती है जैसा कि चीनी क्रांति में हुआ और उस पराक्रमी ऐतिहासिक परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू कर सकती है जिसकी आज भारत को एक अविकसित से अति विकसित देश में परिवर्तित होने के लिए ज़रूरत है।
जैसा कि एक महान एशियाई नेता ने कहा, “जब करोड़ों किसान आंधी या तूफ़ान की तरह उठेंगे तो यह एक ऐसी ताकत होगी जो इतनी शक्तिशाली और इतनी तेज़ होगी कि पृथ्वी पर कोई भी शक्ति इसका सामना नहीं कर सकेगी।”
भारतीय किसान इतिहास रच रहे हैं, ये नेताओं को समझना होगा।
सौज- सत्यहिन्दी
सार्थक विचार है ।