बंगाल चुनाव : दशक बाद नंदीग्राम में लहराए लाल झंडे, वाम के ‘युवा तुर्क’ ने दिग्गजों को ललकारा

संदीप चक्रवर्ती

तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की हिंसा बदस्तूर है, उधर एक प्रखर वक्ता मीनाक्षी मुखर्जी क्षेत्र में शांति लौटाने के लिए लगातार मुहिम चला रही हैं।

नंदीग्राम: पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम विधानसभा सीट चुनावी लड़ाई का केंद्र बन गई है, जहां तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब दुश्मन बन चुके और भाजपा में शामिल हो चुके अपने पुराने सहयोगी सुवेन्दु अधिकारी का सामना कर रही हैं। उधर, वाम मोर्चे की प्रखर युवा नेता मीनाक्षी मुखर्जी भी इस चुनावी मैदान में पूरी तरह डटी हुई हैं।

भले ही मीडिया इसे टीएमसी और भाजपा की आमने सामने की लड़ाई बताने पर तुली है, लेकिन 1984 में पैदा हुई ‘युवा तुर्क‘ मुखर्जी ने जमीन पर अपने अनथक चुनाव प्रचारों से ममता बनर्जी और सुवेन्दु अधिकारी दोनों की नींदें खराब कर रखी हैं। गौरतलब है कि 2011 तक नंदीग्राम वामपंथी नेता को ही विधानसभा में अपना प्रतिनिधि भेजता रहा है।

आसपास नजर दौड़ाने पर एक बार फिर से लाल झंडा क्षेत्र में लहराता दिखाई दे रहा है जिससे टीएमसी नेता के रूप में अधिकारी के उस दावे की कलई खुल रही है कि ‘नंदीग्राम में कोई लाल झंडा नहीं बचा रहेगा।‘

गुरुवार को, इस संवाददाता ने 10 वर्षों के बाद सोनाचुरा बाजार, तेखाली, गरचक्रबेरिया, साउथखली तथा कालीचरणपुर जैसे दुर्गम इलाकों का दौरा किया था। इस दौरान अनेक लोगों से बातें हुईं, उन्होंने बताया कि भूमि उछेद प्रोतिरोध कमिटी (जिसने जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर 2011 में नंदीग्राम में वाम मोर्चे के खिलाफ अभियान का नेतृत्व किया था) के कई पूर्व दिग्गजों ने अब मुखर्जी को सपोर्ट करने का संकल्प लिया है। इन लोगों ने सुवेन्दु अधिकारी पर सोनाचुरा बाजार क्षेत्र में लगभग पांच करोड़ रुपये की जमीन कौड़ियों के मोल खरीदने का आरोप लगाया है।

स्थानीय निवासियों ने यह भी आरोप लगाया कि ये सभी जमीन नंदीग्राम के ‘शहीदों‘ के नाम खरीदी गई थी लेकिन अब यह प्रभावशाली अधिकारी परिवार के व्यवसायों के लिए इस्तेमाल में लाया जा रही है। 

कमजोर दिख रहीं एक 20 वर्षीया लड़की सुनीता दास जो मुखर्जी के लिए चुनाव प्रचार कर रही हैं, उन्होनें कहा, “लाल झंडा थामे रखने के लिए संकल्प की जरूरत होती है।” 30 वर्षीय महादेब भुनिया जो वामपंथी उम्मीदवार के प्रमुख चुनाव प्रचारकों में से एक हैं, वे कहते हैं कि वे कई दिनों से अपने घर नहीं गए हैं क्योंकि वहां अभी भी ‘आतंक का साया (2011 में टीएमसी के सत्ता में आने के बाद हिंसा के डर से वामपंथ समर्थकों ने अपने इलाके खाली कर दिए थे) बना हुआ है। 

क्षेत्र में डेमोक्रेटिक यूथ फेडेरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) का एक लोकप्रिय चेहरा बन चुकीं सुश्री मुखर्जी ने न्यूजक्लिक को बताया: “मैं जहां भी जा रही हूं,  मुझे लोगों का अपार समर्थन मिल रहा है।” उनके कुछ समर्थकों ने यह भी कहा कि बड़े नामों के बीच वह ‘सबसे उपयुक्त उम्मीदवार‘ हैं और ‘हवा के एक ताजा झोंके‘ की तरह हैं। 

फातिमा बीबी ने मीनाक्षी मुखर्जी को गले लगाया और उनकी कामयाबी की दुआएं मांगीं। कुछ स्थानीय निवासियों का कहना है कि मुखर्जी को अल्पसंख्यक समुदाय का पुरजोर समर्थन मिल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम अल्पसंख्यक अब महसूस कर रहे हैं कि टीएमसी ने उन्हें ‘धोखा‘ दिया है और भाजपा सांप्रदायिक है, यही कारण है कि वे ‘लाल झंडा उठाने वालों‘ की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं, जो उनके हक की रक्षा करने के लिए लड़ सकते हैं। 

तेज विभाजन

सब जानते हैं कि 2011 में वाम मोर्चे के चुनाव हारने की प्रमुख वजहों में एक नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण मुद्दे से निपटने में उसकी विफलता रही थी। भूमि उछेद प्रतिरोध कमिटी के नेताओं में से एक देबाशीष मंडल, जो व्यवसाय से एक हार्डवेयर व्यापारी हैं, ने कहा कि फिर भी, जहां कहीं निष्पक्ष और सही तरीके से चुनाव हुआ, वाम मोर्चे ने 26 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए।

मंडल कहते हैं कि ‘कुछ वर्ष पहले तक भी, हमारा मुख्य व्यवसाय खेती था। उन्होंने बताया कि उनके भाई भूमि आंदोलन के पहले कुछ शहीदों में से एक थे। बहरहाल, मंडल ने कहा कि वे चाहते हैं कि नंदीग्राम ‘स्वतंत्र और शांतिपूर्ण रहे‘ जिसका यहां के लोग पिछले 10 साल से इंतजार कर रहे हैं। 

भाजपा के एक झंडे, जिस पर सुवेंदु अधिकारी का चेहरा छपा हुआ है, पर शंकालु नजर से देखते हुए मंडल कहते हैं: “2011 के बाद नंदीग्राम में जो कुछ हुआ है, उसकी तुलना नहीं की जा सकती। सारा कुछ मुख्यमंत्री के टीएमसी के सिपहसालार रहे सुवेंदु अधिकारी के आदेश पर हुआ। अब वे एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। इससे एकमात्र सकारात्मक बात यह हुई है कि इस क्षेत्र पर उनकी आतंकी पकड़ अब थोड़ी ढीली हो गई है।”

हिंसा बदस्तूर

18 मार्च को, जब सोनाचुरा तथा गरचक्रबेरिया में वाममोर्चे का चुनाव प्रचार चल रहा था, भाजपा और टीएमसी समर्थकों के बीच हिंसा भड़क उठी जिससे दोनों तरफ के कई लोग घायल हो गए और कुछ तो बुरी तरह घायल हो गए। बहरहाल, अडिग मुखर्जी और उनकी टीम गांवों के भीतर घर-घर जा कर गांववालों से मिलीं और उनसे बातें कीं। 

उन्होंने कहा, “हम उनको बता रहे हैं कि अगर आप भाजपा या टीएमसी को सत्ता में लाते हैं तो नंदीग्राम में मुख्य सहारा फिर से हिंसा का ही रह जाएगा।”

रिपोर्टों के अनुसार, टीएमसी-भाजपा संघर्ष ने सांप्रदायिक रूप ले लिया है जैसा कि पश्चिम बंगाल में कई स्थानों पर हो चुका है। 

चक कालीचरणपुर में अपने भतीजों के साथ बैठे 70 वर्षीय अमलेन्दु दास ने न्यूजक्लिक को बताया कि पिछले 10 वर्षों से नंदीग्राम में कानून व्यवस्था ‘विकट‘ रही है। उन्होंने कहा कि उनके कुछ भतीजे भाजपा के पक्ष में चले गए थे क्योंकि टीएमसी ने ‘उस इलाके के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का इस्तेमाल गुर्गों के रूप में किया। उन्होंने कहा कि बहरहाल, इस बार एससी/एसटी बूथ ‘लेफ्ट’ को वोट देगा।

कालीचरणपुर के समसाबाद में सड़कों की स्थिति दयनीय थी क्योंकि उन पर किसी कंक्रीट  या ईंट की सतहों का कोई नामोनिशान नहीं था। जब इस संवाददाता ने स्थानीय लोगों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा पिछली बार यह सड़क तब बिछाई गई थी, जब वामपंथी शासन के दौरान समुचित रूप से एक पंचायत चुनाव हुआ था। उन्होंने कहा कि “2011 के बाद, यहां कोई इलेक्शन नहीं हुआ है बल्कि सेलेक्शन हुआ है।”

लंबे समय के बाद, इस क्षेत्र में शाम में तेखाली बाजार में एक नुक्कड़ बैठक हुई है जिसका आयोजन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने किया। इसे सीपीआई (एम) सेंट्रल कमिटी के मेंबर राबिन देब तथा मीनाक्षी मुखर्जी ने संबोधित किया। बैठक में बड़ी संख्या में युवाओं की मौजूदगी इस बेहद महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र में वामपंथ के उभार तथा युवाओं के बीच मुखर्जी के बढ़ते समर्थन आधार का संकेत थी जो उनके चुनाव प्रचार में भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।  

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