किताबख़ानाः वन अरेंज्ड मर्डर- ‘जब प्यार में आप किसी को गुझिया बुलाने लगें तो ज़रा रुककर सोचना चाहिए’

वेस्टलैंड पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित, चेतन भगत की किताब ‘वन अरेंज्ड मर्डर’ का अंश

हाय, मेरा नाम केशव राजपुरोहित है और मैं बहुत अच्छा इंसान नहीं हूं. मैं इमोशनल भी नहीं हूं. प्यार-व्यार में मुझको भरोसा नहीं. मैं टिंडर का इस्तेमाल करके लड़कियों से मिलता तो हूं, लेकिन केवल उनके साथ सेक्स करने के मक़सद से. और हां, इस मामले में मेरा जवाब नहीं. गए साल ही मैं दस लड़कियों के साथ सोया था.

जैसा कि आपने अभी देखा, मेरा फ़्लैटमेट भी मुझसे बात नहीं करना चाहता. सौरभ और मैं बेस्ट फ्रेंड्स हुआ करते थे. लेकिन अब वो मुझसे नफ़रत करता है और हमारे फ़्लैट की लीज़ के ख़त्म होने का इंतज़ार कर रहा है. लेकिन अपने बेस्ट फ्रेंड से ब्रेकअप करना गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप करने से भी ज़्यादा मुश्किल होता है.

ऐसा क्यों था? वेल, मैं नालायक़ तो हूं ही. अगर वो मुझसे दूर होना चाहता था तो मैं इसके लिए उसको दोष नहीं दूंगा.

सौरभ और मैं साइबरसेफ़ नाम की एक साइबर सिक्योरिटी कम्पनी में काम करते हैं. अगर आपकी आपस में लड़ाई हो जाए तो साथ काम करना और मुश्किल हो जाता है. वैसे भी, हर कॉर्पोरेट जॉब की तरह साइबरसेफ़ में काम करना भी कोई बहुत ख़ुशगवार अहसास नहीं है. मेरी ज़्यादा दिलचस्पी तो ज़ेड डिटेक्टिव्ज़ नाम की उस छोटी-सी जासूसी एजेंसी में है, जिसे मैं और सौरभ मिलकर चलाते हैं. यह एजेंसी हमने पिछले साल एक मर्डर केस को सॉल्व करने के बाद खोली थी.

ज़ेड डिटेक्टिव्ज़ मालवीय नगर मार्केट में है, किराना दुकानों के पास में. हमें कोई बहुत सनसनीख़ेज़ मामले तो नहीं मिलते हैं. वैसे भी हम कहां के जेम्स बॉन्ड हैं. अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों से जुड़े मामलों में मदद करने के लिए रॉ और आईबी भी हमसे सम्पर्क नहीं करतीं. हमें तो कोई हार्डकोर क्रिमिनल केस भी नहीं मिलते. हमसे की जाने वाली अधिकतर इनक्वायरीज़ तो हमारे मोहल्ले की उन आंटीज़ की होती हैं, जिन्हें अपनी नौकरानी पर शक़ होता है कि कहीं उसने तो उनका सोने का हार नहीं चुरा लिया, या उनके पतियों का कहीं चक्कर तो नहीं चल रहा. कभी-कभार होने वाली कोई लूटपाट, जिसमें किसी का लैपटॉप या फ़ोन चोरी हो जाता है, को छोड़ दें तो ज़ेड डिटेक्टिव्ज़ के पास करने को कुछ दिलचस्प नहीं होता. जबकि मेरी कितनी तमन्ना है कि हमें कोई शानदार मर्डर केस मिले. लोग कहते हैं कि दिल्ली क्राइम-कैपिटल है, पर ऐसा लगता तो नहीं.

मेरा फ़ोन बजता है. किसी अननोन नंबर से एक मैसेज आया है.

‘एक केस के लिए अर्जेंट मदद चाहिए.’

‘आप कौन हैं और क्या चाहते हैं?’ मैंने रिप्लाई किया.

‘माय सेल्फ़ प्रमोद गुप्ता. मुझे शक़ है कि मेरा ड्राइवर मुझसे जितने पैसे ले जाता है, उतने का पेट्रोल मेरी गाड़ी में नहीं भरवाता.’

मैंने हिक़ारत से फ़ोन पटक दिया. मैं इस बक़वास पर बाद में भी ध्यान दे सकता था. अभी तो मैं सौरभ के बारे में सोच रहा था. ये मोटू इतना ओवर-सेंसिटिव क्यों था? प्रेरणा ने उसे ऐसा बना दिया था. लेकिन नहीं, कोई भी उसकी मुटल्ली मंगेतर के बारे में एक शब्द तो बोलकर बतलाए. हां, मैंने उसको मुटल्ली कहा. जैसा सौरभ मोटू, वैसी वो मुटल्ली. क्या मैं किसी के शरीर का मज़ाक़ उड़ा रहा हूं? मैंने आपको पहले ही बता दिया मैं बहुत हरदिलअज़ीज़ आदमी नहीं हूं. वैसे भी मोटे को मोटा बोलने में क्या हर्ज है? मैं इस बारे में इतना सोचूं ही क्यों? इसके बजाय मैं अपने लिए एक प्याला चाय ना बना लूं? और क्या प्लीज़ कोई मेरे शहर में एकाध मर्डर वग़ैरा कर सकता है? मुझे एक अच्छे केस की सख़्त दरक़ार है.

ओके, मैं आपको बतलाता हूं कि हम दोनों के बीच क्या हुआ था. ज़ाहिर है, मैं आपको अपने एंगल से यह सब बताऊंगा.

छह महीने पहले, सौरभ के सिर पर शादी करने की धुन सवार हो गई थी. वैसे तो मुझे अरेंज्ड मैरिज से कोई प्रॉब्लम नहीं है. वैसे भी मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स के लिए एक ऐसे एंगल से सौरभ की प्रोफ़ाइल पिक्चर तो मैंने ही ली थी, जिसमें वह कम से कम मोटा दिखाई दे रहा था. उसका बायो तक मैंने ही लिखा था—

‘आई एम सौरभ. मैं एक वेल-प्लेस्ड आईआईटीयन हूं और मेरी पर्सनैलिटी ईज़ी-गोइंग और फ़न-लविंग है. मैं एक मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूं और साउथ दिल्ली में रहता हूं. मुझे फ़ूडपसंद है, वास्तव में बहुत सारा फ़ूड और फिर थोड़ा और फ़ूड. मुझे अल्कोहल से भी ऐतराज़ नहीं और मेरे लिए एक अच्छे वीकेंड का मतलब है दो दिन तक लम्बी तानकर सोना.’

ज़ाहिर है, सौरभ ने इसके लिए मुझे एक लात जमाई थी और आख़िरी की दो लाइनें हटा दी थीं. इसके बजाय उसने लिखा था—‘नागपुर की एक डिसेंट फ़ैमिली से, दहेज़ नहीं चाहिए, एक वेल-एजुकेटेड और एम्बीशियस कॅरियर वुमन को प्राथमिकता.’

मैंने डाइनिंग टेबल पर हाथ दौड़ाया. यहीं से तो सौरभ ने प्रेरणा को सबसे पहले वीडियो कॉल किया था. बहुत सारी नाकाम कोशिशों के बाद आख़िरकार सौरभ किसी ऐसी लड़की से मिला था, जिसको लेकर वह एक्साइटेड था. उसका प्लान तो यह था कि वह उसे केवल दो मिनट के लिए कॉल करेगा, लेकिन वो दो घंटे तक बातें करते रहे थे.

‘सॉरी, लंच के लिए देर हो गई. लेकिन उम्मीद से ज़्यादा देर तक बातें हुईं,’ कॉल ख़त्म होने पर सौरभ ने कहा.

‘यही लड़की तुम्हारे लिए है,’ मैंने कहा.

‘रियली? तुम्हें कैसे मालूम?’

‘जिसके लिए तुम खाना भूल जाओ, और वो भी दो घंटे के लिए? अगर यह सच्चा प्यार नहीं है तो और क्या होगा?’

मेरी बात सही निकली. सौरभ प्रेरणा मल्होत्रा पर मर मिटा. वह रमेश और नीलम मल्होत्रा की इकलौती बेटी थी और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में एक पंजाबी जॉइंट फ़ैमिली में रहती थी. वह ठीक वैसी लड़की थी, जैसी सौरभ को चाहिए थी—एम्बीशियस और कॅरियर-माइंडेड. उसका अपना एक इंटरनेट स्टार्टअप था और वह बहुत अच्छा चल रहा था.

‘उसके स्टार्टअप का नाम है—ईटो. क्यूरेटेड फ़ूड डिलीवरी,’ सौरभ ने मुझसे कहा. ‘ज़मैटो की तरह. वो लोग डिशेस को टेस्ट करते हैं और फिर आपको बताते हैं कि सबसे टेस्टी क्या है, जिसे ऑर्डर किया जाना चाहिए.’

‘मैं देख सकता हूं कि तुम्हें वह क्यों अच्छी लगी,’ मैंने कहा. उसकी प्रेम-कहानी में कहीं ना कहीं फ़ूड वाला एंगल तो होना ही था.

‘मैंने तो तुमको पहले ही बता दिया था, मुझे कॅरियर वुमन पसंद हैं,’ सौरभ ने कहा.

‘ये तो सच है,’ मैंने कहा.

अगले कुछ महीनों तक सौरभ और प्रेरणा एक-दूसरे को डेट करते रहे, बशर्ते अरेंज्ड मैरिज की सिचुएशन में इस तरह से मिलने को डेट कहा जा सकता हो. या शायद इसे अरेंज्ड डेटिंग कहा जाना चाहिए. जल्द ही उन दोनों में इतना प्यार हो गया, जितना कि किसी लव-मैरिज कपल में भी नहीं होता होगा.

कुछ ऐसा था कि जैसे प्रेरणा से मिलने के बाद सौरभ के पूरे डीएनए की रीवायरिंग हो गई हो. एक दिन मैंने उसे कुछ ऐसी आवाज़ में बातें करते सुना, जैसी आवाज़ मांएं अपने छह महीने के बच्चों को सुलाते समय निकालती हैं—

‘ओले, माय प्रेरणा बेबू. तुम तो टायल्ड हो गई. तुम इतना वल्क क्यों कलती हो, माय सोना बेबू.’

ये सब सुनकर मुझ पर क्या बीती, मैं ही जानता हूं.

सौरभ के कपड़े पहनने के तरीक़े में भी बदलाव आया. टी-शर्ट और पजामे के दिन लद गए, जो कि सौरभ की ऑफ़िशियल कॉस्ट्यूम हुआ करते थे. अब वो पूरी आस्तीन की कॉलर वाली कमीज़ें पहनने लगा. रात को सोते समय भी अब वह कैल्विन क्लीन के नाइटसूट ही पहनता था.

एक रात जब हम डिनर करने बैठे तो पूरे कमरे में आफ़्टरशेव की गंध भरी हुई थी.

‘क्या यह कोलोन है?’ मैंने कहा.

‘हां,’ सौरभ ने कहा.

‘क्या ये मुफ़्त में बंट रहा था?’

‘महकने में कोई बुराई तो नहीं है.’

‘है तो नहीं, पर तुमको ये बात अपनी उम्र के अट्ठाइस साल बिता देने के बाद पता चली?’

‘प्रेरणा ने ऐसा करने को कहा था,’ सौरभ ने बड़ी कोमल आवाज़ में कहा.

लेकिन मुझे इस सबसे कोई दिक़्क़त नहीं थी. मैं अपने दोस्त के लिए ख़ुश था. प्रेरणा उसकी होने वाली पत्नी थी. वो उसका क्रश, प्यार, गर्लफ्रेंड सबकुछ थी. वास्तव में वो उसकी ज़िंदगी में आने वाली इकलौती लड़की थी.

लेकिन मैं सीधे पॉइंट पर आता हूं, भले ही वह सब सुनने में चाहे जितना बुरा लगे. प्रेरणा यूं तो अच्छी लड़की है—स्मार्ट, प्यार करने वाली, केयर करने वाली—लेकिन वो—मैं इसे किन शब्दों में कहूं?—थोड़ी ओवरवेट है. मैंने तो आपको पहले ही बता दिया था कि मैं घुमा-फिराकर बात नहीं करता. वो मोटी थी. हां, मैंने अपने बेस्ट फ्रेंड की परफ़ेक्ट रिलेशनशिप वाली परफ़ेक्ट गर्ल को मोटी कहकर पुकारा था. अब आप ख़ुद ही मुझे जज कीजिए. लेकिन जब आप मुझे जज करेंगे, तो मैं भी लोगों के वज़न को जज करता रहूंगा.

फिर उन दोनों को आपस में जोड़ने वाली चीज़ थी—फ़ूड. उनकी लगभग सभी डेट्स किसी पॉपुलर रेस्तरां में होती थी. यहां तक कि वो एक-दूसरे को प्यार से बुलाते भी थे तो खाने-पीने की चीज़ों का नाम लेकर.

‘तुम तो मेरे लड्डू हो,’ वह उसे मैसेज करती.

‘और तुम मेरी जलेबी,’ सौरभ जवाब देता.

‘तुम तो रसगुल्ले की चाशनी जैसे मीठे हो.’

‘आई लव यू, माय लिटिल गुझिया.’

सीरियसली, वो दोनों एक-दूसरे से इतना प्यार करने लगे थे, जितना वे अपने खाने को प्यार करते थे. जल्द ही उनकी मिठाइयों की फ़ेहरिस्त ख़त्म हो गई. वैसे भी जब आप गुझिया पर पहुंच जाएं तो आपको ख़ुद ही सोच लेना चाहिए कि आप कितना नीचे चले गए हैं. मैं यह सोचकर ही कांप गया कि उनका भविष्य का किचन कैसा होगा. वह किचन नहीं मिठाइयों का बंकर होगा, जहां किसी न्यूक्लियर होलोकॉस्ट से बचने के लिए मनुष्य छिप सकते होंगे.

लेकिन ज़ाहिर है, कभी-कभी उनमें से कोई एक इंस्टाग्राम पर फ़िटनेस संबंधी कोई पोस्ट देखता तो एक्सरसाइज़ करने की प्लानिंग करने लगता.

‘माय लिटिल बूंदी, हम एक साथ फ़िट होंगे, है ना?’ सौरभ ने उसे एक बार फ़ोन पर कहा. अव्वल तो अगर आप किसी फ़िटनेस रूटीन की प्लानिंग कर रहे हों तो एक-दूसरे को खाने-पीने की चीज़ों के नाम से पुकारना बंद कर देना चाहिए. पर उन्होंने शादी के बाद फ़िट होने के प्लान बनाए. लेकिन अभी के लिए उन्होंने तय किया कि वे ख़ूब मौज-मस्ती करेंगे, क्योंकि ‘ये समय ज़िंदगी में बार-बार तो आता नहीं.’ वेल, ये समय ज़िंदगी में फिर नहीं आए, हार्टअटैक तो कभी भी आ सकताहै.

वैसे मुझे यहां यह जोड़ना चाहिए कि मैं भले ही प्रेरणा से ज़्यादा फ़िट था, लेकिन उसका कॅरियर मुझसे बेहतर शेप में था. उसने अपने बिज़नेस पार्टनर के साथ मिलकर ईटो के लिए तीन राउंड की फ़ंडिंग पूरी कर ली थी. एक प्राइवेट इक्विटी फ़र्म ने हाल ही में उसकी कम्पनी में 35 प्रतिशत स्टेक के साथ 13 मिलियन डॉलर्स का इनवेस्ट किया था.

‘तुम मेरे लिए बहुत लकी हो, मेरे काजू कतली,’ फ़ंडिंग राउंड पूरा होने के बाद प्रेरणा ने सौरभ से कहा. ‘ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.’

सच कहूं तो मुझे इससे भी कोई समस्या नहीं थी. मैं तो सौरभ के लिए ख़ुश ही था. अगर कोई मोटा है और उसके पास पैसे हैं तो मुझे इससे क्या? जब तक कि मेरा बेस्ट फ्रेंड ख़ुश है, तब तक मैं भी ख़ुश.

और सौरभ तो मारे ख़ुशी के पागल हो चुका था. लेकिन एक ही प्रॉब्लम थी. अब वह मेरा बेस्ट फ्रेंड नहीं रह गया था. कुछ बदल गया था.

उसके पास अब शाम के लिए समय ही नहीं होता था. मैं यह समझ सकता था, आख़िर नए-नए प्यार में डूबे आदमी की यही हालत होती है. लेकिन वह साइबरसेफ़ के काम में कोताही करने लगा था.

‘मैं कुछ दिनों के लिए अमृतसर जा रहा हूं. क्या तुम वो पिच प्रेज़ेंटेशन दे सकते हो, जिसके लिए जैकब ने कहा था?’ एक दिन सौरभ ने कहा.

‘पर तुम अमृतसर क्यों जा रहे हो?’

‘वो, प्रेरणा ने कहा है कि मुझे अमृतसरी कुल्चे ट्राय करने चाहिए.’

‘क्या?’

‘वह उसका होमटाउन है. वहां उसके पापा की फ़ैक्टरी भी है.’

‘प्रोजेक्ट की डेडलाइन अगले शुक्रवार की है.’

‘तुम हैंडल कर लो ना,’ सौरभ ने कहा.

‘केवल इस बार,’ मैंने कहा.

लेकिन यह केवल एक बार की बात कहां रहने वाली थी? सौरभ प्रेरणा के लिए सबकुछ छोड़ने को तैयार था. वो प्यार में इतना डूब गया था कि एक बार वो पूरे दो हफ़्ते तक प्रेरणा के लिए ईटो एप्प की डीबगिंग करता रहा था. इसी समय हमें भी साइबरसेफ़ के एक क्लाइंट के लिए एक ज़रूरी कोड फ़िनिश करना था. मैं अकेला इसे समय पर पूरा नहीं कर पाया. हमारे क्लाइंट ने इसकी शिकायत जैकब से की और जैकब ने मुझ पर ग़ुस्सा निकाला.

‘सॉरी भाई, मुझे नहीं पता था कि ईटो की डीबगिंग में इतना टाइम लग जाएगा,’ सौरभ ने कहा.

‘जैकब ने मुझको वॉर्निंग दी है,’ मैंने कहा.

‘वेट, प्रेरणा का कॉल आ रहा है. मैं बाद में बात करता हूं,’ सौरभ ने कहा और मेरा फ़ोन काट दिया.

मैं अब तक सबकुछ सहन कर रहा था. मैं प्रेरणा की फ़ैमिली से मिलने तक गया था—उसके पैरेंट्स, भाई, मासी, चाचा, दादी. ये सब एक ही तीन-मंज़िला घर में रहते थे. मैंने उसकी इंगेजमेंट प्लान की थी, सौरभ के कपड़े मैं ही बनवाकर लाया था और पार्टी में सबसे ज़्यादा डांस भी मैंने ही किया था. लेकिन आज वो ये सब भूल गया था. उसको केवल यही याद था कि मैंने उससे आख़िरी बार झगड़ा करते हुए क्या कहा था. उस दिन मेरा दिन ख़राब था. हां, ये बात सच है कि शायद मुझे बेहतर शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए था.

लेकिन अब तो यह आदमी मुझसे बात भी नहीं करना चाहता था. वह घर छोड़कर जाना चाहता था, साइबरसेफ़ में अपना डिपार्टमेंट बदल लेना चाहता था और ज़ेड डिटेक्टिव्ज़ बंद कर देना चाहता था. और इस सबके बावजूद बुरा मैं ही था? सीरियसली?

सौज- सत्याग्रहः लिंक नीचे दी गई है-

https://satyagrah.scroll.in/article/136185/book-excerpt-one-arrange-murder

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