
ऐसा ज़ाहिर होता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ब्रिटेन की सेना पर ज़्यादा ही भरोसा है. इतना भरोसा तो शायद ब्रिटेन की सेना के अधिकारियों या पूर्व सैन्य अधिकारियों को भी नहीं है.
डोनाल्ड ट्रंप जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तो उनसे यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर अमेरिका की गारंटी के बारे में सवाल किया गया.जिसके जवाब में उन्होंने कहा, “ब्रिटेन के पास काबिल सैनिक हैं और अद्भूत सेना हैं वो अपनी सुरक्षा ख़ुद कर सकते हैं.”
क्या ब्रिटेन की सेना रूस का मुक़ाबला करेगी इस सवाल का जवाब ट्रंप ने नहीं दिया.
ट्रंप का बयान उस सच्चाई को भी बयां करता है कि वो यूक्रेन में युद्ध विराम के लिए अपने सैनिकों की तैनाती नहीं करने वाले हैं. अमेरिका की मौजूदगी आर्थिक वजहों से होगी और उनमें खनन हित जुड़े होंगे.
उनका सुझाव है कि ये अपने आप में रूस को दोबारा हमला करने से रोकने वाला कदम होगा. लेकिन उनके अपने प्रशासन का मानना है कि वहां कोई मज़बूत शक्ति होनी चाहिए जो दूसरे मुहैया करवाएं.
और ऐसा यूरोप के देशों को करना चाहिए. लेकिन सवाल ये नहीं है कि यूरोप ऐसा करे. सवाल ये है कि क्या यूरोप के पास ऐसा करने के लिए संख्या है.
इसका जवाब है नहीं.
इसलिए किएर स्टार्मर ने अतिरिक्त सुरक्षा गारंटी के लिए दुनिया की सबसे ताकतवर अमेरिकी सेना की तारीफ की.
ब्रिटेन अकेला नहीं है जिसने शीत युद्ध के अंत के बाद अपनी सैन्य शक्ति में कटौती की. लेकिन यूरोप के दूसरे देशों में ये ट्रेंड अब बदल रहा है. कुछ देश अपना सैन्य खर्च बढ़ा रहे हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा है कि रूस को हमले करने से रोकने के लिए उन्हें एक से दो लाख अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की ज़रूरत है. लेकिन यूरोप अपने दम पर इतने सैनिक मुहैया नहीं करवा सकता है.
पश्चिमी देशों के अधिकारी 30 हज़ार सैनिक भेजने पर विचार कर रहे हैं. यूरोप के जेट और युद्धपोत यूक्रेन के एयर स्पेस और समुद्री रास्तों की निगरानी करेंगे.
इस सेना का फोकस यूक्रेन के शहरों, पोर्ट और न्यूक्लियर पावर स्टेशन की सुरक्षा करना होगा. ये पूर्वी यूक्रेन में मोर्चे पर तैनात नहीं होंगे.
यूरोप के फाइटर जेट और युद्धपोत यूक्रेन के एयर स्पेस और समुद्री रास्तों को मॉनिटर करेंगे.
लेकिन पश्चिमी अधिकारी मानते हैं कि इतना काफी नहीं होगा. इसलिए वो अमेरिका के बेकअप की मांग करते हैं.
अधिकारियों का मानना है कि कम से कम यूरोपियन फोर्स की मदद के लिए अमेरिकी एयर जेट्स की पोलैंड और रोमानिया में जवाबी कार्रवाई के लिए तैनाती होनी चाहिए.
यूरोप अमेरिका की निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता का मुकाबला नहीं कर सकता है.
वो यूक्रेन को और हथियारों की सप्लाई के लिए भी रज़ामंद हो सकता है.
अमेरिका ने यूक्रेन को जितने हथियार दिए हैं हाल ही में उससे थोड़े ज़्यादा यूरोप ने दे दिए हैं. लेकिन एक सूत्र ने बताया कि अमेरिका ने यूक्रेन को लंबी दूरी तक मात देनी वाली मिसाइल और एयर डिफेंस सिस्टम मुहैया करवाया है.
यूरोप के देशों के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वो अपने दम पर कोई बड़ा सैन्य अभियान चला पाएं. यूरोप के देशों के हथियारों की आपूर्ति भी अमेरिका पर निर्भर करती है.
2011 में लीबिया पर नेटो के बमबारी अभियान ने कई कमियों को उजागर किया. यूरोप के देशों के अगुवाई करने के बीच उन्हें अमेरिका की मदद पर निर्भर रहना पड़ा. ये देश अमेरिकी टैंकरों के भरोसे रहे.
लेकिन स्टार्मर बिना किसी सैन्य गारंटी के अमेरिका से वापस आए. बीबीसी से बात करते हुए ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री वेस ने कहा, “ट्रंप नेटो के आर्टिकल 5 के लिए प्रतिबद्ध हैं. जिसमें एक सहयोगी पर हमला बाकी सभी सहयोगियों पर भी हमला माना जाता है.”
लेकिन अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसे पहले ही कह चुके हैं कि यूक्रेन में भेजा गया कोई भी सैन्य दल नेटो की संधि के तहत नहीं आएगा और ना ही नेटो जैसी सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी.
ऐसे में इम्तिहान यूरोप की शक्ति का होगा. ये भी देखना होगा कि स्टार्मर ट्रंप के शब्दों के साथ दूसरों को अपने साथ लाने में कामयाब होते हैं या नहीं.
अभी तक फ्रांस ही यूरोप का ऐसा दूसरा देश जो साथ खड़ा होने के लिए तैयार है. उत्तर यूरोप के कुछ दूसरे देश डेनमार्क, स्वीडन प्रतिबद्धता तो दिखाना चाहते हैं पर उनकी प्रतिबद्धता अमेरिका के जैसी ही है. स्पेन, इटली और जर्मनी अभी तक इसके ख़िलाफ़ ही नज़र आते हैं.
स्टार्मर को अभी तक इस बात की गुंजाइश नज़र आती है कि अमेरिका यूरोप की सेना का साथ देगा.
लेकिन सवाल वही है कि क्या ब्रिटेन की सेना रूस का मुकाबल कर सकती है? भले ही रूस की सेना कमज़ोर हुई है, पर इस सवाल का जवाब ना है.
साभार- बीबीसी