जस्टिस मार्कंडेय काटजू ऐतिहासिक अनुभव से पता चलता है कि क्रांतियाँ तब होती हैं जब करोड़ों लोग इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि किसी भी तरह से अब पुराने तरीक़े से रहना असंभव है। यह स्थिति भारत में तेज़ी से आ रही है। हमारा मीडिया शुतुरमुर्ग की तरह बर्ताव करना जारी रख सकता है, आने […]
Read More5 सितंबर को प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है। अब शिक्षक दिवस ने राष्ट्रीय त्योहार का रूप ले लिया है। इसे एक तरह से राष्ट्रीय त्योहार का दर्जा मिल गया है। शिक्षक दिवस अब विद्यालयों तक ही सीमित नहीं है। पहले केवल स्कूलों में ही शिक्षक दिवस मनाया जाता था। पहले प्राथमिकता हाई स्कूल […]
Read Moreहाल ही में छत्तीसगढ़ विधान सभा का मानसून सत्र समाप्त हुआ। क्योंकि 6 माह में एक सत्र ज़रूरी होता है अतः पहले ही यह कह दिया गया था कि संवैधानिक बाध्यता और औपचारिकताओं के लिए ही यह सत्र आयोजित किया जा रहा है। चार दिन तक चले सत्र में आपात जरूरतों के बहाने अनूपूरक बजट […]
Read Moreपुलित्जर पुरस्कार से पुरस्कृत लेखिका,इसाबेल विल्करसन द्वारा लम्बे समय से क़ायम अमेरिका की जातीय व्यवस्था पर ध्यान खींचने वाला एक लेख उनकी नयी पुस्तक, कास्ट: द लाइज़ दैट डिवाइड अस के हिस्से का एक संपादित अंश है। उस भारतीय के लिए यह लेख बेहद चौंकाने वाला है, जिसकी जाति उसके पैदा होने से लेकर मौत […]
Read Moreसरकार द्वारा किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. पूरे देश में इस रोग के प्रसार और उसके कारण लगाए गए प्रतिबंधों से एक बड़ी आबादी बहुत दुःख और परेशानियां झेल रही है. इस साल की फरवरी की शुरूआत में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने […]
Read Moreअजय बोकिल देश का एक अन्यतम और अत्यंत प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान, जो अगले साल अपनी स्थापना की शताब्दी मनाने जा रहा हो, वो इन दिनों घटिया राजनीति के अखाड़े में तब्दील हो चुका है। जिसके नाम में ही ‘शांति’ हो, जिसकी स्थापना एक वैश्विक संवाद केन्द्र के रूप में की गई हो, वो ‘शांति निकेतन’ […]
Read Moreकुछ वाकई में मनोरोगी जैसे दिख रहे थे। लोगों का बहुलांश चिथड़े लपेटे और निरक्षर किसानों का था, जो तुत्सी के प्रति नफरत की भावना से आसानी से उन्माद में आ सकते थे। मैं जिनसे मिला उनमें शायद सबसे भयावह लोग थे शिक्षित राजनीतिक अभिजात, आकर्षक व्यक्तित्व वाले और नफासत भरे स्त्री और पुरुष, जो […]
Read Moreव्यंग्य पुरोधा हरिशंकर परसाई के लेखन पर उन्हीं की परम्परा के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार प्रभाकर चौबे का आलेख – “मैं ऐसा मानता हूँ कि परसाई जी का लेखन भी एक्टीविज्म का एक जरूरी हिस्सा रहा । वे अपने लेखन को एक्टीविज्म के एक हिस्से के रूप में लेते थे और इसी कारण उनका लेखन मनोरंजन […]
Read Moreफिलिस्तीनी कवि महमूद डारविश की कविता मेमोरी फॉर फ़ॉरगेटेबिलिटी 1982 में लेबनान पर इज़राइली आक्रमण का पीछा करती है जिसमें बेरुत, जहाँ वे खुद रहते थे पर बमबारी की गई थी। उन्होंने लिखा था कि “बेरूत, इजरायल के टैंकों और आधिकारिक तौर पर लकवाग्रस्त अरब से घिरा हुआ था,”। बेरुत बड़े धैर्य से जमा हुआ […]
Read Moreडॉ. युसुफ़ अख़्तर रूस द्वारा निर्मित स्पूतनिक-5 कोरोना वायरस वैक्सीन स्वास्थ्य संबंधी कुछ अहम चरणों की अनदेखी कर रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जनवरी, 2019, में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए शीर्ष दस खतरों में ‘टीकाकरण के प्रति संकोच’ को बड़े खचरे के तौर पर सूचीबद्ध किया है. इसने टीकाकरण के संकोच को टीके की […]
Read More