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Year: 2021

मार्क्सवाद के साथ गांधी मार्ग का समन्वय समय की मांग है–जीवेश प्रभाकर

किसान आंदोलन की पूरे देश में हलचल है। किसान आंदोलन के चलते न सिर्फ किसान बल्कि एक बहुत बडा वर्ग उद्वेलित है जिसमें युवा वर्ग की भागेदारी एक नए बदलाव का संकेत दे रही है। विगत लगभग 6 माह से जारी यह आंदोलन एक नया इतिहास रच रहा है जिसके भीतर से उठती ध्वनियों में…

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विधानसभा चुनाव 2021: केरल में वाम, बंगाल में टीएमसी, तमिलनाडु में द्रमुक, असम में बीजेपी की जीत

आखिरकार 2 मई को पांच राज्यों के चुनाव नतीजे सामने आए. इसमें सबसे बड़ी खबर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की प्रचंड जीत है. इस जनादेश के पीछे बहुत बड़ी बातें छुपी हुई हैं. ममता बनर्जी को हराने में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. ये देश की राजनीति में एक नया टर्निंग…

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दुबारा लॉकडाउन अगर लगा तो…

आलोक जोशी एसएंडपी ने इस साल भारत की जीडीपी में ग्यारह परसेंट बढ़त का अनुमान दिया हुआ है। लेकिन उसका कहना है कि रोजाना तीन लाख से ज़्यादा केस आने से देश की स्वास्थ्य सुविधाओं पर भारी दबाव पड़ रहा है, ऐसा ही चला तो आर्थिक सुधार मुश्किल में पड़ सकते हैं। यूँ ही देश…

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“तुमसे न होगा मोदी जी!”

शंभूनाथ शुक्ल एक प्रधानमंत्री और उसके मुख्यमंत्रियों की यह नाकामी उस व्यवस्था की पोल खोलती है जो ख़ुद पिछले सात वर्षों में भाजपा ने गढ़ी है। हर जगह संवेदन-शून्य लोगों की नियुक्ति से यही होगा। पब्लिक मशीन नहीं होती। वह एक जीता-जागता समाज है। एम आसैपंडी नोएडा के सेक्टर 51 स्थित केंद्रीय विहार में रहते…

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क्या है सिस्टम का फेल होना?

विक्रम सिंह लोगों को बताया जा रहा है कि जनता ही सिस्टम है, इसलिए जनता फेल हो गई। सिस्टम का फेल होना आपका फेल होना है। हमारे देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने आतंक मचा रखा है। हस्पताल से श्मशान/कब्रिस्तान तक लम्बी कतारें लगी हैं। जनता आशंकित और आतंकित दिख रही है। ऊपर…

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आस्था, राजनीति और सार्वजनिक स्वास्थ्य: कोविड-19–राम पुनियानी

कोविड-19 की दूसरी और कहीं अधिक खतरनाक लहर पूरे देश में छा चुकी है. जहाँ मरीज़ और उनके परिजन बिस्तरों, ऑक्सीजन और आवश्यक दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं वहीं कोविड योद्धा इस कठिन समय में समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लोगों की भोजन और…

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जो सरकार बार बार पीड़ा देती है, उसे हटा देना चाहिए! -अपूर्वानंद

परपीड़ा की राजनीति फल देती है। वह निष्क्रिय पीड़कों के समाज का निर्माण करती है। वह पीड़ा की वैधता भी स्थापित करती है। एक हिस्से को पीड़ित होते रहना होगा जिससे एक बड़े समुदाय को आनंद मिल सके। एक छोटी अवधि तक पीड़ित होना होगा, जिससे चिरकाल का सुख मिल सके। जो पीड़ा की शिकायत…

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आईपीएल; लाशों की पिच पर दम तोड़ती मानवता का खेला – जीवेश चौबे

हमेशा की तरह एक बार फिर देश में क्रिकेट का आइटम सॉंग कहे जाने वाले 20-20 का भोंडा प्रदर्शन शुरु हो चुका है। क्रिकेट की लोकप्रियता और भारतीय जनमानस की उत्सवधर्मिता के चलते इसमें कोई बहुत वाद- विवाद या विमर्श की गुंजाइश नहीं रह जाती , मगर इस बरस इसके टायमिंग को लेकर देश का…

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मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे पर कुछ चिंतन-इंदिरा जयसिंह

भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान न्यायदर्शन के साथ-साथ वर्षों से उनके पेशेवर कार्यकलापों को रेखांकन करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह 47 वें सीजेआई के रूप में न्यायमूर्ति एसए बोबडे की जटिल विरासत पर नज़र डाल रही हैं और उन्हें एक ऐसे ग़ैर-परंपरागत न्यायायिक अधिकारी के…

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हिन्दू कालेज, दिल्ली में अभिधा का समापनः भारतीयता की खोज समकालीन नाटक की सबसे अद्भुत विशेषता – प्रो आशीष त्रिपाठी

नई दिल्ली।  ‘बिना रंगमंच के नाटक की कल्पना नहीं हो सकती, ठीक उसी तरह जैसे बिना शब्द के संगीत की कल्पना संभव नहीं।’ कवि,आलोचक एवं नाटक-रंगमंच के अध्येता प्रो. आशीष त्रिपाठी ने उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित ‘अभिधा’ के तीसरे और अंतिम दिन ‘समकालीन हिंदी नाटक’ विषय पर अपने विचार व्यक्त…

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