कविताएंः आनंद बहादुर

1 हम पहाड़ हैं 

हमारे अंदर से 

वे कंदराएं बोलती है

जिन्हें प्रेम ने वहां सिरज रखा है 

उन फिसलनदार चट्टानों से आती है आवाजें 

जो घृणा से उपजी हैं 

किसी हावभाव से 

किसी गुमनाम भूआकृति का मिलता है आभास 

झलकने लगती हैं असंख्य दरारों से निकलकर 

इधर-उधर बहने वाली छोटी छोटी नदियां 

हमारे सारे वक्तव्य 

नदियों कंदराओं और चट्टानों तक ही तो हैं 

इस रेतीले समय के हम सीधे सपाट चट्टान ही तो हैं 

जो जानते हैं कि अभी हथौड़े वाले हाथ आते ही होंगे 

हमारे व्यक्त अव्यक्त के समुच्य को

क्रशरों में डाल गिट्टियों में बदल देने 

देखिए श्रमरंजित किन पथों पर

सभ्यताएं अपने गंतव्य की ओर बढ़ती हैं 

वहां कहां बिछे हुए होते हैं हम।

2  समतल

समतल ज्यादा दिन 

समतल नहीं रहता 

धीरे-धीरे एक पर्वत उग आता है 

मेरे पास भी एक समतल है 

जिसके नीचे 

कोई पर्वत मुझे छू रहा है 

और मुझे अंदर से बाहर 

धकेल रहा है 

मेरे ऊपर अभी एक साफ और फरीछ आसमान है 

जिसे पता है कि पर्वत मेरे भीतर उगेगा 

अवश्य उगेगा 

उगेगा ही उगेगा 

मगर मैं जानता हूं कि पर्वत उगा 

तो कोई सरिता जरूर फूटेगी 

सरिता फूटेगी तो आकाश 

कभी लाल कभी नीला 

कभी भूरा रंग उसमें घोलेगा 

और फिर सरिता 

बूंद-बूंद रंगों में बांट कर 

मुझे उपत्यकाओं में फेंक आएगी 

ऐसा वह तब तक करती रहेगी 

जब तक मैं फिर से 

समतल नहीं हो जाता।

3 खेल

समय ने मुझे 

कागज के बेकार पड़े टुकड़े की तरह 

मचोड़ कर फेंक दिया था 

यह तो एक बच्चे ने 

कागज को उठाया 

और एक हवाई जहाज बनाया 

शून्य की मेरी 

पल भर की सैर 

वक्त और एक बच्चे के बीच 

खेले जा रहे खेल का हिस्सा है 

जानता हूं 

कि पल भर हवा में तिरने के बाद 

जब मैं औंधे मुंह गिरूंगा 

और समय 

अपने भारी भरकम कदमों तले 

मुझे कुचल कर 

चला जाएगा 

तो फिर कोई बच्चा आएगा 

शायद इस बार 

वह मुझे नाव बनाएगा।

4 जादू 

क्या यह सच नहीं कि हम-तुम 

एक जादूगर लुटेरे द्वारा 

लूट लिए गए हैं?

कि कोई जादूगर 

जादू ही चीजों की दुकान से 

हमें उठा ले आया 

कि हम उस के काम आएंगे 

प्रिय हम करते हैं प्रेम 

तो यह उसके जादू को 

और अधिक ताकतवर बनाएगा 

यह उसे देगा तोष और विश्वास 

क्या यह सच नहीं कि कोई जादूगर 

हमारे प्रेम का भी इस्तेमाल कर लेगा? 

प्रिय, मुझे है संदेह 

कि हमारा प्यार 

किसी जादूगर को अमर कर देगा।

आनंद बहादुर वरिष्ठ , कवि कथाकार हैं । पिछले चार दशक से उनकी कहानियां,कविताएं, गज़ल, अनुवाद और लेख देश की प्रमुख हिन्दी पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे हैं । हाल ही में उनका कहानी संग्रह ढेला और अन्य कहानियांप्रकाशित हुआ है। साहित्य के साथ उनकी रुचि संगीत में भी है। वर्तमान में केटीयू पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलसचिव हैं। संपर्क- 8103372201

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