साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि हर साल सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाएगा. इस बार भी मनाया जाता लेकिन उससे पहले 27 जुलाई को ही इस हथकरघा बोर्ड को भंग कर दिया गया.
हथकरघा बोर्ड को ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिम गवर्नेंस’ के तहत भंग किया गया. हालांकि जब इसकी घोषणा की गई थी तब यह कहा गया था कि इसका उद्देश्य हथकरघा उद्योग को बढ़ावा, बुनकरों को प्रोत्साहन और देश के आर्थिक विकास में इसके योगदान के प्रति जागरूकता फैलाना है. केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड के अलावा अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को भी खत्म कर दिया और उसके कुछ दिन बाद ही अब अखिल भारतीय पावरलूम बोर्ड को भी बंद कर दिया है.
सरकारी अधिसूचना के मुताबिक, इसका मतलब होगा कि ‘किसी भी निपटान, बिक्री और केंद्र सरकार के अनुदान से बनाई गई संपत्तियों के हस्तांतरण के लिए कपड़ा मंत्रालय की पूर्व विशिष्ट मंजूरी की आवश्यकता होगी.’ हालांकि केंद्र सरकार ने कहा है कि इन तीन बोर्डों को खत्म करने से नीति-निर्माण पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा.
बताया जा रहा है कि इन बोर्डों की वजह से ना तो बुनकरों का कोई भला हो रहा था और ना ही हथकरघा उद्योग का. बल्कि ये बोर्ड राजनीतिक संरक्षण की जगह बन गए थे और इनके जरिए बिचौलिए आने लगे जिससे बुनकरों का कोई फायदा नहीं होना था.
इन क्षेत्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस कदम की फिर भी आलोचना की है. दस्तकार की चेयरपर्सन लैला तैयबजी ने कहा है कि अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को समाप्त करने का मतलब होगा कि बुनकरों और शिल्पकारों के पास अपनी चिंताओं को उठाने के लिए कोई मंच नहीं होगा.
अखिल भारतीय हथकरघा मंडल यानी ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड की स्थापना साल 1992 में की गई थी. इस बोर्ड का मुख्य उद्देश्य हथकरघा उद्योग और बुनकरों के बेहतर विकास के लिए सरकार के साथ मिलकर योजनाएं तैयार करना था. ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड इकलौता एक ऐसा मंच था जहां हथकरघा उद्योग से जुड़े लोग सरकार के साथ मिलकर इस उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए और बुनकरों को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए काम करते थे.
ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड हथकरघा बुनकरों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हथकरघा मेलों और प्रदर्शनियों का आयोजन करवाने और हथकरघा बुनकरों को सरकार से सब्सिडी और अनुदान दिलवाने में मदद करता था. बुनकरों के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़े मुनीर अहमद बताते हैं कि यह बोर्ड उतना भी ‘बेकार’ नहीं था जितना बताकर इसे भंग कर दिया गया.
ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड की ओर से तमाम ऐसी योजनाएं संचालित थीं जो बुनकरों को समय-समय पर आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराती थीं और उन्हें अपने उत्पाद के विपणन और प्रचार का मंच भी देती थीं. इन योजनाओं में हथकरघा बुनकर व्यापक कल्याण योजना, राष्ट्रीय हथकरघा विकास प्रोग्राम, हथकरघा विपणन सहायता, बुनकर मुद्रा योजना, धागा आपूर्ति योजना प्रमुख हैं.
कोरोना संकट और लॉकडाउन की वजह से तमाम व्यवसायों और उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, सभी लगभग ठप्प पड़े हैं. ऐसे में हथकरघा उद्योग और बुनकरों का भी बुरा हाल है. देशभर में बुनकरों का काम बंद है और लाखों बुनकर ना सिर्फ मौजूदा हालात से पीड़ित हैं बल्कि उन्हें अपना और अपने बच्चों का भविष्य भी अंधकार में दिख रहा है.
उत्तर प्रदेश के टांडा, बनारस, भदोही, मऊ और कई अन्य शहरों में बड़ी संख्या में बुनकर हैं और वहां की एक बड़ी आबादी इसी उद्योग पर निर्भर है. कुछ लोग बुनाई करते हैं और कुछ इसकी मार्केटिंग और इससे जुड़े तमाम दूसरे कामों से जुड़े हैं.
बुनकर उद्योग से जुड़े मुद्दों पर पिछले कई वर्षों से काम कर रहे मऊ के आफताब अंसारी बताते हैं, “जो लोग खुद का पावर लूम चलाते थे वो तो घर पर काम कर रहे हैं लेकिन जिनके कारखाने थे उनका काम बंद हो चुका है. जब तक धागे थे काम होता रहा लेकिन बाजार बंद होने के कारण ना तो बुनकरों को बुनाई के धागे मिल पा रहे हैं और न ही उनका तैयार हुआ माल बाजार तक पहुंच रहा है.”
वहीं, बनारस में साड़ी व्यवसाय से जुड़े राहुल अग्रवाल कहते हैं कि सबसे ज्यादा परेशानी तो उन लोगों के सामने है जिन्होंने बैंकों से कर्ज ले रखा है और काम बंद होने के कारण कर्ज और ब्याज की अदायगी को लेकर परेशान हैं. बुनकर संगठनों ने सरकार से ब्याज के भुगतान में कुछ महीने की रियायत की मांग की है लेकिन अभी उन्हें रियायत मिल नहीं पाई है.
उत्तर प्रदेश में लाखों दिहाड़ी मजदूर हैं जो कारखानों में बुनाई का काम करते हैं. इनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं. अयोध्या के पास टांडा में 80 हजार पॉवर लूम हैं जिससे 30-35 हजार बुनकर प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. बनारस में करीब एक लाख पॉवर लूम हैं. इसके अलावा मऊ, आजमगढ़ और भदोही में भी इस उद्योग से जुड़े तमाम लोग हैं जो लॉकडाउन के बाद सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. इनमें अधिकतर निम्न आय वर्ग से हैं और इनके पास इतनी पूंजी नहीं होती कि ये महीनों तक काम के बिना घर बैठ कर अपने परिवार का खर्च उठा सकें.
भदोही में कालीन व्यवसाय से जुड़े अब्दुल रब कहते हैं कि स्कूल, कॉलेज इत्यादि बंद होने से ना सिर्फ कपड़ों की मांग कम हुई है बल्कि दरी, गमछे, चादर जैसे दूसरे कपड़े भी नहीं बिक रहे हैं और इसी वजह से उन्हें बनाने के ऑर्डर भी नहीं आ रहे हैं. दूसरी ओर कच्चा माल भी नहीं मिल रहा है और महीनों लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्ट भी बंद रहा और बड़ी संख्या में बुनकरों के सामने खाने के भी लाले पड़े हैं.
बुनकर उद्योग से जुड़े कारोबारी मौजूदा संकट से निपटने के लिए सरकार से कई तरह की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार अलग-अलग व्यवसाय को राहत पैकेज देने की बात कर रही है तो बुनकरों के लिए भी अलग राहत पैकेज की घोषणा करे. हालांकि सरकार ऐसे राहत पैकेज पर अभी कोई भी फैसला करती नहीं दिख रही है.
दूसरी ओर, ऐसे समय में हथकरघा बोर्ड जैसी संस्थाओं के भंग होने से बुनकरों और इस उद्योग से जुड़े लोगों के सामने अपनी समस्याओं को रखने का जो एक अहम मंच था, वह भी उनसे दूर हो गया.
सौज- डीड्बलू