
27 मार्च को रिलीज हुई इस फिल्म में मुख्य किरदार मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार मोहनलाल ने निभाया है. यह 2019 में आई उनकी फिल्म ‘लूसिफर’ का सीक्वेल है. इसमें मोहनलाल ने एक गैंगस्टर की भूमिका निभाई है जो देश से बाहर रह कर केरल की राजनीति में सक्रिय है.
फिल्म ने अभी तक बॉक्स-ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ‘एम्पुरान’ ने अब तक 50 करोड़ से ज्यादा रुपये कमा लिए हैं. लेकिन राजनीतिक विवाद फिल्म का पीछा नहीं छोड़ रहा है.
क्या है मामला
दरअसल फिल्म के दो काल्पनिक किरदारों की कहानी को 2002 के गुजरात दंगों से जोड़ा गया है. एक का नाम है बाबा बजरंगी, जिसे दंगाइयों में शामिल बताया गया है. यह बाबू बजरंगी के नाम से मिलता जुलता है जो गुजरात दंगों के दौरान प्रदेश में बजरंग दल का नेता था.
बजरंगी को नरोदा पाटिया हत्याकांड में शामिल होने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. 2019 में स्वास्थ्य कारणों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया था. इसके अलावा फिल्म में जायेद मसूद नाम के एक किरदार को दंगा पीड़ित दिखाया गया है. बताया गया है कि गुजरात दंगों के दौरान मसूद के माता-पिता की हत्या कर दी गई थी.
क्या फिल्में नजरिया बदल सकती हैं?
इन्हीं किरदारों के इर्द-गिर्द दंगों की कहानी बताई गई है और केरल में एक काल्पनिक हिंदुत्ववादी संगठन की गतिविधियों को दिखाया गया है. लेकिन इन दृश्यों पर फिल्म के रिलीज होने के कुछ घंटों बाद ही विवाद शुरू हो गया था.
एक तरफ कांग्रेस और सीपीएम से जुड़े कई लोगों ने इसे ‘संघ परिवार के अजेंडा को खोलकर रख देने’ वाली फिल्म बताया, तो दूसरी तरफ हिंदुत्ववादी संगठनों ने हिदुत्व को बदनाम करने और ‘देश-विरोधी’ तत्वों को खुश करने का आरोप लगाया.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केरल में कई हिंदुत्व समूहों के संघ ‘केरला हिंदू ऐक्य वेदी’ के अध्यक्ष आरवी बाबू ने कहा कि फिल्म ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड के पीड़ितों के प्रति अन्याय किया है और यह मानने से इंकार किया है कि अगर वह घटना नहीं हुई होती तो गुजरात दंगे नहीं हुए होते.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आरएसएस से जुड़े संगठन प्रज्ञाप्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार ने भी कहा है कि फिल्म हिंदुत्व-विरोधी हितों को साध रही है.
आरएसएस की अंग्रेजी पत्रिका ‘द ऑर्गनाइजर’ में फिल्म की आलोचना करते हुए कई लेख छपे हैं. इनमें से एक में फिल्म के निर्देशक और अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन को ‘देश-विरोधियों की आवाज’ बताया गया है.
कटेंगे दृश्य, लेकिन क्या थमेगा विवाद?
दूसरी तरफ केरल कांग्रेस ने एक्स पर लिखा, “जिन लोगों ने कभी केरल की धरती पर पांव नहीं रखा वे लोग एक सी-ग्रेड प्रोपेगंडा फिल्म को असली केरल स्टोरी बता रहे थे. अब जब एक विश्व-स्तरीय मलयालम फिल्म ने संघ का अजेंडा खोल कर रख दिया है, तो वे लोग रो रहे हैं.”
हालांकि अब फिल्म के निर्माताओं ने बताया है कि उन्होंने खुद ही फिल्म के कम-से-कम 17 दृश्यों को काटने का फैसला लिया है. मोहनलाल ने फेसबुक पर लिखा कि उनकी फिल्म के कुछ “राजनीतिक-सामाजिक विषयों ने उनके कई चाहनेवालों को दुखी किया है” और उन्हें व फिल्म की पूरी टीम को इसके लिए खेद है.”
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि सभी ने साथ मिल कर फैसला किया है कि इन सभी विषयों को फिल्म में से हटा दिया जाएगा. मनोरमा ऑनलाइन समाचार वेबसाइट के मुताबिक, फिल्म के निर्माता गोकुलम गोपालन ने कहा है कि वे किसी तरह की राजनीति में शामिल नहीं हैं और उन्होंने फिल्म में आवश्यक बदलाव लाने के लिए कहा है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 17 दृश्यों को काट कर अगले हफ्ते फिल्म को फिर से रिलीज किया जाएगा. हालांकि विवाद अभी भी जारी है. केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने एक्स पर लिखा कि “एम्पुरान’ और उसके निर्माताओं के खिलाफ “सांप्रदायिक अभियान…एक बढ़ती हुई पद्धति का एक और उदाहरण है जिसमें जबरदस्ती और धमकी से असहमति को दबाने की कोशिश की जाती है. यह हथकंडे हमेशा से तानाशाही के प्रमाण चिह्न रहे हैं.”
भारत में पिछले कुछ सालों में कई फिल्मों को लेकर विवाद और सांप्रदायिक तनाव बनाया गया है. फरवरी में आई फिल्म ‘छावा’ के रिलीज होने के बाद औरंगजेब की कब्र को महाराष्ट्र के खुलताबाद से हटाने को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ, जिसके चलते 17 मार्च को नागपुर में हिंसा हुई थी.
साभार dw hindi