आजादी में विलंब अराजकता पैदा करता

– एल एस हरदेनिया

मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष ने कहा है कि भारत का विभाजन इसलिए हुआ क्योंकि नेहरूजी समेत कांग्रेस नेता सत्ता का भोग करने को उतावले थे। उनका यह कथन पूरी तरह से बेबुनियाद तो है ही, साथ ही इस बात का प्रतीक है कि संबंधित नेता उस समय के घटनाक्रम से पूरी तरह अवगत नहीं हैं। चूंकि मंत्रिपरिषद का स्वरूप पूरी तरह से राष्ट्रीय था इसलिए यह कहना अनुचित है कि विभाजन इसलिए स्वीकार किया गया क्योंकि नेहरू को सत्ता हासिल करने की जल्दी थी।

पहली बात यह है कि देश के आजाद होने के बाद जो पहली मंत्रिपरिषद बनी उसमें कांग्रेस नेताओं के अलावा अनेक गैर-कांग्रेसी भी शामिल किए गए थे। इनमें भाजपा के पूर्व अवतार जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे जो उस समय हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता थे। मुखर्जी के अलावा डॉ अम्बेडकर को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था। चूंकि मंत्रिपरिषद का स्वरूप पूरी तरह से राष्ट्रीय था इसलिए यह कहना अनुचित है कि विभाजन इसलिए स्वीकार किया गया क्योंकि नेहरू को सत्ता हासिल करने की जल्दी थी।

मूल रूप से जून 1948 में अंग्रेज भारत छोड़कर जाने वाले थे। इस बीच तत्कालीन वाईसराय माउंट बेटन लंदन गए। वे वहां से 3 जून 1947 को वापिस आए। वापिस आने के तुरंत बाद उन्होंने आल इंडिया रेडियो पर विभाजन की योजना घोषित की। अगले दिन माउंट बेटन ने पत्रकार वार्ता आयोजित की। पत्रकार वार्ता में उन्होंने घोषणा की कि अब ब्रिटेन जून 1948 के स्थान  पर 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद कर देगा। यह भी ज्ञात हुआ कि आजादी देने की तिथि में परिवर्तन करने का फैसला स्वयं माउंटबेटन का था।

इस तरह यह स्पष्ट है कि भारत के विभाजन की तिथि का निर्णय ब्रिटेन का था न कि नेहरू व अन्य कांग्रेस नेताओं का। माउंटबेटन का सोच था चूंकि विभाजन का फैसला हो चुका है इसलिए उसका क्रियान्वयन करने में देरी न हो। यदि देरी होती है तो पूरे देश में साम्प्रदायिक हिंसा की आग फैल जाएगी। देरी के चलते लाखों लोग मारे जा सकते हैं। शीघ्र आजाद करने का एक और प्रमुख कारण था। जैसा कि ज्ञात है कि हिन्दुस्तान के कुछ हिस्सों पर ब्रिटेन पर सीधा शासन था। वहीं कुछ हिस्सों पर ब्रिटेन ने राजा-महाराजाओं के माध्यम से शासन किया था।

अब चूंकि ब्रिटेन अपना शासन समाप्त कर रहा था इसलिए देश के उन हिस्सों की सत्ता हिन्दुस्तान में कांग्रेस को सौंपी जाएगी और पाकिस्तान में मुस्लिम लीग को सौंपी जाएगी जहां ब्रिटेन का सीधा शासन था। और जहां तक उन क्षेत्रों का सवाल है जहां राजा-महाराजा और नवाबों का शासन था,15 अगस्त 1947 के बाद वे स्वतंत्र हो जाएंगे। यदि वे स्वतंत्र नहीं रहना चाहते तो वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं। यदि वे स्वतंत्र रहने का फैसला करते हैं तो आजाद भारत में सैकड़ों छोटे-छोटे देश अस्तित्व  में आ जाएंगे।

विभाजन को शीघ्र करने का एक और कारण देश का बालकेनाईजेशन रोकना था। ऐसे राजे-रजवाड़ों की संख्या 500 से ज्यादा थीं यदि ये सब आजाद होने का फैसला कर लेते तो भारत एक देश के रूप में अस्तित्व  ले ही नहीं पाता। गांधीनेहरू और पटेल इस बारे में पुख्ता निर्णय लेना चाहते थे। वे इस मामले में ठोस निर्णय चाहते थे। इसलिए इस गंभीर प्रश्न को लेकर नेहरू व पटेल 9 जुलाई 1947 को माउंटबेटन से मिले। उन्होंने माउंटबेटन से कहा कि वे इन राज्यों के भारत से संबंध के मुद्दे की समस्या को हल करने में क्या निर्णायक पहल कर सकते हैं। माउंटबेटन ने कहा कि वे स्वयं इस मामले को सुलझाना चाहते हैं और यह उनके उच्च प्राथमिकता वाले कार्यों में शामिल है।

उसी दिन इस मामले पर चर्चा के लिए गांधीजी भी माउंटबेटन से मिले। माउंटबेटन ने गांधीजी से हुई वार्ता को स्वयं रिकार्ड किया। गांधीजी ने कहा कि वे पूरी गंभीरता और दृढ़ता ये इस मामले में निर्णय लें। वे यह सुनिश्चित करें कि राजे-महाराजे और नवाब स्वयं को आजाद घोषित न कर पाए। माउंटबेटन ने इस संबंध में पूरी दृढ़ता से निर्णय लिया।

उन्होंने दिनांक 25 जुलाई को चेम्बर ऑफ़ प्रिन्सेस की बैठक बुलाई। माउंटबेटन ने कहा कि ब्रिटेन ने भारत की स्वतंत्रता के संबंध में बनाए गए कानून के द्वारा राजे-रजवाड़ों को ब्रिटेन से हर प्रकार से मुक्त कर दिया है। वे तकनीकी दृष्टि से पूरी तरह से आजाद हैं। ब्रिटेन से उनके सभी संबंध टूट गए हैं। यदि उनके स्थान पर नए संबंध नहीं बनाए जाते तो उसका नतीजा पूरी तरह अव्यवस्था और अराजकता होगा। इस अव्यवस्था का सीधा प्रभाव राज्यों पर पड़ेगा।

माउंटबेटन ने उन्हें सलाह दी कि वे नव निर्मित होने वाले उस देश से अपने संबंध स्थापित कर लें जिसके वे भौगोलिक दृष्टि से सबसे ज्यादा नजदीक हैं। आप अपने पड़ोसी देश से संबंध बनाए बिना अस्तित्व में नहीं रह सकते। उसी तरह आप अपनी प्रजा से दूर नहीं रह सकते हैं क्योंकि उसकी खुशहाली के लिए आप प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने आगे कहा कि आप अपनी प्रतिरक्षा स्वयं नहीं कर सकते।

जहां तक विदेशी संबधों का सवाल है आपके पास इतने साधन नहीं होंगे कि आप विदेशों में अपने राजदूत भेज सकें। जहां तक आवागमन व संचार साधनों का सवाल है, आप इन क्षेत्रों में पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो सकेंगे। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस का स्पष्ट ऑफर है जिसके अनुसार वे आंतरिक मामलों में स्वायत्ता प्राप्त कर सकें और वे ऐसे क्षेत्रों में उन पर निर्भर हो सकें जिन्हें संभालने की क्षमता उनमें न हो।

माउंटबेटन ने अपने भाषण से स्थिति को काफी हद तक स्पष्ट कर दिया। वह उनका शायद सर्वाधिक साहसी निर्णय था। माउंटबेटन ने स्पष्ट कर दिया कि राजे-महाराजों को ब्रिटेन का संरक्षण प्राप्त नहीं होगा और आजाद होना मृगतृष्णा के समान है। माउंटबेटन के स्पष्ट रवैये से राजे-महाराजों के सामने साफ हो गया कि वे किसी भी हालत में आजाद नहीं रह सकते हैं। चैम्बर्स की बैठक के बाद माउंटबेटन लगातार राजे-महाराजों पर  दबाव बनाए रहे कि वे विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दें। यदि वे 15 अगस्त 1947 के पहले भारत में शामिल होने की सहमति दे देते हैं तो वे उन्हें भारत से अच्छी सुविधाएं और विलय की शर्त दिलवा देंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें विस्फोटक स्थिति का सामना करना होगा जिसमें उनकी जनता का आक्रोश भी शामिल होगा।

माउंटबेटन के सहयोग से और सरदार पटेल की कुशलता तथा नेहरू द्वारा बार-बार जनाक्रोश की संभावना बताने से अधिकांश राजे-महाराजे भारत में शामिल हो गए। इन घटनाक्रमों से बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि विभाजन से उत्पन्न समस्याओं का निराकरण द्रुतगति से नहीं होता तो जिस रूप में हमारा देश आजा है वह हमें हासिल नहीं होता। यह भी साफ है कि यदि विभाजन जून 1948 तक रोका जाता तो हम एक मजबूत इकाई के रूप में नहीं उभर पाते। यदि ऐसा करते तो राजे-महाराजों को दुनिया भड़काकर और सहायता के झूठे वायदे करके हमें अनेक भौगोलिक इकाईयों में बांट देते।

इस तरह की स्थिति उत्पन्न नहीं होने देना नेहरूपटेल और कांग्रेस के अन्य नेताओं का एकमात्र देशभक्तिपूर्ण उद्देश्य था।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं। (संवाद)

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