हिन्दू कॉलेज दिल्ली में ‘फिल्मों में गीत लेखन : अवसर एवं चुनौतियां’ पर वेबिनार

दिल्ली।  ‘जिनकी जिंदगी संघर्षों से लदी हुई है। वे वॉचमैन जो चौबीस घंटे कठिन ड्यूटी करते हैं दो जून रोटी के लिए अपना घर-अपना देस छोड़कर महानगरों में बदहाल  स्थितियों में रहने के लिए विवश हैं। ऐसे ही लोग ‘बंबई में का बा’ जैसे गीत के प्रेरणास्रोतों में से एक हैं। सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ सागर ने हिन्दू कॉलेज की हिंदी साहित्य सभा द्वारा आयोजित एक वेबिनार कार्यक्रम में कहा कि गाने में प्रयुक्त बंबई शब्द केवल मुंबई के लिए नहीं है बल्कि यह बड़े शहरों के लिए एक रूपक है। ‘

फिल्मों में गीत लेखन : अवसर एवं चुनौतियां’ विषय पर आयोजित इस संवाद सत्र में डॉक्टर सागर ने कवि व गीतकार बनने का श्रेय अपनी संस्कृति को देते हुए, उन्होंने कहा कि इन गीतों और उनकी उच्च शिक्षा (पीएच.डी. हिंदी) की उनके गीत लेखन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है और अपनी अध्ययनशीलता से भी उनको गीत मिलते रहे हैं। ‘बंबई में का बा’ में रैप शैली के प्रयोग को लेकर उन्होंने कहा कि अगर इस तरह के प्रयोग से हमारी भाषा ज्यादा लोगों तक पहुंच पा रही और विकसित हो रही है तो इस तरह के प्रयोग होने ही चाहिए। समकालीन भोजपुरी गीत लेखन पर उनके नजरिए के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वर्तमान में भोजपुरी में बहुत अच्छा लेखन हो रहा है परन्तु किताबों व पत्रिकाओं के पठन-प्रकाशन के अभाव में हम तक पहुंच नहीं पा रहा है। उन्होंने पांडेय कपिल, अशोक द्विवेदी, प्रकाश उदय, विष्णुदेव तिवारी, सूर्य देव पाठक ‘पराग’ इत्यादि लेखकों का उल्लेख कर कहा कि ये लोग भोजपुरी में उच्च स्तरीय लेखन कार्य कर रहे हैं। 

इससे पहले संवाद सत्र की शुरुआत में हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ पल्लव ने उनका स्वागत किया। डॉ पल्लव ने हिंदी साहित्य सभा की गतिविधियों की जानकारी देते हुए कहा कि समकालीन साहित्य में विद्यार्थियों की रुचि बढ़ाने के लिए सभा द्वारा पर्श पर्यन्त विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। संयोजन कर रहे युवा प्राध्यापक डॉ. धर्मेंद्र ने डॉ सागर का परिचय दिया। 

आयोजन में डॉ. सागर ने एक छोटे से गांव से मुंबई में फ़िल्मी गीतकार बन जाने तक के सफर करने के अपने संघर्ष पर बात करते हुए फिल्म इंडस्ट्री की अनिश्चितताओं पर प्रकाश डाला और कहा कि अपनी रचनाधर्मिता, अपने लेखन और कविताओं पर विश्वास तथा मित्रों के सहयोग से उन्होंने यह मुकाम हासिल किया। भोजपुरी गानों में बढ़ती अश्लीलता को उसका दुर्भाग्य बताते हुए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सन् 2000 के बाद के दौर से भोजपुरी फिल्मी गानों में अश्लीलता बढ़ने लगी और इसी कारण उसके समांतर लिखे जा रहे अच्छे गीत सामान्य जनता की नजर में नहीं आ सके। डॉक्टर सागर ने पुराने गीतकारों में साहिर लुधियानवी एवं शैलेंद्र का जिक्र किया और उनके गीतों की कुछ पंक्तियां भी दोहराईं साथ ही आज के गीतकारों में इरशाद कामिल, अमिताभ भट्टाचार्य ,कौशल मुनीर, स्वानंद किरकिरे, प्रसून जोशी और मनोज मुंतशिर को अच्छे गीतकारों की श्रेणी में रखा। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी भाषा में दूसरी भाषाओं से आने वाले शब्दों के चलन को सकारात्मक रूप से देखने की जरूरत है क्योंकि यह चलन केवल गीतों में नहीं बल्कि समाज में भी है। डॉ. सागर ने कहा कि वर्तमान की युवा पीढ़ी केवल एक तरह के गानों की प्रशंसक नहीं है बल्कि वह हर तरह के गाने पसंद कर रही है जिनमें आइटम गानों से लेकर अमिताभ भट्टाचार्य और इरशाद कामिल के क्लासिकल पोएट्री वाले गाने भी शामिल हैं।

आयोजन के अंतिम भाग में डॉ सागर ने अपने लिखे कुछ गीत भी सुनाए। वेबिनार में चर्चा का समाहार करते हुए विभाग की प्राध्यापक डॉ रचना सिंह ने फिल्म, साहित्य और लोक संस्कृति के सम्बन्ध की चर्चा की। उन्होंने कहा कि पारम्परिक कलाओं को विभिन्न माध्यमों से नयी पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है और इसमें फिल्मों के महत्त्व को भी स्वीकार करना चाहिए। 

आयोजन में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ रामेश्वर राय, डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर, नौशाद अली  के साथ अन्य महाविद्यालयों के शिक्षक भी उपस्थित रहे । प्रश्नों का संयोजन श्रेयश श्रीवास्तव और हर्ष उरमलिया ने किया। अंत में साहित्य सभा के अध्यक्ष राहुल कसौधन ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *