ग़ैरज़िम्मेदार पत्रकारिता पर अंकुश लगाकर अदालत ने उम्मीद जगायी

अजय तिवारी

अर्णव गोस्वामी के रिपब्लिक इंडिया के बाद सुधीर चौधरी के ज़ी न्यूज़ की बारी आ गयी।  कल मुंबई हाईकोर्ट ने अर्णव को गिरफ़्तारी-पूर्व ज़मानत देने से मना कर दिया और आज दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़ी न्यूज़ से कहा कि जामिया के छात्र पर अपने आरोप का स्रोत बताओ! अदालत ने वक़ील की यह दलील नहीं मानी कि इससे पत्रकारिता की आज़ादी बाधित होगी। अदालत ने साफ़ कहा कि जो दस्तावेज खुद छात्र के पास नहीं हैं, उन्हें ज़ी न्यूज़ ने सार्वजनिक रूप में प्रकाशित किया, तब यह बताना ज़रूरी है कि ये दस्तावेज़ कहाँ से मिले? 

मतलब यह कि बिना किसी आधार के केवल किसी गुप्त एजेंडे के कारण एक नागरिक पर झूठा आरोप लगा देना और उस आरोप का आधार न बताना ग़ैरज़िम्मेदाराना तो है ही, ग़ैरक़ानूनी भी है। यह ग़ैरज़िम्मेदार पत्रकारिता पर करारा तमाचा है। 

यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल पैदा होता है: पत्रकारिता की स्वतंत्रता और नागरिक की स्वतंत्रता में क्या संबंध है, उनमें तालमेल कैसे बिठाया जाना चाहिए? 

लेकिन यह व्यापक और गंभीर सवाल है। इसका समाधान केवल अदालत नहीं करेगा। समाज और राजनीति को अधिक जनतांत्रिक बनाने से ही यह समस्या हल होगी। वर्तमान स्थिति में राजनीतिक प्रभुओं के प्रोत्साहन और संरक्षण से जो मीडिया मनमाना और ग़ैरज़िम्मेदाराना तौर-तरीक़े अपना रहा है, उसपर कुछ अंकुश लगने की संभावना है। 

मैं हमेशा कहता हूँ कि भारत को उसका इतिहास और उसकी विविधता तथा उसका जनतंत्र ही बचाएगा। यहाँ हिटलर और मुसोलिनी जन्म तो ले सकते हैं, जर्मनी-इटली की तरह सफल नहीं हो सकते। आज़ादी के बाद नेहरू ने देश को मज़बूत जनतांत्रिक आधार दिया है। नेहरू भारतीय इतिहास और विश्व इतिहास के गहरे अध्येता थे। उन्हें भारत की प्राचीनता, महानता और विविधता का पता था। इसलिए आधुनिक भारत की जो परिकल्पना उन्होंने की, वह यहाँ की महान परंपराओं के अनुरूप थी। उन्होंने ब्रिटिश विरासत से पूरा पल्ला नहीं झाड़ा, यह शिकायत की जा सकती है। फिर भी जिन संस्थाओं का उन्होंने विकास किया, वे संकट और निराशा के इस माहौल में देश और नागरिक की रक्षा में कमोवेश सक्रिय दिखायी देते हैं। इसीलिए नेहरू पर सबसे ज़्यादा हमले होते हैं। 

इस दौर में अपने देश की महान परंपराओं, जनतांत्रिक संस्थाओं और विश्व की सर्वाधिक विलक्षण विविधताओं के पक्ष में आवाज़ उठाना हर सचेतन नागरिक का कर्तव्य है। अर्णव (रिपब्लिक) और सुधीर चौधरी (ज़ी न्यूज़) की ग़ैरज़िम्मेदार-ग़ैरक़ानूनी पत्रकारिता पर अंकुश लगाकर अदालत ने उम्मीद जगायी है। याद रहना चाहिए कि सुधीर चौधरी ब्लैकमेलिंग के मामले में जेल काट चुके हैं। अब ऐसे लोग निराधार “ख़बरों” से देश को भ्रमित करने और सांप्रदायिक विद्वेष भड़काने का काम कर रहे हैं। जो सत्ता ऐसे वफ़ादारों के सहारे चलती है, उसका भंडाफोड़ देर-सबेर ज़रूर होता है और अब वह समय आ रहा है।

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