COVID-19 : टेस्टिंग किट को लेकर भारत का रवैया चिंताजनक

किसी भी महामारी के दौर में आंकड़े काफ़ी अहम भूमिका निभाते हैं। इनसे हमें महामारी को समझने और इसको रोकने के तरीक़ों को ईजाद करने में मदद मिलती है। संक्रमण की सही तस्वीर को समझने के लिए किसी को मरीज़ों की असली संख्या पता होना चाहिए। इसलिए महामारी की जांच (टेस्टिंग) एक अहम मुद्दा है। बड़े स्तर पर जांच करने के लिए बड़ी संख्या में टेस्टिंग किट्स होनी चाहिए। ऐसा भारत जैसे बड़ी जनसंख्या के देश में और अहम हो जाता है। लेकिन हम जिस तरीके से इन किटों का प्रबंधन कर रहे हैं, वह चिंताजनक है।

COVID-19 टेस्टिंग किट्स को ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च) मंज़ूरी देता है। COVID-19 के संक्रमण को रोकने के प्रबंध के लिए ICMR इस वक़्त सर्वोच्च ज़िम्मेदार प्रशासन है। एक हफ़्ते पहले ICMR प्राइवेट उत्पादकों को किट बनाने की मंजूरी दे चुका है। लेकिन फिर भी हम टेस्टिंग में काफ़ी पीछे चल रहे हैं।

25 मार्च को ICMR ने तीन दूसरे सरकारी संस्थानों को संक्रमण की जांच करने वाली किट्स की वैधता पुष्टि के लिए खोल दिया था। इनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी (पुणे), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोलेरा एंड एनटेरिक डिसीज़ (कोलकाता) और नेशनल एड्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (पुणे) शामिल थे। इन केंद्रों को टेस्टिंग किट को ”वैधता” देने की ज़िम्मेदारी मिली थी। रिपोर्टों के मुताबिक़, अब तक इनमें कोई काम नहीं किया गया। ऐसा इसलिए है, क्योंकि पॉजिटिव सैंपल की जांच NIV कर रही है और उसने इन सैंपल को नए केंद्रों तक नहीं भेजा। बिना सैंपल के बाकी के केंद्र टेस्टिंग किट की जांच नहीं कर सकते। चूंकि पूरा देश लॉकडॉउन है, इसलिए भौगोलिक दूरी भी संसाधनों के पहुंचने में दिक्कत पैदा कर रही है।

NIV ने अपनी वेबसाइट पर 15 किट के बारे में जानकारी दी है, जो US FDA से वैधता प्राप्त नहीं हैं, लेकिन NIV ने उनकी जांच की है। बता दें जिन किट्स को अंतरराष्ट्रीय नियामकों द्वारा वैधता मिल जाती है, NIV उनकी जरूरी तौर पर जांच नहीं करता। हांलाकि संस्थान ने घोषणा की है कि केवल उन्ही किट को उपयोग किया जाए, जिनकी संवेदनशीलता और पुष्टि करने की क्षमता 100 फ़ीसदी हो।

ICMR वैधता के लिए 100 फ़ीसदी सही जांच होने की बात कह रहा है। यह बॉयोलॉजी में संभव ही नहीं है। FDA और EU टेस्टिंग एजेंसियों द्वारा इतने कड़े पैमानों का पालन नहीं किया जा रहा है। जबकि इनका सर्टिफिकेशन ICMR मान रहा है। ICMR सभी किट निर्माताओं को खारिज कर रहा है, सिर्फ उन्हें छोड़कर जिन्होंने अच्छे भाग्य से टेस्ट को पास कर लिया। लगभग सभी एजेंसियां 98 फ़ीसदी सफलता को मानती हैं और बताती हैं कि कितने फ़ीसदी सैंपल को गुणवत्ता जांच में उपयोग किया गया। इसलिए 100 फ़ीसदी सफलता का पैमाना बनाना अपने आप में एक समस्या है।

NIV ने किटों की जांच करने वाली अपनी प्रक्रिया को सार्वजनिक नहीं किया है। 100 फ़ीसदी सफलता के पैमाने ने स्थानीय निर्माताओं को चिंतित कर दिया है। पुणे स्थित कंपनी मायलैब पहली बार 100 फ़ीसदी सफलता वाली किट् बनाकर सुर्खियों में आई थी। द केन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में लेखक लिखता है कि मुंबई में दो लैब में ”गलत सकारात्मक (False Positive)” नतीजों का मुद्दा सामने आया। साथ ही एक पूरा किट का बैच भी असफल हुआ था। जब मायलैब से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब नहीं दिया।”

RT-PCR किट बनाने वाले निर्माता देश में अच्छी खासी तादाद में हैं। ICMR को उनके पूरे किटों की जांच करने में मुश्किल सामने आएगी। बाज़ार में जल्द ज़्यादा तेज़ी से जांच करने वाली किट भी आएंगी।

28 मार्च तक ICMR ने 122 सरकारी लैब और 29 प्राइवेट लैब को नोवेल कोरोना वायरस की जांच के लिए प्रमाणित किया है। यह सभी लैब CDC (सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल) या WHO प्रोटोकॉल का पालन कर सकती हैं। लेकिन इन्हें किट बनाने के बाद NIV से आए सैंपल से उनकी जांच करनी होती है।

NIMHANS में एक क्लीनिकल वॉयरोलॉजिस्ट वी.रवि बताते हैं, ”सरकार ने अब तक जो किया, उसमें मैं साथ हूं। लेकिन अब वक़्त बदल चुका है। आगे बढ़ने के लिए यह सही रास्ता नहीं है।”

वो आगे कहते हैं, ”विज्ञान में पुन:उत्पादकता क्या है? यह सच है। अगर किसी किट को तीन अलग-अलग केंद्रों पर भेजा जाता है और सभी जगह उसकी संवेदनशीलता और जांच करने की क्षमता का नतीज़ा 95 फ़ीसदी आता है, तो यह एक सच है। 100 फ़ीसदी सफलता जैसी कोई चीज ही नहीं होती।”

IISER पुणें में शिक्षक और एक जाने-माने इम्यूनोलॉजिस्ट सत्यजीत रथ ने न्यूज़क्लिक को बताया, ”विदेशों से कई किट का ऑर्डर दिया गया है। जहां से भारत ने यह किट मंगवाई हैं, वहीं से कोरोना प्रभावित देश किट बुलवा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि कब और कितनी किट भारत में आ पाएंगी? यह अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।”

रथ ने आगे कहा, ”विदेशों से आने वाली टेस्टिंग किट्स को देशभर में कैसे वितरित किया जाएगा, अब भी यह सवाल बना हुआ है। ICMR ने एक योजना बनाई थी। संस्थान को योजना को सार्वजनिक करना चाहिए। नहीं तो इस बारे में चिंताएं बढ़ती जाएंगी।”

कोरोना वायरस के मामले में सैंपल को इकट्ठा करना भी एक चुनौती भरा काम है। रथ कहते हैं, ”सैंपल को नासोफारिनजील (नाक के अंदरूनी इलाके) से इकट्ठा करना चाहिए। मतलब जांच के लिए स्वैब (नमूना लेने के लिए इस्तेमाल होने वाला बेहद छोटा पोंछा) को नाक के रास्ते गहराई तक जाना होगा। अगर सिर्फ नाक के इलाके से ही सैंपल ले लिया गया, तो इसमें गलत होने की संभावना होती है।”रथ आगे बताते हैं, ”SARS-CoV-2 के ‘ब्लड सैंपल’ से ‘एंटी बॉडीज़ की टेस्टिंग’ से भी कोरोना की जांच की जा सकती है। इसके ज़रिए यह पता लगाया जा सकता है कि किसी खास तरह का एंटीबॉडी संबंधित शख़्स के खून में मौजूद है या नहीं। इसका इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जा सकता है कि वह शख़्स कभी संक्रमित हुआ या उसने इस बीमारी के खिलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता बनाई है या नहीं।”

WHO का कहना भी है कि कोरोना के संक्रमण की असली तस्वीर जानने के लिए बड़े स्तर पर टेस्टिंग की जरूरत है। भारत जैसे बहुसंख्यक देश में योजनागत् जांच बेहद जरूरी है। यह बीमारी रोकने और इसके दोबारा फैलने के लिए अहम है।

संदीप ताल्लुकदार

(अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं)

COVID-19: How India Manages Testing Kits is a Cause for Concern

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