ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनावों के नतीजे तकरीबन साफ हो चुके हैं. बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, वहीं टीआरएस की सीटें काफी कम हुई हैं. GHMC की 150 सीटों में टीआरएस को 55 सीटें हासिल हुईं हैं वहीं बीजेपी ने 48 और AIMIM ने 44 सीटें हासिल की हैं. उल्लेखनीय है कि टीआरएस ने पूरी 150 , भाजपा ने 149 और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 51 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
24 दिसंबर 2019 को आरएसएस काडर का हैदराबाद में मार्च करने का एक वीडियो वायरल हुआ था. मार्च दक्षिण पूर्वी हैदराबाद के इलाकों मंसूराबाद, वनस्थलीपुरम और हस्तिनापुरम से शुरू हुआ था और लाल बहादुर नगर क्रासिंग पर खत्म हुआ था. जहां काडर ने सरूरनगर इनडोर स्टेडियम के अंदर मार्च किया और आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक भाषण दिया.
एक साल से भी कम समय के बाद एलबी नगर जोन के अंतर्गत आने वाले ये इलाके ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (GHMC) चुनाव में बीजेपी की सफलता की सबसे बड़ी कहानी बन गए हैं. इन चुनावों के नतीजे 4 दिसंबर को आए.
बीजेपी ने इस जोन में करीब दो-तिहाई वॉर्ड्स जीते. 23 में से 15 सीटें बीजेपी ने इस जोन में हासिल की हैं.
एलबी नगर की जीत क्यों मायने रखती है?
एलबी नगर में जीत के अपने मायने हैं. हालांकि, बीजेपी ने सिकंदराबाद जोन में भी अच्छा प्रदर्शन किया है, ये इसलिए क्योंकि सिकंदराबाद और पुराने शहर के हिंदू-बहुल इलाके पारंपरिक रूप से बीजेपी के गढ़ रहे हैं. 2016 GHMC चुनाव और 2018 विधानसभा चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन उसकी ताकत की सही झलक नहीं है. इन दोनों चुनावों को नया राज्य बनने के बाद टीआरएस के आगे बढ़ने के बाईप्रोडक्ट के तौर पर देखा जाना चाहिए.
बीजेपी इन इलाकों में पहले से मजबूत थी और सवाल सिर्फ म्युनिसिपल स्तर पर खुद को एक सक्षम विकल्प के तौर पर पेश करने का था. और यही वजह है कि एलबी नगर के प्रदर्शन को एक अपवाद की तरह देखा जाना चाहिए.
बीजेपी तीन मुख्य फैक्टर्स ने काम किया.
1. आरएसएस की मौजूदगी
मोहन भागवत की रैली और उससे पहले हुए मार्च से साबित होता है कि इस इलाके में आरएसएस की अच्छी मौजूदगी है. एलबी नगर और सरूर नगर जैसे इलाकों में शाखाओं की अच्छी-खासी तादाद है. अभी तक आरएसएस की मौजूदगी बीजेपी के लिए चुनावी जीत में तब्दील नहीं हुई थी. लेकिन GHMC चुनाव में ये बदल गया है.
2. बाढ़ का असर
मूसी नदी के दक्षिण में पड़ने वाला ये इलाका इस साल की शुरुआत में बाढ़ से काफी प्रभावित हुआ था. उदाहरण के लिए वनस्थलीपुरम में कई घर पूरी तरह डूब गर थे और राहत सामग्री के लिए झड़पें भी हुई थीं. टीआरएस के खिलाफ काफी रोष और नाराजगी थी और बीजेपी को इसका फायदा मिलता दिखा है.
3. विपक्ष की कमी
एलबी नगर और पूर्वी हैदराबाद के कई इलाके टीआरएस के लिए कभी गढ़ नहीं रहे हैं. इन इलाकों में तेलुगु देसम पार्टी (TDP) और कांग्रेस की पकड़ हुआ करती थी, लेकिन दोनों ही पार्टियों के कमजोर पड़ने से लगता है कि बीजेपी को फायदा मिला है. बीजेपी ने खुद को टीआरएस के मुख्य विरोधी के तौर पर पेश किया है.
एलबी नगर से कांग्रेस विधायक डी सुधीर रेड्डी के टीआरएस में चले जाने से भी वोटरों में कंफ्यूजन की स्थिति पैदा हुई होगी. आखिरकार जब 2018 में पार्टी की लहर के दौरान भी इस चुनाव क्षेत्र ने टीआरएस के खिलाफ वोट किया था, तो उसके खिलाफ साफ तौर पर नाराजगी थी. विधायक के चले जाने का मतलब ये कतई नहीं है कि टीआरएस के खिलाफ विचार भी बदल गए थे.
कांग्रेस से नेताओं का टीआरएस में जाना सामान्य रूप से बीजेपी के लिए मददगार साबित हुआ है, जिसने खुद को मुख्य विपक्षी ताकत के रूप में पेश किया.
तेलंगाना की राजनीति के लिए इन नतीजों का क्या मतलब?
बीजेपी अब अगले विधानसभा चुनाव में एलबी नगर जीतने की उम्मीद रखेगी लेकिन इसका असर इससे भी आगे तक है.
इस इलाके में दक्षिणी तेलंगाना के नालगोंडा जिले से माइग्रेट करके आए वोटरों की तादाद अच्छी-खासी है. नालगोंडा टीआरएस के लिए एक और कमजोर और कांग्रेस के लिए मजबूत इलाका है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सभी उथल-पुथल के बावजूद पार्टी ने 2009 से लोकसभा चुनाव में ये सीट जीती है. एलबी नगर में जीत से बीजेपी को नालगोंडा में भी मजबूती मिल सकती है और संभावना है कि इसकी कीमत कांग्रेस चुकाएगी.
सौज- दक्विंट